आयुष मंत्रालय ने गिलोय को लीवर के लिए नुकसानदेह बताने वाली स्टडी को बताया भ्रामक, मीडिया की खबर का किया खंडन

आयुष मंत्रालय ने ‘क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपाटोलॉजी' पत्रिका में एक स्टडी पर आधारित खबर का खंडन करते हुए कहा कि इस खबर में दूसरे अध्ययनों पर गौर नहीं किया गया, जो इस जड़ी-बूटी की प्रभावकारिता के बारे में बताते हैं. यह लीवर के अध्ययन के लिए इंडियन नेशनल एसोसिएशन (आईएनएएसएल) की सहकर्मियों द्वारा समीक्षा की गई पत्रिका है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 7, 2021 5:52 PM

नई दिल्ली : आयुष मंत्रालय ने बुधवार को गिलोय को लीवर के लिए नुकसानदेह बताने वाली स्टडी रिपोर्ट को भ्रामक बताया है. मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को भारत के पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के लिए विनाशकारी बताया है. उसने कहा कि आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों का लंबे समय से इस्तेमाल किया जा रहा है. इस रिपोर्ट में की गई दूसरी स्टडी पर तवज्जो नहीं दिया गया, जो जड़ी-बूटी की प्रभावकारिता के बारे में बताते हैं.

बता दें कि ‘क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपाटोलॉजी’ पत्रिका में एक स्टडी रिपोर्ट प्रकाशित की गई है. इसके आधार पर मीडिया की खबरें सामने आ रही हैं. आयुष मंत्रालय ने ‘क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपाटोलॉजी’ पत्रिका में एक स्टडी पर आधारित खबर का खंडन करते हुए कहा कि इस खबर में दूसरे अध्ययनों पर गौर नहीं किया गया, जो इस जड़ी-बूटी की प्रभावकारिता के बारे में बताते हैं. यह लीवर के अध्ययन के लिए इंडियन नेशनल एसोसिएशन (आईएनएएसएल) की सहकर्मियों द्वारा समीक्षा की गई पत्रिका है.

पत्रिका में प्रकाशित स्टडी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि जड़ी-बूटी टिनोस्पोरा कोर्डिफोलिया (टीसी) जिसे आम तौर पर गिलोय या गुडुची के नाम से जाना जाता है, उसके उपयोग से मुंबई में छह मरीजों के लीचवर ने काम करना बंद कर दिया. मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि उसे लगता है कि स्टडी के लेखक मामलों के सभी आवश्यक विवरणों को व्यवस्थित प्रारूप में रखने में विफल रहे.

मंत्रालय ने कहा कि इसके अलावा, गिलोय या टीसी को लीवर को नुकसान पहुंचाने वाला बताना भारत की परंपरागत चिकित्सा पद्धति के लिए भ्रामक एवं विनाशकारी है, क्योंकि जड़ी-बूटी गिलोय या गुडुची का आयुर्वेद में लंबे समय से प्रयोग किया जा रहा है. विभिन्न विकृतियों को ठीक करने में टीसी की प्रभावकारिता जांची-परखी है.

बयान में कहा गया कि स्टडी के विश्लेषण के बाद यह भी पाया गया कि इसके लेखकों ने जड़ी-बूटी की सामग्रियों का अध्ययन नहीं किया, जिसका सेवन मरीज कर रहे थे. यह लेखकों की जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि मरीज टीसी का ही सेवन कर रहे थे, किसी दूसरी जड़ी-बूटी का नहीं.

मंत्रालय ने कहा कि इस बारे में ठीक समझ बनाने के लिए लेखकों को किसी वनस्पति वैज्ञानिक या आयुर्वेद के विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए थी. उसने कहा कि दरअसल कई अध्ययनों में पाया गया है कि जड़ी-बूटी की सही पहचान न करने से गलत परिणाम आ सकते हैं. उसने कहा कि टीसी जैसी दिखने वाली दूसरी जड़ी-बूटी का लीवर पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.

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Posted by : Vishwat Sen

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