Mission 2024: बीजेपी से टक्कर के लिए कांग्रेस का गठबंधन के केन्द्र में होना जरूरी कपिल सिब्बल का बड़ा बयान
प्रमुख विपक्षी नेता सिब्बल ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का विरोध करने वाले सभी राजनीतिक दलों से पहले एक साझा मंच तलाशने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि यह साझा मंच उनका नवगठित ‘इंसाफ’ मंच भी हो सकता है, जो अन्याय से लड़ने के लिए बनाया गया है.
राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने रविवार को कहा कि 2024 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मुकाबला करने वाले किसी भी गठबंधन के केंद्र में कांग्रेस को होना चाहिए. सिब्बल ने साथ ही कहा कि सभी विपक्षी दलों को एक मजबूत गठबंधन बनाने के लिए संवेदनशील होने के साथ ही एक-दूसरे की विचारधाराओं की आलोचना करने में सावधानी बरतनी चाहिए. प्रमुख विपक्षी नेता सिब्बल ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का विरोध करने वाले सभी राजनीतिक दलों से पहले एक साझा मंच तलाशने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि यह साझा मंच उनका नवगठित ‘इंसाफ’ मंच भी हो सकता है, जो अन्याय से लड़ने के लिए बनाया गया है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री सिब्बल ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि 2024 के लिए विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व के सवाल का इस स्तर पर जवाब देने की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने 2004 का उदाहरण भी दिया, जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार विपक्ष का चेहरा घोषित नहीं होने के बावजूद लोकसभा चुनाव के बाद सत्ता से बाहर हो गई थी.उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कांग्रेस को 2024 में भाजपा का मुकाबला करने वाले विपक्षी दलों के किसी भी गठबंधन का निश्चित रूप से आधार और केंद्र में होना चाहिए.
यह पूछे जाने पर कि क्या आरोपों का सामना कर रहे अडाणी समूह का समर्थन करने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार के बयान ने विपक्षी एकता को झटका दिया है, सिब्बल ने कहा, ‘‘यदि आप मुद्दों को संकुचित करते हैं, तो राजनीतिक दलों के बीच मतभेद होंगे. यदि आपके पास एक व्यापक सहयोगी मंच है जो मुद्दों को संकुचित नहीं करता है तो आम सहमति की संभावना बहुत अधिक होगी. उन्होंने कहा, ‘‘यदि राहुल गांधी का भारत में सांठगांठ वाले पूंजीवाद के संदर्भ में कोई दृष्टिकोण है, तो मुझे लगता है कि शरद पवार जी सांठगांठ वाले पूंजीवाद से संबंधित एक मंच के खिलाफ नहीं होंगे, जो व्यक्तियों को व्यापक परिप्रेक्ष्य में लाता है. इसलिए हमें इस व्यापक मंच की आवश्यकता है जिसके आधार पर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि विपक्ष एकजुट हो.
सिब्बल ने कहा कि जैसे ही मुद्दों को संकुचित किया जाता है, दिक्कतें उत्पन्न होती हैं और उन्होंने ऐसे दलों का उदाहरण दिया जिनका रुख किसी विशेष कानून पर अलग-अलग होता है. सिब्बल ने कहा, ‘‘आपको अलग-अलग दलों को अलग-अलग विचार रखने की अनुमति देनी चाहिए. हमें राहुल गांधी को किसी व्यक्ति पर एक विचार रखने और शरद पवार को अपना दृष्टिकोण रखने देना चाहिए. यह असहमति का उदाहरण नहीं होना चाहिए. सिब्बल संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) 1 और 2 के दौरान केंद्रीय मंत्री थे और पिछले साल मई में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी.
समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से एक निर्दलीय सदस्य के रूप में राज्यसभा के लिए चुने गए सिब्बल ने हाल ही में अन्याय से लड़ने के उद्देश्य से एक गैर-चुनावी मंच ‘इंसाफ’ शुरू किया था. उन्होंने कहा, ‘‘विपक्षी एकता तभी बनेगी जब हमारे पास एक व्यापक आम सहमति होगी और एक ऐसा मंच होगा जो उस आम सहमति के व्यापक मुद्दों को स्पष्ट करेगा. सिब्बल ने कहा कि विपक्षी दलों के लिए उनका संदेश यह होगा कि उन्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि इस सरकार के फरमानों से देश में बड़े सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अन्याय हो रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में पूरा संविधान इस बारे में एक आख्यान है कि न्याय कैसे प्राप्त किया जाए. इसलिए, अन्याय के खिलाफ लड़ाई एक साझा मंच हो सकता है. यह पूछे जाने पर कि क्या उनका नवगठित मंच विपक्ष की जरूरत की चीजें उपलब्ध करा सकता है, सिब्बल ने कहा, ”हो सकता है”, लेकिन साथ ही कहा कि सभी राजनीतिक दलों को उस मंच पर लाने के लिए काफी काम करने की जरूरत है.
यह पूछे जाने पर कि क्या यह व्यावहारिक होगा कि विभिन्न पृष्ठभूमि के विपक्षी दल एकसाथ आएं और 2024 में संयुक्त रूप से भाजपा का मुकाबला करने के लिए एक-दूसरे के लिए संसदीय सीटें छोड़ें, सिब्बल ने कहा कि पार्टियों को एक-दूसरे की विचारधाराओं की आलोचना करने में अधिक उदार, अधिक सतर्क होना चाहिए और यह समझना होगा कि जहां भी वे कमजोर हैं, उन्हें प्रमुख भागीदार को निर्णय लेने देना चाहिए.
राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराये जाने के बाद बजट सत्र के दूसरे हिस्से के दौरान मजबूत हुई विपक्षी एकता पर, सिब्बल ने कहा कि जहां तक संसद में संयुक्त विरोध का सवाल है, यह अपने आप में विपक्षी एकता का प्रतिबिंब नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक विपक्षी एकता का संबंध है, यह पहला कदम है. हमें राजनीतिक दलों को एक-दूसरे के प्रति अधिक उदार होने और एक-दूसरे को उनके स्वयं के वैचारिक आधार के लिए जगह देने की आवश्यकता है, लेकिन साथ ही एक ऐसी सरकार से लड़ने के लिए एकजुट होने की जरूरत है जो भारत के लोगों को चुप कराने और इस तथाकथित लोकतंत्र को एक निरंकुश देश में बदलने पर तुली हुई है.
सिब्बल ने कहा कि संयुक्त विपक्ष के लिए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम एक “मुश्किल काम” है और यह आम चुनाव से कुछ महीने पहले ही तय किया जाएगा. यह पूछे जाने पर कि क्या 2024 की ओर आगे बढ़ने के लिए अडाणी मुद्दा और जातिगत जनगणना विपक्ष के लिए मुख्य मुद्दे हैं, सिब्बल ने कहा कि वह यह नहीं कह सकते हैं क्योंकि वह संसद के एक निर्दलीय सदस्य हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि जातिगत जनगणना का मुद्दा एक बड़ा मुद्दा है. यह कई राज्यों में, विशेष रूप से उत्तर भारत में एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन क्या यह एक एकीकृत कारक होगा या इसे राष्ट्रीय मुद्दे के रूप में पेश किया जाएगा, मैं संभवतः नहीं कह सकता.
अडाणी मुद्दे पर, सिब्बल ने कहा कि मुद्दा ए, बी या सी के बारे में नहीं है, मुद्दा यह है कि कैसे राज्य और बड़े समूह संसाधनों, मीडिया, सत्ता के केंद्रों और केंद्रीय एजेंसियों को नियंत्रित करने के लिए एक दूसरे के साथ सहयोग कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस आरोप का खंडन करते हुए कि विपक्ष एकसाथ इसलिए आ रहा है क्योंकि वह उनकी सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से डरते हैं, उन्होंने सवाल किया कि अगर केंद्र को भ्रष्टाचार की इतनी ही चिंता है तो उसने सत्ता में आने के बाद पांच साल तक लोकपाल नियुक्त क्यों नहीं किया?
उन्होंने सवाल किया कि लोकपाल निष्क्रिय क्यों है और सरकार में किसी की जांच क्यों नहीं की? सिब्बल ने कहा, ‘‘क्या यह हमारे प्रिय प्रधानमंत्री का कहना है कि किसी भी भाजपा शासित राज्य और केंद्र सरकार में कभी भी भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाए जा सकते हैं और उनमें से प्रत्येक बर्फ की तरह सफेद है. उन्होंने प्रधानमंत्री से यह भी सवाल किया कि भाजपा में शामिल होने वालों के खिलाफ चल रही जांच क्यों बंद हो गई? सिब्बल ने कहा, ‘‘ऐसा क्यों है कि भारत के नक्शे को दो हिस्सों में बांट दिया गया है, जहां भी भाजपा शासित राज्य हैं, वहां सीबीआई की पहुंच नहीं है, जबकि विपक्ष शासित राज्यों में उनकी पूरी पहुंच है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रधानमंत्री का यह आख्यान एक कमजोर आधार पर आधारित है.