चांद हमेशा से ही इंसान के लिए कौतूहल का विषय रहा है. पृथ्वी के सबसे करीब और सबसे ठंडे इस उपग्रह को पृथ्वी से बाहर जीवन के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता रहा है. यही वजह है कि अनेक देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां समय-समय पर चांद पर अपने यान भेजती रही हैं. भारत भी इस कार्य में पीछे नहीं है. भारत ने अंतरिक्ष में लगातार नयी उपलब्धियां हासिल की हैं. तमाम चुनौतियों को पार करता हुआ भारत आज अंतरिक्ष की दुनिया में ऊंची छलांग लगाने के साथ ही वैश्विक स्तर पर अपनी मजबूत पहचान बना चुका है.
भारत का चंद्र मिशन चंद्रयान-3 अब चंद्रमा फतह करने को तैयार है. सोमवार को चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल के बीच दोतरफा संचार संपर्क भी स्थापित हो गया. इससे पहले शनिवार-रविवार की दरम्यानी रात दूसरी डिबूस्टिंग का चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया, जिससे चंद्रयान-3 चंद्रमा के और करीब पहुंच गया. अब पूरी दुनिया को 23 अगस्त को इंतजार है, जब चंद्रमा पर सूर्योदय होगा और विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर कदम रखेगा.
अभी यान का लैंडर मॉड्यूल चांद की सतह से महज 25 किलोमीटर की दूरी पर चांद के चक्कर लगा रहा है. चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही भारत इतिहास रच देगा और ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जायेगा. अभी तक अमेरिका, रूस और चीन ने ही चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफलता हासिल की है. चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहे एम अन्नादुरई के मुताबिक, 23 अगस्त की शाम को चंद्रयान-3 के लैंडर को 25 किलोमीटर की ऊंचाई से चांद की सतह तक पहुंचने में 15 से 20 मिनट लगेंगे. यही समय सबसे चुनौतीपूर्ण होने वाला है. इसके बाद विक्रम लैंडर से रैंप के जरिये छह पहियों वाला प्रज्ञान रोवर बाहर आयेगा और इसरो से कमांड मिलते ही चांद की सतह पर चहलकदमी शुरू कर देगा.
लैंडिंग के लिए सही समय और सही स्पीड है जरूरी
लैंडर के उतरने और कंपन की गति को करना होगा कंट्रोल
चंद्रमा की सतह पर मौजूद गुरुत्वाकर्षण भी है चुनौती
चांद की सतह पर मौजूद क्रेटर और रेजोलिथ
सिग्नल पहुंचने में देरी भी लैंडिंग को बनाता है मुश्किल
3,84,000 किलोमीटर है पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी
09 अगस्त तीसरी कक्षा बदल कर यह पांच हजार किलोमीटर वाले कक्षा में स्थापित
14 अगस्त एक हजार किलोमीटर वाली चौथी कक्षा में प्रवेश
16 अगस्त चंद्रमा के सबसे निकट 100 किमी वाली पांचवीं कक्षा में स्थापित
17 अगस्त चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल से लैंडर और रोवर अलग हो गये, लैंडर चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ा
सॉफ्ट लैंडिंग में मदद करने के लिए जोड़ा गया है लेजर डॉपलर वेलोसिटी मीटर सेंसर
सॉफ्टवेयर को किया गया है अपग्रेड, बढ़ायी गयी है टॉलरेंस लिमिट, खुद तय करेगा उतरने की जगह
लैंडिंग लेग्स किये गये हैं मजबूत
तीन मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार होने पर भी टूटेंगे नहीं
पांच की जगह चार इंजन का हुआ है उपयोग, 200 किलोग्राम बढ़ाया गया है वजन
अधिक इंधन की व्यवस्था इत्मिनान से तलाशेगा चांद पर दूसरी जगह
तभी करेगा सॉफ्ट लैंडिंग
सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान अंतिम 15 मिनट बेहद निर्णायक होंगे. पूरे चंद्र मिशन की सफलता इन्हीं 15 मिनटों पर निर्भर है. गति नियंत्रण करने से लेकर लैंडर को संभालने का काम इसी दौरान होगा.
400 मीटर की ऊंचाई से लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा की सतह का मुआयना करेगा, 1680 मीटर प्रति सेकेंड से घट कर दो मीटर प्रति सेकेंड होगी इस समय स्पीड
अगले कुछ सेकेंडों में लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह से करीब 100 मीटर ऊपर होगा और उतरने के लिए उपयुक्त जगह की तलाश करेगा
जैसे ही लैंडर मॉड्यूल के चारों पैर चंद्रमा की सतह को छू लेंगे, मॉड्यूल में लगा सेंसर इंजन को बंद करने के लिए भेजेगा संकेत, शुरू हो जायेगी अध्ययन की प्रक्रिया
सॉफ्ट लैंडिंग के बाद लैंडर विक्रम सतह की पहली तस्वीर के साथ संदेश भी भेजेगा
कुछ घंटे बाद लैंडर विक्रम से बाहर आयेगा रोवर प्रज्ञान, शुरू करेगा चंद्रमा की सतह का अध्ययन
चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल के बीच दोतरफा संचार संपर्क किया गया स्थापित
18 अगस्त विक्रम लैंडर सफल डिबूस्टिंग प्रक्रिया से गुजरा
20 अगस्त दूसरी बार डिबूस्टिंग प्रक्रिया पूरी, चांद के काफी करीब पहुंच गया लैंडर
रोवर प्रज्ञान लैंडर को भेजेगा चंद्रमा की सतह से एकत्र किया
गया डेटा
लैंडर विक्रम इस डेटा को इसरो को करेगा ट्रांसफर कई राज खुलेंगे
रोवर प्रज्ञान लैंडर को भेजेगा चंद्रमा की सतह से एकत्र किया गया डेटा
लैंडर विक्रम इस डेटा को इसरो को करेगा ट्रांसफर कई राज खुलेंगे
23 अगस्त शाम छह बज कर चार मिनट पर विक्रम लैंडर उतरेगा चंद्रमा की सतह पर
लैंडिंग के बाद रोवर रैँप से बाहर निकलेगा और 14 दिनों तक चंद्रमा की सतह का करेगा विस्तृत अध्ययन
इसमें ऐसे कई यंत्र लगे हैं, जो चांद पर प्लाज्मा, सतह की गर्मी, पानी की मौजूदगी की उम्मीद, भूकंप और चांद की डायनेमिक्स का अध्ययन करेंगे.
14 जुलाई आंध्र प्रदेश स्थित श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान-3 का सफलतापूर्वक किया गया प्रक्षेपण.
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यह है सॉफ्ट लैंडिंग
लैंडर मॉड्यूल की सॉफ्ट लैंडिंग का मतलब 6000 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड को शून्य पर ले आना है. इस दौरान लैंडर विक्रम खुद को 90 डिग्री लंबवत स्थिति में चंद्रमा की सतह पर उतारेगा
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में बने गड्ढे हमेशा अंधेरे में रहते हैं, जिसके 25 किलोमीटर की ऊंचाई से सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया शुरू होगी. इस दौरान लैंडर की रफ्तार को नियंत्रित करना सबसे बड़ी चुनौती होगी.
लैंडर की रफ्तार से निबटने के लिए चंद्रयान-3 में वो सारी तैयारी की गयीं हैं जिससे इसे आसानी से उतार कर भेजने का मकसद हासिल किया जा सके. इस सबके लिए नयी तकनीक भी विकसित की गयी है.
लैंडर अभी कक्षा में क्षैतिज रूप से चक्कर लगा रहा है, उतरने से पहले इसे 90 डिग्री पर सीधा किया जायेगा. लैंडर चांद पर लैंडिंग करने के लिए उसी तरह बढ़ेगा, जैसे रॉकेट के साथ धरती से उड़ा था.
इसरो चीफ एस सोमनाथ के अनुसार, चंद्रयान-3 को इस तरह बनाया गया है कि अगर सारे सेंसर्स फेल हो जाएं, कुछ काम न करे, तब भी यह लैंडिंग करेगा. दोनों इंजन बंद होने पर भी लैंडिंग में सक्षम रहेगा.
चंद्रमा पर 14 दिनों का दिन और 14 दिनों का रात होता है. अभी चंद्रमा पर रात है और 23 तारीख को सूर्योदय होगा. लैंडर विक्रम व रोवर प्रज्ञान दोनों सोलर पैनल के इस्तेमाल से ऊर्जा प्राप्त कर सकेंगे.
लैंडर-रोवर सतह पर पानी की खोज सहित अन्य प्रयोग करेंगे. प्रोपल्शन मॉड्यूल धरती से आने वाले रेडिएशंस का अध्ययन करेगा. चट्टानों में जमी अवस्था में मौजूद पानी के नमूने इकट्ठा करेगा.
चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल के चार पैरों के पास लगे 800 न्यूटन शक्ति के एक-एक थ्रस्टर की बदौलत डिबूस्टिंग (गति धीमा करने की प्रक्रिया) प्रक्रिया संभव हुई. इसमें दो थ्रस्टर का उपयोग हुआ. इसके परिणामस्वरुप चंद्रमा की गति सॉफ्ट लैंडिंग के अनुकूल बनी.