कोरोना संकट में प्रवासी मजदूरों और बेरोजगारों के लिए वरदान बनी ‘मनरेगा’
कोरोना संक्रमण (coronavirus crisis ) के चलते देशभर में लागू लॉकडाउन (Lockdown) के बाद बेरोजगार हुए लोगों और अपने घरों को लौटे मजदूरों के लिए मनरेगा योजना वरदान साबित हुई है जहां बीते शनिवार राजस्थान में 9,983 ग्राम पंचायतों में 49 लाख से ज्यादा लोगों ने मनरेगा में काम किया.
जयपुर : कोरोना संक्रमण के चलते देशभर में लागू लॉकडाउन के बाद बेरोजगार हुए लोगों और अपने घरों को लौटे मजदूरों के लिए मनरेगा योजना वरदान साबित हुई है जहां बीते शनिवार राजस्थान में 9,983 ग्राम पंचायतों में 49 लाख से ज्यादा लोगों ने मनरेगा में काम किया.
यह संख्या साल 2019 के जून महीने की तुलना में 17 लाख ज्यादा है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें से ज्यादातर वे प्रवासी श्रमिक हैं जो लॉकडाउन के चलते बेरोजगार होकर घर लौटे या स्थानीय लोग जिनका काम छूट गया.
जनप्रतिनिधि मानते हैं कि देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से शुरू की गयी रोजगार गारंटी की यह योजना संकट के इस समय में प्रवासी श्रमिकों और बेरोजगारों के लिए डूबते को तिनके का सहारा साबित हुई है.
उदाहरण के लिए राज्य की खींवसर पंचायत समिति की भुंडेल ग्राम पंचायत की बात करें तो वहां शनिवार को मनरेगा के तहत सात नाडी तालाब का काम चला जिस पर लगभग 2000 श्रमिक लगे. इनमें से दो सौ से ज्यादा जरूरतमंद प्रवासी श्रमिक हैं.
इसके अलावा वे स्थानीय लोग भी हैं जो लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हो चुके हैं और वे आजकल रोजी रोटी कमाने के लिए मनरेगा में काम करने आते हैं. राज्य के मनरेगा (महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना) आयुक्त पीसी किशन कहते हैं, सिर्फ प्रवासी श्रमिक ही नहीं, स्थानीय लोग जो नाई का, धोबी का या ऐसा और कोई अपना काम कर रहे थे, लेकिन इन दिनों बेरोजगार हैं, वे भी मनरेगा से लाभान्वित हुए हैं… वहां काम कर रहे हैं.
भुंडेल के सरपंच धर्मेंद्र गौड़ के अनुसार, संकट के इस समय में बेरोजगार लोगों के लिए चाहे वह प्रवासी हो या स्थानीय, मनरेगा वरदान साबित हुई है. पीसी किशन ने ‘पीटीआई भाषा’ को बताया कि शनिवार को राज्य की कुल 11,346 में से 9,983 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत काम में 49,52,496 लोग नियोजित थे. एक साल पहले सात जून को यह संख्या 32,25931 थी यानी एक दिन में 17,26,565 ज्यादा लोगों को मनरेगा में काम मिला हुआ.
वह कहते हैं कि इन 17 लाख से ज्यादा लोगों में सारे प्रवासी श्रमिक नहीं हैं, इनमें वे स्थानीय लोग भी शामिल हैं जिनके जॉबकार्ड तो बने हुए थे, लेकिन जो अपना काम कर रहे थे. लॉकडाउन में वहां से बेरोजगार होने के बाद ये लोग भी मनरेगा में आ गए. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान मनरेगा के तहत काम देने के लिहाज से देश में इस समय पहले नंबर पर है.
शनिवार को राजस्थान के बाद 41.721 लाख नियोजित श्रमिकों के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे जबकि 40.01 लाख श्रमिकों के साथ आंध्र प्रदेश तीसरे, 25.19 लाख श्रमिकों के साथ छत्तीसगढ़ चौथे और 24.96 लाख श्रमिकों के साथ मध्य प्रदेश पांचवें स्थान पर था. राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले सप्ताह सरपंचों व अन्य जनप्रतिनिधियों के साथ वीडियो कान्फ्रेंस में कहा था कि संकट के इस समय में मनरेगा ने देश भर के गांवों में करोड़ों लोगों को संबल देकर अपने महत्व को सिद्ध किया है.
वहीं राज्य के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा कि अन्य राज्यों से रोजगार के अभाव में राजस्थान लौटे श्रमिकों तथा स्थानीय स्तर पर रोजगार से वंचित श्रमिकों के लिए मनरेगा योजना वरदान साबित हो रही है. पीसी किशन के अनुसार प्रवासी श्रमिकों के लिए मनेरगा किस तरह वरदान साबित हुई है इसका सबूत आंकड़े भी हैं. राज्य के सीमावर्ती जिले जहां प्रवासी श्रमिक सबसे ज्यादा आए हैं, वहां मनरेगा में लगे श्रमिकों की संख्या भी अपेक्षाकृत कहीं अधिक है.
उन्होंने उदयपुर जिले का उदाहरण देते हुए बताया कि शनिवार को इस योजना में वहां 2,65,153 श्रमिक नियोजित थे जबकि पिछले साल यह संख्या केवल 1,33,979 थी. इसी तरह पड़ोसी डूंगरपुर जिले में शनिवार को मनरेगा में 3,33,078 श्रमिक नियोजित थे जबकि पिछले साल यह संख्या केवल 2,24,678 थी.
भुंडेल के सरपंच गौड़ कहते हैं कि पहले अनेक लोगों ने मनरेगा के जॉब कार्ड तो बनवा रखे थे, लेकिन वे अपने ही काम से ज्यादा कमा रहे थे इसलिए यहां नहीं आते थे। चूंकि लॉकडाउन में सारे काम बंद हो गए तो वे लोग भी मनरेगा में आने लगे. इससे नियोजित श्रमिकों की संख्या बढ़ी. नये जॉब कार्ड भी बने हैं.
अधिकारियों के अनुसार हाल में दो लाख से ज्यादा नये जॉब कार्ड बने हैं. उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन के दौरान बसों तथा श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से 13.43 लाख प्रवासी राजस्थान आए हैं. अधिकारियों का कहना है कि इसके अलावा सीमावर्ती जिलों में बड़ी संख्या में लोग अपने साधनों से या पैदल भी वापस आए हैं.