मनरेगा ने ग्रामीण लोगों को कोरोना महामारी से लड़ने में की मदद, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने किया खुलासा

एक वरिष्ठ अधिकारी ने जानकारी दी कि मनरेगा ने कोरोना महामारी के तनाव से निपटने में ग्रामीणों की मदद में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. बता दें कि मनरेगा एक श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा पहल है, जिसका उद्देश्य काम के अधिकार की गारंटी देना है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 23, 2022 2:59 PM

MNREGA: महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ने कोरोना महामारी के तनाव से निपटने में ग्रामीणों की मदद में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. साथ ही उनके लिए महामारी से पहले के समय की तुलना में अधिक कार्यदिवस उत्पन्न हुए. यह जानकारी एक वरिष्ठ अधिकारी दे दी.

मनरेगा से लोगों को मिला लाभ

ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा ने महामारी के दौरान ‘महिलाएं, अनुभव और अवसर’ विषयक एक सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि 2019 में कुल 260 करोड़ व्यक्ति कार्यदिवस बनाए गए और 2021 में यह संख्या बढ़कर 390 करोड़ व्यक्ति कार्यदिवस हो गई. मनरेगा एक श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा पहल है, जिसका उद्देश्य काम के अधिकार की गारंटी देना है.

मनरेगा ने कोरोना के दबाव से निपटने में की मदद

नागेंद्र नाथ ने कहा कि मनरेगा ने कोविड-19 महामारी के दबाव से निपटने में ग्रामीण समुदायों की जरूरतों को पूरा करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. चर्चा में मौजूद शिक्षाविदों और विशेषज्ञों ने महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए योजना को एक उपकरण के रूप में लागू करने का आह्वान किया. येल विश्वविद्यालय के मैकमिलन सेंटर में दक्षिण एशिया अर्थशास्त्र अनुसंधान निदेशक चैरिटी ट्रॉयर मूर ने कहा कि नीति स्वयं महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सीधे आकार दे सकती है और उन कुछ प्रतिबंधात्मक लिंग मानदंडों को भी आकार दे सकती है, जो महिलाओं को श्रम कार्यबल में प्रवेश करने से रोकती हैं.

Also Read: श्रीलंका में राष्ट्रपति ने की मंत्रिमंडल की बैठक, एक हफ्ते के भीतर हालात सामान्य बनाने के तरीकों पर चर्चा
मनरेगा में कोरोना के दौरान शहरी श्रम बल की भागीदारी रही कम

उन्होंने कहा, ”इस (ग्रामीण) परिदृश्य में पुरुष वास्तव में अपनी पत्नियों के काम करने को सामाजिक कलंक या बदनामी के रूप देखते हैं. पुरूषों में यह धारणा है कि अगर उनकी पत्नी घर से बाहर काम करती है, तो उनके पूरे समुदाय को यह संकेत जाएगा कि वह गरीब है.” येल विश्वविद्यालय में आर्थिक विकास केंद्र की निदेशक रोहिणी पांडेय ने कहा कि महामारी के दौरान शहरी श्रम बल की भागीदारी कम थी, लेकिन अपेक्षाकृत स्थिर थी. (भाषा)

Next Article

Exit mobile version