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#Modi1Year : सरकार बनाते ही मुश्किलों से होता है मोदी का सामना, हर बार पाया है पार

#Modi1Year : नरेंद्र मोदी और मुश्किलों की पुरानी यारी है. जब भी नरेंद्र मोदी सत्ता में आते हैं यानी सरकार बनाते हैं, मुश्किलों से उनका सामना हो जाता है. मामला गुजरात के मुख्यमंत्री बनने का हो या देश का प्रधानमंत्री बनने का. हर बार मुश्किलों ने उनका स्वागत किया है और नरेंद्र मोदी ने हर बार उस मुश्किल से पार पाया है.

नरेंद्र मोदी और मुश्किलों की पुरानी यारी है. जब भी नरेंद्र मोदी सत्ता में आते हैं यानी सरकार बनाते हैं, मुश्किलों से उनका सामना हो जाता है. मामला गुजरात के मुख्यमंत्री बनने का हो या देश का प्रधानमंत्री बनने का. हर बार मुश्किलों ने उनका स्वागत किया है और नरेंद्र मोदी ने हर बार उस मुश्किल से पार पाया है.

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आज जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा कर चुकी है, कोरोना वायरस का संक्रमण उसके जश्न में खलल डाल रहा है. पूरे देश में लॉकडाउन है और हर तबके के लोग परेशानी में हैं. कोरोना वायरस का संक्रमण लगातार फैल रहा है और लोग लॉकडाउन के खत्म होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

हालांकि, नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने समय रहते लॉकडाउन का फैसला किया और भारत में कोरोना के विस्फोट से पहले ही उसे दबाने की कोशिश की. लेकिन, दिल्ली के मरकज से जमातियों के जत्थे बाहर निकले और चुपके से कोरोना के संक्रमण को फैलने में मदद की. शुरुआती दिनों में जो भी मामले सामने आये, वो जमात से ही जुड़े थे.

कोरोना वायरस के विस्फोट को रोकने की सरकार की तमाम कोशिशों पर गरीबी भारी पड़ी. श्रमिकों की मुश्कलें भारी पड़ीं. नतीजा यह हुआ कि मुश्किलों में घिरे लोग पैदल ही हजारों किलोमीटर के सफर पर निकल पड़े. अपनी जान हथेली पर लेकर कोई पैदल चला, तो किसी ने ट्रक, टैंकर और यहां तक कि मिक्सर में छिपकर यात्रा की.

नतीजा यह हुआ कि सरकार की सख्ती की वजह से लंबे अरसे तक कुछ शहरों तक सीमित रहा यह कोरोना वायरस तेजी से फैलने लगा. आज कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या डेढ़ लाख के पार है. मरने वालों की संख्या चीन से अधिक हो चुकी है. और लॉकडाउन में धीरे-धीरे ढील दी जा रही है. यह नहीं कह सकते कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने कोरोना के संक्रमण से पार पा लिया है, लेकिन बहुत हद तक इस संकट को दबाने में कामयाब जरूर हुई है.

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यह पहला मौका नहीं है, जब सरकार बनाने के कुछ ही दिन बाद नरेंद्र मोदी का मुश्किलों से सामना हुआ है. वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार को पराजित कर सत्ता संभाली थी, तब एक ऐसा संकट उनके सामने आया था, जिससे पार पाना आसान नहीं था. उस वक्त दुनिया के कई देशों में आतंकवाद के नये चेहरे आइएसआइएस ने खौफ फैला रखा था.

इस मुश्किल घड़ी में नरेंद्र मोदी की सरकार ने बड़ी कुशलता से आइएसआइएस के प्रभाव वाले सीरिया समेत कई देशों से अपने नागरिकों को सुरक्षित निकाल लिया था. मोदी की सरकार ने न केवल भारत के नागरिकों को आतंक से घिरे देशों से बाहर निकाला था, बल्कि कई पड़ोसी और शक्तिशाली देशों की भी मदद करके विदेश नीति की धाक मनवायी थी. उसके बाद ही भारत के प्रधानमंत्री को वर्ल्ड लीडर के रूप में देखा जाने लगा था.

प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी वर्ल्ड लीडर बन गये, लेकिन जब उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी, सबसे विकट परिस्थिति से उनका सामना हुआ था. गोधरा में दंगे हो गये. इस दंगे ने नरेंद्र मोदी की छवि को जितना खराब किया, शायद देश के किसी और मुख्यमंत्री के साथ ऐसा नहीं हुआ होगा. लेकिन, उन्होंने कानूनी कार्रवाई का सामना किया. कोर्ट का सामना किया और अंतत: बेदाग साबित हुए.

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अपनी आलोचनाओं पर हमेशा मौन रहने वाले नरेंद्र मोदी, अपने विरोधियों को एक साथ हर हमले का जवाब देते हैं. और जब वह बोलते हैं, तो विरोधी निरुत्तर हो जाते हैं. ज्ञात हो कि गोधरा दंगों की वजह से जिस अमेरिका ने उन्हें वीजा देने के मना कर दिया था, आज विश्व के इस सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति खुद नरेंद्र मोदी का स्वागत करने को आतुर रहते हैं.

Posted By Mithilesh Jha

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