One nation, One election: एक राष्ट्र, एक चुनाव की जांच के लिए 8 सदस्यीय समिति गठित, जानें कौन हैं शामिल
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द को समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, पूर्व राज्यसभा एलओपी गुलाम नबी आजाद, विधिवेत्ता हरीश साल्वे, पूर्व सीवीसी संजय कोठारी और वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह भी शामिल.
सरकार ने लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान में संशोधन का सुझाव देने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय समिति बनाई है.
8 सदस्यीय टीम में कौन-कौन हैं शामिल
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द को समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, पूर्व राज्यसभा एलओपी गुलाम नबी आजाद, विधिवेत्ता हरीश साल्वे, पूर्व सीवीसी संजय कोठारी और वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह भी शामिल. इसके अलावा, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप को भी समिति में शामिल किया गया है. जबकि कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल विशेष आमंत्रित सदस्य हैं.
‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ से हो सकता है भाजपा के लिए फायदे का सौदा
राजनीति के जानकारों को मानना है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की अवधारणा को आगे बढ़ाने का कदम फायदे का सौदा साबित हो सकता है. उनका तर्क है कि इससे चुनाव के पारंपरिक गुणा-भाग से इतर उसे अपने हित में एक राष्ट्रीय विमर्श खड़ा करने में सहूलियत होगी और ‘मोदी फैक्टर’ का लाभ उसे उन राज्यों में भी मिलने के आसार रहेंगे, जहां वह अब तक पारंपरिक रूप से कमजोर रही है.
Govt of India constitutes 8-member committee to examine ‘One nation, One election’.
Former President Ram Nath Kovind appointed as Chairman of the committee. Union Home Minister Amit Shah, Congress MP Adhir Ranjan Chowdhury, Former Rajya Sabha LoP Ghulam Nabi Azad, and others… pic.twitter.com/Sk9sptonp0
— ANI (@ANI) September 2, 2023
18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र
सरकार द्वारा 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का ‘विशेष सत्र’ बुलाने की घोषणा के एक दिन बाद इस घटनाक्रम ने समय-पूर्व लोकसभा चुनाव की संभावनाओं को भी हवा दे दी है. हालांकि सत्र की इस विशेष बैठक के लिए अब तक कोई आधिकारिक एजेंडा सामने नहीं आया है. इस बारे में अनिश्चितता के बावजूद कि यह मुद्दा कैसे आगे बढ़ेगा और क्या सरकार सत्र के दौरान इसे उठाएगी, अधिकांश भाजपा नेता पार्टी के लिए इसके निहितार्थ को लेकर आश्वस्त दिखे.
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराये जाने से क्षेत्रीय दलों का हो सकता है नुकसान
लोकसभा चुनाव की तुलना में राज्यों के चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन अक्सर कमतर रहने के कारण पार्टी नेताओं का मानना है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से राष्ट्रीय मुद्दे उभरेंगे और ‘मोदी फैक्टर’ बड़ी भूमिका निभाएगा. आम तौर पर देखा गया है कि कांग्रेस की अपेक्षा क्षेत्रीय दल भाजपा के खिलाफ लड़ाई में आगे रहे हैं और वे सफल भी साबित हुए हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव साथ-साथ कराए जाते हैं तो क्षेत्रीय दलों का नुकसान हो सकता है क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दों का गहरा प्रभाव पड़ना तय है.
2019 में ओडिशा में हो चुके हैं विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ-साथ
हालांकि ओडिशा के मतदाताओं ने इस संभावना को कई दफा खारिज किया है. वर्ष 2019 में राज्य विधानसभा और लोकसभा के चुनाव इस पूर्वी राज्य में एक साथ हुए थे लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए मतदाताओं का समर्थन लोकसभा चुनाव की तुलना में छह प्रतिशत कम था.
वाजपेयी-आडवाणी के नेतृत्व में भी उठी थी एक राष्ट्र, एक चुनाव की मांग
मोदी से पहले भी वाजपेयी-आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने एक साथ चुनाव कराने पर जोर दिया था. जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, आडवाणी ने इसकी वकालत की थी, लेकिन यह मुद्दा कमजोर पड़ गया क्योंकि अन्य दल इस प्रस्ताव पर चुप रहे. पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में भी इसी तर्ज पर वादा किया था. उस समय पार्टी ने कहा था कि अन्य दलों के साथ विचार-विमर्श के जरिए विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने का तरीका विकसित करने की कोशिश करेगी. राजनीतिक दलों और सरकार दोनों के लिए चुनाव खर्च को कम करने के अलावा, यह राज्य सरकारों के लिए कुछ स्थिरता सुनिश्चित करेगा.
2016 में पीएम मोदी ने पहली बार एक साथ चुनाव कराये जाने की वकालत की थी
लोकसभा में भाजपा को पहली बार बहुमत दिलाने के बाद मोदी ने 2016 में दिवाली के दौरान एक साथ चुनाव कराने की पहली बार सार्वजनिक वकालत की थी और एक ऐसी प्रक्रिया को गति दी थी जिस पर मिलेजुले विचार सामने आए थे। हालांकि यह आगे नहीं बढ़ सका था. मोदी ने लोकसभा, राज्य और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ कराने की पुरजोर वकालत तब की थी जब उन्होंने उसी साल मार्च में सर्वदलीय बैठक में अनौपचारिक रूप से इस विषय को उठाया था. उन्होंने तब व्यापक बहस की जरूरत पर बल देते हुए कहा था कि विपक्ष के कई नेताओं ने व्यक्तिगत रूप से इस विचार का समर्थन किया है लेकिन राजनीतिक कारणों से सार्वजनिक रूप से ऐसा करने से वह बच रहे हैं. पार्टी मंचों और सार्वजनिक रूप से, प्रधानमंत्री ने अक्सर यह तर्क दिया है कि अनवरत चुनावी चक्र से बड़े पैमाने पर सार्वजनिक व्यय होता है और विकास कार्य प्रभावित होते हैं. उन्होंने तर्क दिया था कि चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता किसी भी नयी विकास पहल की घोषणा पर रोक लगाती है और देश के विभिन्न हिस्सों में चुनाव कराने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की तैनाती भी जारी कार्यों के क्रियान्वयन के लिए एक बाधा है.
2019 में इस मुद्दे पर पीएम मोदी ने बुलाई थी सर्वदलीय बैठक
वर्ष 2019 में सत्ता में लौटने के बाद, मोदी ने इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, लेकिन कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सहित कुछ प्रमुख विपक्षी दलों ने इस विचार को लोकतंत्र विरोधी और संघवाद के खिलाफ बताते हुए इसकी आलोचना की थी.
I-N-D-I-A ने एक साथ चुनाव का किया विरोध
विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलांयस’ (इंडिया) के घटक दल एक साथ चुनाव कराने के विचार का विरोध कर रहे हैं. एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी और इस प्रकार संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी. भाजपा लोकसभा में आवश्यक संख्या जुटा सकती है, लेकिन राज्यसभा में उसके पास साधारण बहुमत भी नहीं है और उसे आवश्यक संख्या बल जुटाने के लिए समर्थन की आवश्यकता होगी.