इस्राइली दूतावास के बाहर बम विस्फोट की जांच करेगी मोसाद, जानिये इस्राइली खुफिया एजेंसी से क्यों खौफ खाते हैं दुश्मन
दिल्ली स्थित इस्राइली दूतावास के बाहर शुक्रवार शाम को बम विस्फोट हुआ. दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम और खुफिया एजेंसियां मामले की जांच कर रही है. लेकिन भारतीय एजेंसियों के साथ इस्राइली खुफिया एजेंसी मोसाद भी जांच में सहयोग कर रहा है. इस हमले की जांच के लिए मोसाद की टीम दिल्ली पहुंच चुकी है.
दिल्ली स्थित इस्राइली दूतावास के बाहर शुक्रवार शाम को बम विस्फोट हुआ. दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम और खुफिया एजेंसियां मामले की जांच कर रही है. लेकिन भारतीय एजेंसियों के साथ इस्राइली खुफिया एजेंसी मोसाद भी जांच में सहयोग कर रहा है. इस हमले की जांच के लिए मोसाद की टीम दिल्ली पहुंच चुकी है. इस्राइल पहले ही इसे आतंकी घटना करार दे चुका है. मोसाद का नाम सुनते ही इस्राइल के दुश्मनों के पसीने छूटने लगते हैं, क्योंकि वह दुश्मनों को खत्म किये बिना चैन की सांस नहीं लेता है. चाहे इसके लिये वर्षों का इंतजार क्यों नहीं करना पड़े.
यही कारण है कि मौजूदा समय में मोसाद को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए से भी खतरनाक माना जाता है. वर्ष 1949 में इस्राइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड बेन-गूरियन ने पड़ोसी दुश्मन देशों से मुकाबले के लिए सेना के खुफिया विभाग, आंतरिक सुरक्षा सेवा और विदेश के राजनीति विभाग के साथ समन्वय और सहयोग के लिए मोसाद का गठन किया और 1951 में इसे प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत लाया गया. अपने गठन के बाद मोसाद ने दुनिया में घातक से घातक मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है. मोसाद पहले अपने टारगेट तय करता है. फिर उसे हासिल करने के लिए व्यापक रणनीति बनाता है और फिर मिशन को अंजाम तक पहुंचाता है.
मोसाद के घातक मिशन : पिछले साल ईरान के एक परमाणु वैज्ञानिक की चौराहे पर हत्या कर दी गयी थी. ईरान ने हत्या का आरोप मोसाद पर लगाया था. हत्या के समय आस-पास के सभी सीसीटीवी बंद हो गये थे. इसके अलावा साल 2018 में मोसाद ने ईरान में घुसकर उसके परमाणु कार्यक्रम के अहम दस्तावेज हासिल कर लिया था. यह बेहद खतरनाक मिशन लगभग 6 छह घंटे तक चला. मोसाद को पता चला कि तेहरान में बना एक वेयरहाउस में ईरान के न्यूक्लियर मिशन के दस्तावेज रखे हुए हैं.
मोसाद के एजेंट ने रात को अलार्म सिस्टम से छेड़छाड़ कर वेयरहाउस में घुस गये और दस्तावेज लेकर निकल लिये. ईरान को इसकी भनक तक नहीं लगी. इसी तरह 1972 में म्यूनिख ओलिंपिक में इस्राइल ओलिंपिक टीम के 11 खिलाड़ियों को उनके होटल में फिलिस्तिनी आतंकियों ने मार दिया. आतंकी दूसरे देशों में छिप गये थे, लेकिन मोसाद ने सभी का पता लगाकर मार गिराया. यह ऑपरेशन बीस साल तक चला. 27 जून 1976 को रात के 11 बजे एयर फ्रांस की एयरबस ए300 वी4-203 ने तेल अवीव से ग्रीस की राजधानी एथेंस के लिए उड़ान भरी और आतंकियों ने इसे हाइजैक कर लिया.
विमान में 246 यात्री और 12 क्रू मेंबर सवार थे. अधिकतर यात्री इस्राइली थे. आतंकी विमान को पेरिस की बजाय लीबिया ले गये और ईंधन भरने के बाद युगांडा के एंतेबे हवाई अड्डे पहुंचे. युगांडा में तानाशाह ईदी अमीन ने सेना के खास लड़ाकों को सुरक्षा के लिये तैनात कर दिया था. आतंकवादियों ने इस्राइल से उसकी जेलों में बंद उनके साथियों को छोड़ने के लिये 48 घंटे का समय दिया. लेकिन बातचीत कर मोसाद ने आतंकियों को उलझाये रखा. वही मोसाद के कमांडो पूरे इंतजाम के साथ एंतेबे के लिए निकले और अचानक हमला किया और सभी आतंकियों को मार गिराया. मोसाद के ऐसे मिशन की फेहरिस्त काफी लंबी है.
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Posted by: Pritish Sahay