MP Election 2023: इस बार बीजेपी नहीं बनाएगी शिवराज को सीएम? दिग्गजों को उम्मीदवार बनाकर दिये कई संकेत

MP Election 2023: ऐसी बात कही जा रही है कि वर्ष 2008 और 2013 में बीजेपी को भारी जीत दिलाने वाले मुख्यमंत्री चौहान का अब पहले जैसा राजनीतिक रसूख नहीं रहा है. इसी धारणा के बीच पार्टी ने अपने कई बड़े नामों को मुकाबले में उतारकर नेतृत्व के मुद्दे को खुला रखने की कोशिश की है.

By Amitabh Kumar | September 26, 2023 7:54 PM
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MP Election 2023: इस साल मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले बीजेपी प्रदेश में सक्रिय हो गई है. बीजेपी ने उम्मीदवारों की तीन लिस्ट जारी की हैं. सोमवार को जारी दूसरी लिस्ट के बाद राजनीतिक बयानबाजी का दौर जारी है. दरअसल, बीजेपी ने नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते जैसे केंद्रीय मंत्रियों को मध्य प्रदेश के चुनावी दंगल में उतारने का ऐलान किया है, लेकिन मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पर संशय को बरकरार रखा है. इस कदम के जरिए बीजेपी ने एक मैसेज देने की कोशिश की है कि ‘मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी’ का रास्ता खुला रहेगा, यही नहीं कार्यकर्ताओं को संगठित करने और गुटबाजी पर लगाम कसने का प्रयास भी पार्टी की ओर से जारी रहेगा. आपको बता दें कि तीन केंद्रीय मंत्रियों के अलावा चार सांसदों और महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला इस बात की ओर भी इशारा करता है कि बीजेपी को कांग्रेस से इस चुनाव में कड़ी टक्कर मिल रही है. यही नहीं, यह इस बात के भी संकेत दे रहा है कि कहीं ना कहीं चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में सबसे लंबे तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान का प्रभाव भी सत्ता विरोधी लहर को कम करने में सफल नहीं रहा है. सत्ता पर काबिज रहने का प्रयास बीजेपी कर रही है. यही वजह है कि पार्टी ने जिन केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को उम्मीदवार बनाया है उनका अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभाव भी है. जैसे, तोमर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में प्रभाव रखते हैं वहीं पटेल लंबे समय से महाकौशल क्षेत्र में पार्टी का प्रमुख चेहरा रहे हैं. इसी प्रकार कुलस्ते का जनजातीय क्षेत्रों (महाकौशल) में प्रभाव है तो विजयवर्गीय मालवा-निमाड़ क्षेत्र में पार्टी के प्रमुख चेहरे हैं.

बीजेपी की दूसरी सूची पर नजर डालें तो पार्टी ने अपनी इस सूची में चार सांसदों राकेश सिंह और उदय प्रताप सिंह (महाकौशल क्षेत्र) तथा गणेश सिंह और रीति पाठक (रीवा व विंध्य क्षेत्र) को उम्मीदवार बनाया है. बीजेपी ने उन्हें ऐसी सीटों पर उम्मीदवार बनाया है जिनके अधिकांश क्षेत्रों में पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. इनमें से कुछ सांसद व मंत्री ऐसे भी हैं, जो पहली बार विधानसभा चुनाव के समर में उतरेंगे. ऐसी संभावना जरूर थी कि पार्टी कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में अपने कुछ सांसदों को मैदान में उतारेगी लेकिन जिस प्रकार से मध्य प्रदेश में सांसदों व केंद्रीय मंत्रियों को टिकट दिया गया है, उसने पार्टी के भीतर भी कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है. बीजेपी ने 39 सीटों के लिए उम्मीदवारों की दूसरी सूची में तीन केंद्रीय मंत्रियों और चार अन्य सांसदों को उम्मीदवार घोषित किया है. तोमर और फग्गन सिंह कुलस्ते उन सीटों से चुनाव लड़ेंगे जहां 2018 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. चार अन्य लोकसभा सांसदों में से तीन उन निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ेंगे जहां मुख्य विपक्षी पार्टी पिछले विधानसभा चुनावों में विजयी हुई थी.

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तीन बार सांसद रहे तोमर 2008 तक दो बार विधायक रहे

प्रदेश बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष तोमर को जुलाई में मध्य प्रदेश में पार्टी की चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक नियुक्त किया गया था. तीन बार सांसद रहे तोमर 2008 तक दो बार विधायक रहे और 2009 से लोकसभा में हैं. वहीं केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल पांच बार लोकसभा सदस्य जरूर रहे हैं लेकिन कभी विधायक नहीं रहे जबकि आदिवासी नेता कुलस्ते छह बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा के लिए चुने गए थे. पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे अन्य सांसदों में चार बार के लोकसभा सदस्य रहे गणेश सिंह और चार बार के ही लोकसभा सदस्य रहे राकेश सिंह शामिल हैं. राकेश सिंह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. पार्टी नेताओं का मानना है कि नेतृत्व ने कांग्रेस से भाजपा को मिल रही कड़ी चुनौती को स्वीकार करते हुए अपनी पसंद के उम्मीदवारों के साथ कई संदेश देने की कोशिश की है.

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ऐसी धारणा बनकर उभरी है कि वर्ष 2008 और 2013 में बीजेपी को भारी जीत दिलाने वाले मुख्यमंत्री चौहान का अब पहले जैसा राजनीतिक रसूख नहीं रहा है. और इसी धारणा के बीच पार्टी ने अपने कई बड़े नामों को मुकाबले में उतारकर नेतृत्व के मुद्दे को खुला रखने की कोशिश की है. सूत्रों ने कहा कि लंबे समय से मुख्यमंत्री की कुर्सी के आकांक्षी माने जाने वाले राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय सहित इन वरिष्ठ नेताओं के लिए यह संदेश भी है कि उन्हें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उनके नेतृत्व के दावे पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने से पहले पार्टी के लिए अच्छा प्रदर्शन सुनिश्चित करके अपनी क्षमता साबित करनी चाहिए.

गुटबाजी कम करने पर जोर

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को छोड़कर सभी क्षेत्रीय नेताओं के नवंबर-दिसंबर में संभावित विधानसभा चुनाव लड़ने के साथ, पार्टी को उम्मीद है कि इससे गुटबाजी कम होगी. यह एक ऐसा मुद्दा रहा है जिसने राज्य संगठन को परेशान किया है. पार्टी नेताओं ने कहा कि तोमर और राकेश सिंह ठाकुर हैं, पटेल लोधी (ओबीसी) हैं और गणेश सिंह कुर्मी (ओबीसी) हैं जबकि कुलस्ते आदिवासी समुदाय से हैं. उन्होंने कहा कि इन नेताओं को उम्मीदवार बनाए जाने का सामाजिक संदेश भी चुनाव में मददगार साबित हो सकता है और साथ ही इन नेताओं के आसपास के क्षेत्रों में पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भर सकता है.

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अब तक 79 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि बीजेपी चाहे किसी को भी मैदान में उतारे, राज्य के लोगों ने उसे सत्ता से बाहर करने का फैसला कर लिया है. विपक्षी दल ने कहा कि सूची की घोषणा के साथ ऐसा लगता है कि चुनाव से पहले ही परिणाम घोषित कर दिए गए हैं. यहां चर्चा कर दें कि मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा के लिए होने वाले चुनाव के लिए बीजेपी ने अब तक 79 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है. जिन सीटों के लिए उसने उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं, उनमें से अधिकांश वे सीटें हैं जिन्हें वह 2018 में हार गई थी.

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मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले ही भाजपा ने हार मानी

कांग्रेस ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी द्वारा उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी किए जाने के बाद मंगलवार को दावा किया कि चुनाव से पहले ही नतीजे स्पष्ट हो गए हैं क्योंकि भाजपा ने हार मान ली है. मुख्य विपक्षी दल के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने यह भी दावा किया कि मध्य प्रदेश में जिन लोगों ने ‘चोरी-छिपे’ सरकार बनाई, जनता उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने जा रही है. खेड़ा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने मध्य प्रदेश में अपने 51 मिनट के भाषण में 44 बार कांग्रेस का नाम लिया…जिस राज्य में 18 साल से भाजपा की सरकार है, वहां आप 44 बार कांग्रेस का नाम ले रहे हैं. यह बताता है कि मध्य प्रदेश में सरकार की उपलब्धियां ‘जीरो’ हैं.

भाषा इनपुट के साथ

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