मशहूर शायर मुनव्वर राणा आए दिन अपने ट्वीट के कारण ट्रोल होते हैं. वो अपनी शायरी से ज्यादा अपनी ट्वीट के कारण चर्चा में रहते हैं. आज फिर से राणा का एक ट्वीट चर्चा का विषय बन गया है. आज उन्होंने ट्वीट किया है इस मुल्क के नेताओं से अच्छे तो चम्बल के डाकू थे, जो अमीरों से लूटते थे और ग़रीबों में बांट देते थे!, समाजी बेबसी हर शहर को मक़तल बनाती है, कभी नक्सल बनाती है कभी चम्बल बनाती है. इस ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर जमकर उन्हें ट्रोल किया जा रहा है.
इस मुल्क के नेताओं से अच्छे तो चम्बल के डाकू थे, जो अमीरों से लूटते थे और ग़रीबों में बांट देते थे!
समाजी बेबसी हर शहर को मक़तल बनाती है,
कभी नक्सल बनाती है कभी चम्बल बनाती है।— Munawwar Rana (@MunawwarRana) May 7, 2020
उनके ट्वीट पर एक यूजर ने जवाब में लिखा बोलना कितना आसान होता है, कभी असली डाकू इनके सामने हो तो असली शायरी की पिचकारियां निकलेंगी.
एक अन्य यूजर ने राणा का खूब मजाक बनाया, उन्होंने लिखा ज़िबह की छुरी भी और इंजेक्शन की सूई भी, एक ही फौलाद से बन जाता है. एक ही समाज से निकल कर, कोई “—–” तो कोई “ए पी जे अब्दुल कलाम” बन जाता है.
फजीहत यहीं नहीं रुकी एक यूजर ने राणा को कुछ इस तरीके से जवाब दिया, उन्होंने जवाब में लिखा सियासत है जनाब, हर किसी की जबान लड़खड़ा जाती है, अब शायरों वालो के भी, जीभ फिसलने वालीं है.
इससे पहले भी दो दिनों पहले ही मुनव्वर राणा ने एक ट्वीट कर उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सभी नागरिकों को समान रूप से देखने की अपील की है. उन्होने कहा है कि अगर शराब की बिक्री पर पाबंदी हटाई गई है तो गोश्त भी बिकने दिया जाए. उन्होंने ट्वीट में लिखा, “योगी जी शराब पीने वालों को शराब पिलवाइए लेकिन हम लोगों को भी गोश्त खाने दीजिए.” उन्होंने ट्वीट में आगे शेर लिखा, “कम से कम इंसाफ का दामन ना छोड़ो हाथ से, मैं नहीं कहता कि तुम मेरी तरफ़दारी करो.”
इस ट्वीट पर भी राणा कि जमकर खिंचाई की गई थी. यूजर्स ने उनके इस ट्वीट पर खूब ट्रोल किया था. एक यूजर ने मजाकिए अंदाज में लिखा था, इनकी भी मांगने की आदत जाएगी नही. वहीं एक यूजर ने भी मुनव्वर राणा के ट्वीट पर लिखा बुजुर्ग उम्र से,दिमाग से 0 जीरो.
मालूम हो कि 40 दिनों के लॉकडाउन के बाद सरकार ने शराब की दुकानों को खोलने का निर्णय लिया था. हालांकि इस दौरान शराब की दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन किए जाने का निर्देश दिया गया था.
2014 में उर्दू साहित्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटने वाले मुनव्वर राणा ने लगभग एक साल बाद यह पुरस्कार लौटा दिया था. सन् 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव के लिए नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं द्वारा “असहिष्णुता” आंदोलन के दौरान शुरू किया था.