Muslim: मुस्लिम वोटरों के लिए भी असमंजस की स्थिति है, वो आम आदमी पार्टी के साथ जाएंगे या कांग्रेस के साथ. राजनीतिक पंडितों के अनुसार, दिल्ली के मुस्लिम वोटर परंपरागत तौर पर कांग्रेस को वोट देते आए हैं लेकिन 2015 में वह कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़ AAP के पाले में चले गए. 2020 के चुनाव में अल्पसंख्यक समुदाय ने और मजबूती से अरविंद केजरीवाल की पार्टी को साथ दिया. इसका नतीजा हुआ, पिछले चुनाव में ज्यादातर मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस के उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा सके.
इन सीटों से मुस्लिम उम्मीदवार ही जीतते आए
दिल्ली की पांच सीटें– सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान और ओखला से अक्सर मुस्लिम उम्मीदवार ही विधानसभा पहुंचते रहे हैं. चाहे वो किसी भी पार्टी से क्यों न हों. इसके अलावा बाबरपुर, गांधीनगर, सीमापुरी, चांदनी चौक, सदर बाजार, किराड़ी, जंगपुरा व करावल नगर समेत 18 सीट ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 10 से 40 फीसदी मानी जाती है. इन सीटों में मुस्लिम समुदाय निर्णायक भूमिका अदा करता रहा है.
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मौजूदा चुनाव में मुस्लिम वोटरों को साधना AAP के लिए आसान नहीं
मौजूदा चुनाव में मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में करना आसान नहीं होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि 2020 के दंगे, कोरोना महामारी के दौरान तब्लीगी जमात और अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े मुद्दों पर केजरीवाल की पार्टी ने चुप्पी साध ली थी. जिससे मुस्लिम वोटरों में आप को लेकर नाराजगी भी है.
दिल्ली में मुस्लिमों की आबादी 13 फीसदी
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, दिल्ली में मुस्लिम आबादी करीब 13 फीसदी थी. जानकार मानते हैं कि इस बार मुस्लिम मतदाता सत्तारूढ़ ‘आप’ और कांग्रेस को लेकर असमंजस में है.
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