तीसा (चंबा) : अजूबा है, यहां के सारवां गांव के खेतों में बिना बोए ही सरसों उगा करती है. लेकिन गांववाले इसे दैवीय चमत्कार ही मानते हैं. वे तेल निकालने या फिर साग बनाने में सरसों का इस्तेमाल करते हैं. वहीं, कृषि विशेषज्ञ कहते हैं कि फसल पकने के बाद सरसों के बीज वहां गिर जाते हैं और समय आने पर वही फसल के रूप में फिर उगते हैं.
मान्यताः गांव की बेटी ने मांगे थे वरदान
गांव के बुजुर्ग बलदेव व नारायण स्वरूप ने बताया कि कहा जाता है, सतयुग में भाई बैसुखी नाग के साथ संपत्ति के बंटवारे की शर्त जीतने के लिए झूठा प्रदर्शन करने पर मां अंजना देवी ने मेहलनाग को 12 वर्ष के लिए क्षेत्र से निकाल दिया था. तब वह सारवां गांव आ गया. यहां श्यामा भट्ट के घर शरण ली. वह उनकी पुत्री पुन्नीभट्ट से प्रेम करने लगा. 12 साल बीतने के बाद वह पुन्नी के साथ यहां से चला गया. रास्ते में सरस पहुंच कर पुन्नी को ध्यान आया कि वह न रही तो उसके माता-पिता पानी लाने के लिए परेशान होंगे.
इस पर मेहलनाग ने दो उंगलियों से पास की पहाड़ी पर वार किए तो वहां से पानी निकले लगा. वर्तमान में भी इन सरोवरों से पानी निकलता है. उसने गांव में तेल की कमी दूर करने को बिना बोए सरसों उगेगा और कोई बंज के पेड़ों का चारा न काट सकेगा, ये वरदान भी पुन्नीभट्ट के कहने पर दिए. गांव में तभी से बिना बोए सरसों उगने लगा. चोरी-छिपे बंज काटने पर, कहते हैं कि, आज भी पुन्नी की आवाज सुनाई देती है. ग्रामीण मेहलनाग और पुन्नीभट्ट के प्रति श्रद्धा रखते हैं. नई फसल, विशेषकर जौ की फसल होने पर सत्तू बना कर बैसाख माह में मेहलवार धार में चढ़ाते हैं.
ये चमत्कार नहीं, बीज से उगती है सरसों: ठाकुर
कृषि विभाग के एसएमएस डॉ. ईश्वर ठाकुर ने कहा कि यह कोई चमत्कार नहीं है. फसल पकने पर बीज अक्सर जमीन पर गिर जाते हैं. जो समय के बाद फिर से अंकुरित होते हैं. ऐसा ही सारवां में भी हो सकता है.
Posted By : Rajneesh Anand