मौसम बना दुश्मन! मुजफ्फरपुर की शाही लीची के लिए इस बार चुकानी पड़ सकती है ज्यादा कीमत
मुजफ्फरपुर की शाही लीची के यदि आप शौकीन हैं तो यह खबर आपके लिए खास है. जी हां...इस साल आपको शाही लीची का स्वाद लेने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं. जानें आखिर क्या है वजह
(मुजफ्फरपुर से ललितांशु की रिपोर्ट): पूर्वी भारत में बिहार के मुजफ्फरपुर की लीची की खासी मांग रहती है. यदि आप भी इस लीची के बाजार में आने का इंतजार कर रहे हैं तो, बता दें कि इस साल आपको इसका स्वाद लेने के लिए हर साल की तुलना में ज्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है. दरअसल, इस सीजन में शाही लीची का स्वाद थोड़ा महंगा हो सकता है. अच्छी गुणवत्ता वाली लीची के उत्पादन में मौसम का अनुकूल होना जरूरी है. उत्तर बिहार का मौसम का इस बार रूठा हुआ है. मुजफ्फरपुर जिला में लीची के बागों में बीते साल के मुकाबले 35 फीसदी मंजर कम आया है. हीटवेव की स्थिति, गर्म हवाएं और बढ़ता तापमान इस 70 फीसदी मंजर से बनने वाले फलों का आकार, स्वाद और गुणवत्ता को प्रभावित कर देगा. यही कारण है कि भौगोलिक संकेत (जीआई ) टैग हासिल कर चुकी मुजफ्फरपुर की लीची को हासिल करने के लिए जेब ढीली करनी पड़ेगी. कम उत्पादन इसकी कीमतों में भारी उछाल ला सकता है. वैज्ञानिक और किसान, कारोबारी इस स्थिति को लेकर अपनी- अपनी चिंता प्रकट भी कर रहे हैं.
गजेंद्र पांडे, दिलीप कुमार, मुजफ्फरपुर के यह दोनों अपनी लीची को अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए अभी से संघर्ष की कर रहे हैं. लीची के पेड़ों पर अक्टूबर, बहुत लेट हुआ तो नवंबर में नये पत्ते आ जाने चाहिए थे. इस बार ऐसा नहीं हुआ है. गजेंद्र पांडे कहते हैं. वह अपने पेड़ों पर कम मंजर को लेकर परेशान हैं. दिलीप कुमार भी ऐसा सोचते हैं. उनका कहना था कि गर्मी के कारण दिसंबर माह में नये पत्ते आए हैं. इस कारण मंजर नहीं आ सका. यह स्थिति उत्पादन से लेकर कारोबार तक पर असर करेगी. लीची की कीमत बढ़ने के साथ एक्सपोर्ट का खर्च भी बढ़ेगा. मुजफ्फरपुर में 12 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है. बीते वर्षों के रिकॉर्ड के अनुसार प्रतिवर्ष एक लाख टन लीची का उत्पादन होता है. इस वर्ष 75 से 80 हजार टन मात्र उत्पादन की संभावना मानी जा रही है. लीची की शाही किस्म ही सबसे अधिक प्रभावित है. हालांकि चाइना किस्म की लीची के बाग कम प्रभावित हैं. जिला में कुल पांच सौ करोड़ का कारोबार होता है.
करीब 25 हजार किसान जुड़े हैं लीची की खेती से
इस साल लीची के उत्पादन की संभावना इस वर्ष मंजर कम आने से 75 से 80 हजार टन के आसपास लीची का उत्पादन होने की संभावना है. इससे 20 रुपये प्रति किलो भाव बढ़ने की उम्मीद लीची उत्पादक संघ बता रहा है. पिछले वर्ष शुरुआत 40 रुपये प्रति किलो से हुई थी. भाव 100 रुपये किलो तक पहुंचा था. इस सीजन में लीची का रेट 120 रुपये से शुरु होने का अनुमान है. कारोबारियों के अनुसार प्रति वर्ष 15 से 20 टन ही लीची का निर्यात हो पाता है. ऐसे में निर्यात पर बहुत अधिक असर पड़ेगा यह कहना जल्दबाजी होगी.
प्रत्येक वर्ष मंजर सौ फीसदी आये और उत्पादन सही हो, इसको लेकर किसानों को हमेशा तकनीकी रूप से जानकारी दी जाती है. वहीं प्रत्येक महीने किसान-वैज्ञानिक वार्ता का आयोजन किया जाता है. ताकि लीची के उत्पादन को बढ़ाया जा सके. दवा छिड़काव से लेकर बाग को कैसे सुरक्षित रखा जाए, मंजर से पहले और मंजर के बाद लीची के फल को लेकर किसानों को लगातार जागरूक किया जाता है.
डॉ. विकास दास,निदेशक,लीची अनुसंधान केंद्र
उद्यान विभाग ने जारी की एडवाइजरी,अच्छी पैदावार के लिए बाग प्रबंधन करें किसान
लीची 15 मई के बाद से तैयार हो जाती है. लेकिन, उससे पहले अप्रैल का महीना लीची की फसल के लिए महत्वपूर्ण है. इस महीने लीची की सही तरीके से देखरेख नहीं की गयी, तो फसल अच्छी नहीं होगी और उत्पादकता प्रभावित होगी. लीची की फसल उत्तम क्वालिटी की हो, इसके लिए किसानों को विशेष रूप से ध्यान देना पड़ता है. अप्रैल में लीची की फसल को किसान कैसे सुरक्षित रखें और उत्तम फल के लिए बाग प्रबंधन कैसे करें, इसके लिए उद्यान विभाग ने एडवाइजरी जारी की है और किसानों को बताये गये निर्देशों को पालन करने को कहा है.
लीची उत्पादकों के अनुसार प्रत्येक वर्ष अक्टूबर से नवंबर माह में नये पत्ते आ जाते है. लेकिन इस बार गर्मी की वजह से दिसंबर माह में अधिकांश बागों में पल्लव आये. इस वजह से देर से पल्लव आने वाले पौधों में मंजर नहीं हो सका. जिसमें सबसे अधिक शाही लीची का मंजर प्रभावित हुआ है. मंजर नहीं आने से प्रति केजी 20 रुपये रेट बढ़ने की संभावना है. प्रति वर्ष लीची का 500 करोड़ का कारोबार है. लेकिन ओवर ऑल कारोबार पर कम असर पड़ेगा.
बच्चा प्रसाद सिंह, अध्यक्ष, बिहार लीची उत्पादक संघ
ऐसे करें लीची के बाग का प्रबंधन
- शाही व चाइना किस्म में यदि फल लग चुके हैं और फल का आकार लौंग का आकार ले चुका है, तो बगान से मधुमक्खी के बक्सों को हटा दें.
- फलों के लौंग का आकार होने पर बाग में हल्की सिंचाई करें
- फल लौंग के आकार होने पर 8-12 वर्ष के पौधों में 350 ग्राम यूरिया व 250 ग्राम पोटेशियम सल्फेट का व्यवहार करें और 15 वर्ष के ऊपर के पौधों में 500 ग्राम यूरिया व 350 ग्राम पोटेशियम सल्फेट का व्यवहार करें
- फलों को झड़ने से रोकने के लिए फल लगने के सात-दस दिन बाद प्लानोफिक्स एक मिली लीटर 4.5 लीटर पानी में या एनएए 20 पीपीएम एक लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें
- फलों को फटने की समस्या से रोकने के लिए फल लौंग के आकार के हों,तो पौधों में बोरेक्स दो फीसदी या जल में घुलनशील बोरॉन का चार ग्राम प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें