गिनीज ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ नाम
एक वक्त था, जब चंबल घाटी में मुरैना का नाम सुनते ही मन-मस्तिष्क पर बंदूक, डकैत, बीहड़ और बजरी की खौफनाक तस्वीर उभर आती थी. लोग दहशत में रहते थे कि कहीं उनके साथ कोई अप्रिय घटना ना हो जाये. मगर, समय के साथ यहां बहुत कुछ बदला है. इस बदलाव की एक सशक्त मिसाल बनी हैं 24 वर्षीया नंदिनी अग्रवाल. मध्यप्रदेश के छोटे से जिले मुरैना की बेटी नंदिनी साल 2021 में हुई चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) की परीक्षा में पूरे भारत में अव्वल आयी थीं. अब ‘गिनीज ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला सीए के तौर पर उनका नाम दर्ज हो गया है.
दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) बनीं नंदिनी अग्रवाल का जन्म साल 1999 में मध्यप्रदेश के मुरैना में हुआ था. उनके पिता नरेश चंद अग्रवाल पेशे से कर सलाहकार हैं, जबकि मां डिंपल गृहिणी हैं. उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुरैना के ही विक्टर कॉन्वेट स्कूल से पूरी की. बचपन से ही बेहद प्रतिभावान रही नंदिनी को पढ़ाने-लिखाने में उनके माता-पिता ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. उनकी प्रतिभा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब बच्चों को यूकेजी और एलकेजी में ककहरा और एबीसीडी के शब्द हाथ पकड़कर बनाना सिखाया जाता है, उस उम्र में नंदिनी हिंदी व अंग्रेजी पढ़ने और लिखने लगी थीं. यह देख स्कूल प्रबंधन ने एलकेजी में पढ़ रही नंदिनी को प्रमोट कर कक्षा दो में दाखिला दे दिया. इसके साथ ही वह अपने बड़े भाई सचिन के साथ पढ़ने लगीं.
नंदिनी ने मात्र 13 वर्ष की उम्र में दसवीं और 15 वर्ष की उम्र में 12वीं की परीक्षा उत्कृष्ट अंकों के साथ पास की थी. उस दौरान वह जिले भर में पहले स्थान पर आयी थीं. दोनों भाई-बहन ने एक साथ सीए की पढ़ाई की. इस दौरान उन्होंने सोशल मीडिया, मोबाइल से भी दूरी बनाकर रखी. दोनों का लक्ष्य हर हाल में सीए बनना था. उन्होंने तीन साल तक सामाजिक कार्यक्रम या अन्य गतिविधियों में भाग नहीं लिया. यहां तक कि वे घर से बाहर भी नहीं निकलते थे. उन्होंने सीए की पढ़ाई के लिए सीधे तौर पर कोई कोचिंग नहीं की, बल्कि सिर्फ ऑनलाइन कोचिंग ही ली.
साल 2021 में हुई सीए फाइनल परीक्षा में नंदिनी ने 800 में से 614 अंक हासिल किया. इसके साथ ही वह देशभर में पहले स्थान पर रही थीं. महज 19 वर्ष 330 दिन में दुनिया की पहली महिला सीए बनने का गौरव हासिल करने वाली नंदिनी के बड़े भाई सचिन ने भी देश में 18वीं रैंक हासिल की थी. मालूम हो कि नंदिनी से पहले सबसे कम उम्र के पुरुष 1956 में 19 साल के लखनऊ निवासी रामेंद्रचंद्र ने गिनीज रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया था. नंदिनी कहती हैं, ‘‘इस उपलब्धि में घर के सभी लोगों को योगदान रहा है. घरवालों ने मुझे हर वह सुविधा उपलब्ध करायी, जिसे मैं चाहती थी. अपने पुराने दिनों को याद कर वह कहती हैं, ‘‘मुझे पेपर देने ग्वालियर जाना पड़ता था. चिलचिलाती धूप व भीषण गर्मी में उनके पापा मुझे लेकर जाते और सेंटर के बाहर तीन से चार घंटे इंतजार करते थे. वहीं, मम्मी भी घर पर पूरा सपोर्ट करती थी. घर में पढ़ाई के सिवाय कोई और काम नहीं कर दिया जाता था. आज नंदिनी ने दुनिया की सबसे कम उम्र की सीए बन पूरे देश का नाम रोशन किया है.’’
नंदिनी कहती हैं, ‘‘जब मैं 11वीं में थी, तब हमारे स्कूल में गिनीज ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर आये थे. उस दौरान उन्हें सभी काफी मान-सम्मान दे रहे थे. उन्हें देखकर ही मैंने गिनीज ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवाने का ख्वाब देखा. आखिरकार, अब मेरा यह सपना भी पूरा हुआ. वे कहती हैं, मैंने 12 से 15 घंटे की पढ़ाई का क्रम कभी नहीं तोड़ा. यही अनुशासन काम आया. मुझे बैडमिंटन, टेबल टेनिस खेलने और दौड़ने का भी शौक था. दिल्ली मैराथन में कई बार भाग भी ले चुकी हूं.’’
नंदिनी अग्रवाल ने भले ही सीए जैसी कठिन परीक्षा पास कर ली, मगर कम उम्र होने की वजह से उन्हें अप्रेंटिसशिप करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. छोटी उम्र की वजह से कंपनियां उन्हें काम पर रखने से मना कर देती थीं. उनका मानना है कि इस तरह की असफलताओं ने उन्हें सफलता प्राप्त करने के लिए और अधिक दृढ़ बना दिया. नंदिनी की यह कहानी हर किसी के लिए मिसाल है कि असंभव कुछ भी नहीं. अपने जीवन में अगर आप भी कुछ करना चाहते हैं, तो आप अपनी मेहनत और एकाग्रता से सब कुछ हासिल कर सकते हैं.
नंदिनी महज 19 साल 330 दिन की उम्र में सीए बन गयी थीं. उन्होंने 83,000 उम्मीदवारों को पछाड़ते हुए देश में नंबर 1 रैंक हासिल की. अभी, वह मुंबई में सिंगापुर सरकार की कंपनी में नौकरी कर रही हैं. अपनी ऐतिहासिक कामयाबी पर नंदिनी कहती हैं,‘‘वास्तव में मेरे भाई ने मेरी सफलता में काफी अहम भूमिका निभायी. अपने मॉक टेस्ट में मुझे खराब अंक मिलते थे. यह बहुत निराशाजनक था. मैं निराश हो जाती और सोचती कि अगर मैंने मॉक टेस्ट में इतना खराब प्रदर्शन किया, तो मैं वास्तविक परीक्षा में कैसे सफल हो पाऊंगी. मेरे भाई के सपोर्ट ने जादू की तरह काम किया. वे हमेशा मुझे प्रैक्टिस करते रहने और मॉक टेस्ट के रिजल्ट के बारे में नहीं सोचने के लिए प्रोत्साहित करते. वे कहती हैं, मैं चंबल की लड़कियों से इतना ही कहूंगी कि सपना देखिए. अगर आप सपना नहीं देखती हैं, तो आपके जीवन का कोई मतलब नहीं है. ’’