National Engineers Day: भारत में एक ऐसे भी इंजीनियर जो तीसरी पास, प्रेरणास्रोत हैं ये भारतीय अभियंता
आज अगर तुम्हारे पास इंजीनियरिंग की डिग्री न हो, तो तुम्हें इस फील्ड से जुड़ी कंपनियों में नौकरी मिलने की गुंजाइश न के बराबर है, लेकिन भारत में एक ऐसे इंजीनियर भी हुए, जो सिर्फ तीसरी कक्षा तक पढ़े थे. आइए कुछ ऐसे भारतीय इंजीनियर्स के बारे में जानते हैं, जिनकी वजह से देश को एक नयी दिशा मिली.
National Engineers Day: हर वर्ष 15 सितंबर को अपने देश में इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाता है. यह दिन देश के महान इंजीनियर व भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को समर्पित है. इसी दिन वर्ष 1860 में उनका जन्म हुआ था. इस मौके पर कुछ ऐसे भारतीय इंजीनियर्स के बारे में जानते हैं, जिनकी वजह से इंजीनियरिंग के क्षेत्र में देश को एक नयी दिशा मिली. ये हमारे महान प्रेरणास्रोत हैं.
सिर्फ तीसरी कक्षा तक पढ़े थे इंजीनियर जीडी नायडू
आज अगर तुम्हारे पास इंजीनियरिंग की डिग्री न हो, तो तुम्हें इस फील्ड से जुड़ी कंपनियों में नौकरी मिलने की गुंजाइश न के बराबर है, लेकिन भारत में एक ऐसे इंजीनियर भी हुए, जो सिर्फ तीसरी कक्षा तक पढ़े थे. दरअसल, 23 मार्च, 1893 को जन्मे जीडी नायडू को स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था, लेकिन तकनीक से जुड़े कामों में उनका मन खूब रमता. यही वजह रही कि तीसरी कक्षा के बाद उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया. आगे चलकर बिना किसी डिग्री के उन्होंने कई आविष्कार किये. वर्ष 1937 में डी बालासुंदरम नायडू के साथ इन्होंने पहली भारतीय इलेक्ट्रिक मोटर विकसित की थी. इनके दूसरे आविष्कारों में इलेक्ट्रिक रेजर, जूसर, एक टेंपर प्रूफ वोटिंग मशीन और केरोसिन से चलने वाला पंखा भी शामिल था. नायडू की इन्हीं खूबियों के कारण उन्हें मिरेकल मैन और एडिसन ऑफ इंडिया भी कहा जाता है.
पहली महिला सिविल इंजीनियर शकुंतला ए भगत
शकुंतला ए भगत के नाम कई बड़ी उपलब्धियां हैं. उन्होंने कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक कुल 69 पुल बनाये हैं. वर्ष 1953 में मुंबई में वीरमाता जीजाबाई प्रौद्योगिकी संस्थान से सिविल इंजीनियरिंग से ग्रेजुएट डिग्री हासिल करने वाली शकुंतला ए भगत पहली महिला सिविल इंजीनियर बनीं. वर्ष 1960 में शकुंतला ने पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी से सिविल व स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री ली. इसके बाद, वह आईआईटी, मुंबई में सहायक प्रोफेसर और हैवी स्ट्रक्चर लैबोरेट्री की प्रमुख रहीं. वर्ष 1970 में, शकुंतला भगत ने अपने पति के साथ मिलकर पुल निर्माण कंपनी क्वाड्रिकॉन की स्थापना की. सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में इस फर्म ने यूके, यूएसए और जर्मनी सहित दुनियाभर में 200 पुलों को निर्माण किया है.
पहले भारतीय सुपर कंप्यूटर परम के निर्माता- विजय भटकर
वर्ष 1980 के दशक में अमेरिकन कंपनी ‘क्रे’ दुनिया में इकलौती सुपर कंप्यूटर बनाने वाली कंपनी थी. उस समय तकनीकी रिसर्च के लिए अपने देश को भी सुपर कंप्यूटर की जरूरत थी. ऐसे में भारत ने क्रे से सुपर कंप्यूटर खरीदने का फैसला किया, लेकिन अमेरिकी सरकार ने खरीद के लिए अनुमति देने से मना कर दिया. अमेरिकी सरकार का मानना था कि भारत इसका इस्तेमाल रिसर्च के लिए नहीं, बल्कि सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करेगा. ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने देश के प्रसिद्ध कंप्यूटर वैज्ञानिकों व इंजीनियरों की एक बैठक बुलायी. उन्होंने बैठक में उपस्थित इंजीनियरों से पूछा कि क्या हम भी सुपर कंप्यूटर बना सकते हैं?
बैठक में मौजूद इंजीनियर विजय पी भटकर ने कहा कि हमारे इंजीनियरों में इतनी काबिलियत है कि जितने में हम अमेरिका से सुपर कंप्यूटर खरीदने को तैयार थे, उससे बेहद कम लागत में सुपर कंप्यूटर बना सकते हैं. इसके बाद सुपर कंप्यूटर बनाने के लिए मार्च, 1988 में विजय पांडुरंग भटकर के नेतृत्व में सी-डैक (सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग) की स्थापना की गयी. अगले तीन सालों में भारत के इंजीनियरों ने असाधारण काम कर दिखाया. सी-डैक ने प्रस्तावित समय सीमा के भीतर अपना काम पूरा कर लिया. वर्ष 1991 में सी-डैक ने भारत के पहले स्वदेशी सुपरकंप्यूटर को शुरू किया, जिसका नाम था परम. खास बात है कि परम की कीमत कम होने की वजह से ब्रिटेन, कनाडा और जर्मनी ने भारत से कई सुपर कंप्यूटर खरीदे.
भारत की पहली महिला इंजीनियर थीं ए ललिता
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में आज लड़कियां भी नये-नये कीर्तिमान बना रही हैं. ए ललिता ने भारत की पहली महिला इंजीनियर बन कर महिलाओं के लिए इंजीनियरिंग के द्वार खोले. 27 अगस्त, 1919 में जन्मी ललिता सात बच्चों के परिवार में ललिता पांचवी संतान थीं. मात्र 15 वर्ष की उम्र में उनकी शादी हुई और 18 वर्ष में एक वह एक बच्ची की मां बन गयीं. बच्ची के जन्म के चार महीने बाद ही उनके पति का निधन हो गया. ललिता ने हिम्मत नहीं हारी और दोबारा पढ़ाई की शुरुआत की. बाद में उन्होंने मद्रास कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में दाखिला लिया और वर्ष 1943 में अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. इस तरह वह भारत की पहली महिला इंजीनियर बनीं. उन्होंने जमालपुर के रेलवे वर्कशॉप में एक साल की अप्रेंटिसशिप के साथ अपना प्रशिक्षण पूरा किया. कई जगहों पर काम करने के साथ ए ललिता भारत के सबसे बड़े भाखड़ा नांगल बांध के लिए जेनरेटर प्रोजेक्ट का हिस्सा बनीं. यह उनके द्वारा किये गये सबसे प्रसिद्ध कामों में से एक है.
अन्य रोचक तथ्य
अपने देश के साथ-साथ श्रीलंका व तंजानिया में भी 15 सितंबर को ही यह दिवस मनाया जाता है.
यह दिन अभियंताओं के महान कार्य को याद करने व इनोवेशन के लिए प्रोत्साहित करने हेतु मनाया जाता है.
यूनेस्को द्वारा प्रतिवर्ष 4 मार्च को विश्व अभियंता दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो इससे अलग है.
वर्ष 1955 में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को उनके द्वारा किये गये उत्कृष्ट कार्यों के लिए भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.
इंजीनियर शब्द लैटिन शब्द इंगनेटर से आया है, जिसका अर्थ है चतुर यानी क्लैवर. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तेजी से बढ़ना वाला इंजीनियरिंग फील्ड है. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि अगले कुछ वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कई मामलों में मनुष्य को भी पछाड़ सकती है.