उत्तराखंड में जोशीमठ के बाद दरकने लगा उत्तरकाशी, क्रैक हुईं 30 घरों की दीवारें

उत्तरकाशी जिले के घरों में दरार आने के मामले में मस्तादी गांव के प्रधान सत्यनारायण सेमवाल ने बताया कि वर्ष 1991 में उनके गांव में भूकंप आया था, उसके बाद से इस इलाके की जमीन लगातार खिसक रही है. गांव के कई घरों में ताजा दरारें पड़ी नजर आई हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 30, 2023 5:22 PM

देहरादून : उत्तराखंड में जोशीमठ के बाद अब उत्तरकाशी के गांवों में दरारें आने लगी हैं. खबर है कि उत्तरकाशी के कई गांवों के घरों की दीवारें दरकने लगी हैं. मीडिया की रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के मस्तादी गांव के घरों की दीवारों में दरारें आने से निवासियों में हड़कंप मची हुई है. मीडिया की रिपोर्ट से मिल रही जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड में भारी बारिश होने के बाद जमीन खिसकने लगी है, जिसके चलते घरों की दीवारों में दरारें आने लकी हैं.

1991 के भूकंप के बाद से खिसकने लगी है जमीन

अंग्रेजी के अखबार ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तरकाशी जिले के घरों में दरार आने के मामले में मस्तादी गांव के प्रधान सत्यनारायण सेमवाल ने बताया कि वर्ष 1991 में उनके गांव में भूकंप आया था, उसके बाद से इस इलाके की जमीन लगातार खिसक रही है. उन्होंने बताया कि गांव के कई घरों में ताजा दरारें पड़ी नजर आई हैं. हमें चिंता इस बात की है कि अब न जाने कौन सी मुसीबत आएगी.

मस्तादी गांवों के 30 घरों में दरार

मस्तादी गांव के प्रधान सत्यनारायण सेमवाल ने सरकार से अपील की है कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार को जल्द ही कोई कार्रवाई करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि गांव के कम से कम 30 के करीब घरों में दरारें आ गई हैं. उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह इन घरों में रहने वाले परिवारों के पुनर्वास की व्यवस्था करे. उधर, जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल ने बताया कि प्रभावित इलाकों के सर्वे के लिए भूविज्ञानियों की टीम को भेजा जाएगा. उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों की सलाह पर जरूरी कार्रवाई की जाएगी.

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1997 में ही भूविज्ञानियों ने सर्वे के बाद दी थी सलाह

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि भूविज्ञानियों की एक टीम ने 1997 में गांव का सर्वे करने के बाद जमीन के खिसकने को लेकर तत्काल कदम उठाए जाने की सलाह दी थी. हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि आज तक इस समस्या के निदान की दिशा में कोई भी प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जमीन खिसकने और घरों की दीवारों में दरारें पड़ने के अलावा नारायणपुरी और त्रिपकुंड मंदिरों के बीच अलकनंदा नदी के पास रहने वाले लोगों को भूस्खलन का भी डर सता रहा है. स्थानीय लोगों ने बताया कि बद्रीनाथ मास्टर प्लान के तहत जारी रिवरफ्रंट कार्य की वजह से ऐसा खतरा मंडरा रहा है.

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