भारत अब लैंगिक समानता की ओर आगे बढ़ रहा है. देश में अब हर एक हजार पुरुषों पर एक हजार बीस महिलाएं हो गई हैं. प्रजनन दर में भी कमी आई है जिससे जनसंख्या विस्फोट का भी खतरा घटा है. राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आंकड़ों में ये बातें सामने आई हैं. बता दें कि NFHS एक सैंपल सर्वे हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 24 नवंबर को ये आंकड़ें जारी किए हैं. बता दें कि बड़ी आबादी पर राष्ट्रीय जनगणना(National Census) होता है.
NFHS के अन्य आंकड़े
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भारत में युवाओं की संख्या अधिक है.
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15 साल से कम आयुवर्ग की जनसंख्या में हिस्सेदारी 2019-2021 में 34.9 फीसदी से घटकर 26.5 फीसदी रह गया है.
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प्रजनन दर घटा है. एक महिला के जीवन काल में बच्चों को जन्म देने की औसत संख्या घटकर 2.2 से 2 रह गई है.
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गर्भ निरोधक का इस्तेमाल 54 फीसदी से बढ़कर 67 फीसदी हो गया है.
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक विकास शील इसे महत्वपूर्ण उपलब्धि बताते हुए कहा कि जन्म के समय बेहतर लिंगानुपात और लिंगानुपात भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. भले ही वास्तविक तस्वीर जनगणना से सामने आएगी, हम अभी के परिणामों को देखते हुए कह सकते हैं कि महिला सशक्तिकरण के हमारे उपायों ने हमें सही दिशा में आगे बढ़ाया है.
राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आंकड़ों के अनुसार देश में पुरुषों के मुकाबले अब महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. अब हर 1000 पर 1020 महिलाएं हो गई हैं. 1990 के दौरान हर 1000 पुरुषों के मुकाबले महज 927 महिलाएं थी. साल 2005-06 में NFHS के आंकड़ों में महिलाओं और पुरुषों की संख्या 1000-1000 थी. हालांकि इसके बाद इसमें गिरावट दर्ज की गई. 2015-2016 में 1000 पुरुषों के मुकाबले 991 महिलाएं थीं. हालांकि अब महिलाओं ने संख्या के मामले में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है. हालांकि राज्यवार देखें तो कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पुरूषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या अधिक होने की संभावना है.