दिल्ली-मुंबई में पीएफआई के 23 मेंबर कोर्ट में किए गए पेश, हिरासत में भेजे गए कार्यकर्ता
टेरर फंडिंग के खिलाफ गुरुवार को देशव्यापी छापेमारी को एनआईए ने इसे अब तक का सबसे बड़ा जांच अभियान बताया है. अभी गिरफ्तारियों का विवरण उपलब्ध नहीं है, लेकिन अधिकारियों ने कहा कि एनआईए, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और 11 राज्यों के पुलिस बल ने गिरफ्तारियां की हैं.
नई दिल्ली/मुंबई : टेरर फंडिंग के मामले को लेकर भारत में गुरुवार को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की अगुआई में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के खिलाफ देशव्यापी छापेमारी शुरू की गई. इस दौरान पूरे देश में पीएफआई के सदस्य गिरफ्तार किए गए. मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, एनआईए की छापेमारी के दौरान गिरफ्तार किए गए पीएफआई के सदस्यों में से दिल्ली में 18 और मुंबई में 5 लोगों को एनआईए की अदालत में पेश किया गया. इन दोनों स्थानों पर कुल मिलाकर 23 पीएफआई सदस्यों को अदालत के समक्ष पेश किया गया. खबर यह भी है कि मुंबई में पीएफआई कार्यकर्ताओं को पांच दिन के लिए एटीएस की हिरासत में भेज दिया गया है. वहीं, दिल्ली में अदालत ने चार दिनों की हिरासत में भेजा.
महाराष्ट्र में औरंगाबाद जिले के एटीएस एसपी संदीप खड़े ने कहा कि महाराष्ट्र में नांदेड़ के पांच सहित 20 पीएफआई कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है. हमें सूचना मिली थी कि पीएफआई के कुछ कार्यकर्ता देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं. इसके साथ ही, एटीएस की टीम ने पीएफआई के पांच गिरफ्तार सदस्यों को मुंबई की सत्र अदालत में पेश किया.
देशव्यापी छापेमारी में पीएफआई के 106 सदस्य गिरफ्तार
बता दें कि कथित टेरर फंडिंग के खिलाफ एनआईए की अगुआई में छेड़े गए देशव्यापी अभियान के तहत कई एजेंसियों ने गुरुवार को सुबह 11 राज्यों में एक साथ छापे मारे और देश में टेरर फंडिंग में कथित तौर पर शामिल पीएफआई के करीब 106 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया. अधिकारियों ने बताया कि सबसे अधिक गिरफ्तारी केरल (22) में हुई. इसके बाद महाराष्ट्र (20), कर्नाटक (20), तमिलनाडु (10), असम (9), उत्तर प्रदेश (8), आंध्र प्रदेश (5), मध्यप्रदेश (4), पुडुचेरी (3), दिल्ली (3) और राजस्थान (2) में की गईं.
एनआईए का सबसे बड़ा अभियान
टेरर फंडिंग के खिलाफ गुरुवार को देशव्यापी छापेमारी को एनआईए ने इसे अब तक का सबसे बड़ा जांच अभियान बताया है. अभी गिरफ्तारियों का विवरण उपलब्ध नहीं है, लेकिन अधिकारियों ने कहा कि एनआईए, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और 11 राज्यों के पुलिस बल ने गिरफ्तारियां की हैं. अधिकारियों के मुताबिक, आतंकवादियों को कथित तौर पर धन मुहैया कराने, उनके लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करने और लोगों को प्रतिबंधित संगठनों से जुड़ने के लिए बरगलाने में कथित तौर पर शामिल व्यक्तियों के परिसरों पर छापे मारे जा रहे हैं.
2006 में हुई थी पीएफआई की स्थापना
गौरतलब है कि केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के तीन समान विचारधारा वाले संगठनों के नेताओं ने 2006 में एक साथ बैठकर मुस्लिम समुदाय को उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ेपन के मद्देनजर से सशक्त बनाने के लिए अखिल भारतीय संगठन बनाने की आवश्यकता पर चर्चा की. केरल के मलप्पुरम जिले के मंजेरी में हुई बैठक में लिये गये निर्णय के आधार पर केरल के राष्ट्रीय विकास मोर्चा (एनडीएफ), तमिलनाडु के मनिथा नीति पासराय और कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी के नेता कुछ महीने बाद बेंगलुरु में एकत्र हुए और तीनों संगठनों के विलय की घोषणा की. इसके परिणामस्वरूप पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का उदय हुआ.
पीएफआई ने छापेमारी का किया विरोध
पीएफआई की स्थापना के करीब 16 साल बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गुरुवार को 11 राज्यों में पीएफआई कार्यकर्ताओं पर छापे मारे और उनमें से कई को कथित तौर पर आतंकी गतिविधियों के लिए हिरासत में लिया गया. इस बीच संगठन ने असंतुष्टों का मुंह बंद कराने के लिए एजेंसियों के इस्तेमाल को लेकर फासीवादी शासन के कदम का विरोध किया. पीएफआई भारत के वंचित वर्गों के सशक्तीकरण के लिए एक नव-सामाजिक आंदोलन के प्रयास का दावा करता है. हालांकि, अक्सर कानून प्रवर्तन एजेंसियां इस संगठन पर कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देने का आरोप लगाती रही हैं.
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पीएफआई में कई सहयोगी संगठन शामिल
पीएफआई के पास अब कई सहयोगी संगठन हैं, जिनमें इसकी राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई), छात्र शाखा कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, नेशनल वीमेन्स फ्रंट, रिहैब इंडिया फाउंडेशन नामक एक गैर-सरकारी संगठन और एम्पावर इंडिया फाउंडेशन नामक एक थिंक टैंक शामिल हैं. कई विश्लेषकों ने पीएफआई की जड़ें एनडीएफ में होने की बात कही है, जो एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है, जिसे बाबरी मस्जिद के विध्वंस के परिणामस्वरूप एक साल बाद 1993 में बनाया गया था. प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के पूर्व नेताओं द्वारा स्थापित एनडीएफ की गतिविधियों पर 2002 और 2003 में कोझीकोड जिले में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद केरल में व्यापक चर्चा हुई थी, जिसमें दो समुदायों के लोगों की हत्या हुई थी.