Nipah Virus: केरल में निपाह वायरस ने लोगों को चिंता में डाल दिया है. इस बीच कर्नाटक स्वास्थ्य विभाग ने लोगों को आगाह किया है. केरल में निपाह के मामलों को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने एक सर्कूलर जारी किया है और लोगों को केरल के प्रभावित क्षेत्रों में अनावश्यक यात्रा करने से बचने की सलाह दी है. इधर, राजस्थान सरकार ने निपाह वायरस को लेकर बृहस्पतिवार को परामर्श (एडवाइजरी) जारी किया जिसमें चिकित्सा अधिकारियों से इस तरह के किसी भी मामले को लेकर ‘सतर्क’ रहने को कहा गया है.यह परामर्श केरल के कोझिकोड जिले में निपाह वायरस के मामले सामने आने के मद्देनजर जारी किया गया है.
In view of Nipah cases in Kerala, Karnataka Govt issued a circular and has advised the general public to avoid unnecessary travel to affected areas of Kerala; intensify surveillance in the bordering districts to Kerala ( Kodagu, Dakshin Kannada, Chamrajanagara & Mysore) and at… pic.twitter.com/41whQrTgx2
— ANI (@ANI) September 15, 2023
इस बीच केरल के कोझिकोड जिले में निपाह के प्रकोप के मद्देनजर आईसीएमआर ने इससे निपटने के लिए राज्य के आग्रह पर ‘एंटीबॉडी’ उपलब्ध कराने का काम किया है. केरल को संदिग्ध संक्रमितों के नमूनों की जांच के लिए एक सचल प्रयोगशाला भी भेजी गई है.
क्या बताया आईसीएमआर ने
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर ने कोझिकोड में ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ की आपूर्ति की. बताया जा रहा है कि वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज करने के लिए एंटीवायरल ही सरकार के पास उपलब्ध एकमात्र विकल्प है, हालांकि यह कितना उपयोगी है इसको लेकर अभी तक चिकित्सकीय रूप से जानकारी नहीं है. आईसीएमआर के पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान ने निपाह वायरस के संदिग्ध संक्रमितों की समय से जांच के लिए गुरुवार को अपनी सचल बीएसएल-3 (बायोसेफ्टी लेवल-3) प्रयोगशाला केरल के कोझिकोड भेजी.
चौथी बार केरल में इस वायरस के संक्रमण की पुष्टि
खबरों की मानें तो यह चौथी बार है जब केरल में इस वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई है. 2018 और 2021 में कोझिकोड में और 2019 में एर्नाकुलम में भी इस वायरस के संक्रमण के मामले सामने आये थे. एम102.4 मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, एक प्रायोगिक दवा है जिसे कोझिकोड में 2018 निपाह प्रकोप के दौरान संक्रमित लोगों के इलाज के लिए मंगवाया गया था. तब इसका उपयोग नहीं किया गया क्योंकि दवा की आपूर्ति होने तक निपाह वायरस का प्रकोप समाप्त हो चुका था.
जानें क्या है निपाह वायरस?
सेंटर फ़ॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की मानें तो निपाह वायरस के बारे में सबसे पहले 1998 में मलेशिया के कम्पंग सुंगाई निपाह से पता चला था. यहीं से इसका नाम निपाह वायरस पड़ा. उस वक्त कुछ सुअर के किसानों को मस्तिष्क में बुखार हुआ था. इसलिए इस गंभीर बीमारी के वाहक सुअर को बताया गया. सिंगापुर में भी इसके बारे में 1999 में पता चला था. ये सबसे पहले सुअर, चमगादड़ या अन्य जीवों को प्रभावित करता है. इसके बाद संपर्क में आने वाले मनुष्यों को भी चपेट में ये लेता है.
कैसे फैलता है निपाह वायरस?
निपाह वायरस की बात करें तो ये संक्रमित चमगादड़, संक्रमित सूअरों या अन्य NiV संक्रमित लोगों से सीधे संपर्क के माध्यम से मनुष्यों में फैलता है जो एक गंभीर इंफेक्शेन की श्रेणी में आता है. यह इंफेक्शीन फ्रूट बैट्स या flying foxes के माध्यम से भी प्रसारित होता है जो हेंड्रा और नेपाह वायरस के प्राक्रतिक संग्रह के समुदाय हैं. ये वायरस चमगादड़ के मूत्र, मल, लार और प्रसव तरल पदार्थ में मौजूद होता है.
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निपाह वायरस संक्रमण के लक्षण क्या होते हैं जानें
-निपाह वायरस संक्रमण के शुरूआती दौर में सांस लेने में समस्या होने लगती है. वहीं आधे मरीज़ों में न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें भी होती हैं.
– बुखार, सिरदर्द, मानसिक भ्रम, उल्टी और बेहोशी निपाह वायरस से संक्रमित को परेशान करती है.
– मनुष्यों में निपाह वायरस, encephalitis से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से मस्तिष्क में सूजन होने लगती है.
– संक्रमण के लक्षणों को सामने आने में आमतौर पर पांच से चौदह दिन लग सकते हैं.
– संक्रमण बढ़ जाने से मरीज कोमा में भी जा सकता है और इसके बाद इंसान की जान भी जा सकती है.