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Cyclone Nisarga: भारत से टकराने आ रहा निसर्ग तूफान, जानिए कैसे पड़ा इस साइक्लोन का नाम

Nisarga Cyclone Live Tracking, Cyclone Nisarga Live Updates, Weather Alert दुनियाभर में तूफानों, चक्रवातों या महामारियों का नामकरण करने की प्रक्रिया है. यही कारण है कि अगले कुछ घंटों में आने वाले चक्रवाती तूफान का नाम "निसर्ग" रखा गया है. इसके अलावा पूरे विश्व में काल बनकर मंडरा रहे महामारी का नाम "कोरोना" रखा गया है. पूर्व में भी आये तूफान या चक्रवात का नाम फूल, पक्षी, पौधे, ओरनामेंट, महिला, प्रकृति आदि पर रखे जाता रहा है जैसे- वायु, मेघ, सागर, अम्फान, नीलम, कैटरीना, इरमा, हुदहुद, नीलोफर आदि. ऐसे में आपको भी जानने की इच्छा हो रही होगी कि ऐसा नाम कौन और क्यों रखता है? तो आइये जानते हैं...

By SumitKumar Verma | June 3, 2020 12:45 PM

Nisarga Cyclone Live Tracking, Weather Alert : दुनियाभर में तूफानों, चक्रवातों या महामारियों का नामकरण करने की प्रक्रिया है. यही कारण है कि अगले कुछ घंटों में आने वाले चक्रवाती तूफान का नाम “निसर्ग” रखा गया है. इसके अलावा पूरे विश्व में काल बनकर मंडरा रहे महामारी का नाम “कोरोना” रखा गया है. पूर्व में भी आये तूफान या चक्रवात का नाम फूल, पक्षी, पौधे, ओरनामेंट, महिला, प्रकृति आदि पर रखे जाता रहा है जैसे- वायु, मेघ, सागर, अम्फान, नीलम, कैटरीना, इरमा, हुदहुद, नीलोफर आदि. ऐसे में आपको भी जानने की इच्छा हो रही होगी कि ऐसा नाम कौन और क्यों रखता है? तो आइये जानते हैं…

भ्रष्ट नेताओं के नाम पर रखा जाता था नाम

दरअसल, तूफानों और महामारियों के नामकरण की प्रक्रिया तो सन 1953 से चली आ रही है. लेकिन, इसमें कुछ अहम सुधार भारत की ओर से की गई है. सबसे पहले यह पहल अटलांटिक क्षेत्र में वर्ष 1953 में एक संधि के माध्यम से हुई थी. अटलांटिक क्षेत्र के मियामी स्थित राष्ट्रीय हरिकेन सेंटर से यह पहल की गई.

सर्वप्रथम, चक्रवातों का नाम ऑस्ट्रेलिया में भ्रष्ट नेताओं के नाम पर रखा जाता था. वहीं, अमेरिका जैसे देश में इसे महिलाओं के नाम पर रखा जाता था. लेकिन, इसमें सुधार करके 1979 के बाद से इसे पहले पुरूष और फिर महिला के नाम पर रखा जाता है.

भारत की पहल पर नामकरण

आपको बता दें कि भारत की पहल पर हिन्द महासागर के 8 देशों ने वर्ष 2004 में इन तूफानों और चक्रवातों के नामकरण की शुरूआत की थी. इन देशों में भारत सहित श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, पाकिस्तान, ओमान और थाईलैंड शामिल हैं.

किसके नाम पर कौन करता है नामकरण

तूफानों के नाम मौसम विभाग जबकि महामारी के नाम विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्था करती है. यह नाम फूल, पक्षी, पौधे, ओरनामेंट, महिला, प्रकृति आदि के नाम पर किया जाता है. यही कारण है की कोरोना महामारी का नाम अंग्रेजी शब्द “क्राउन” के नाम पर रखा गया है. जिसका अर्थ होता है “मुकूट”.

वहीं, नवम्बर 2017 में आये भयंकर चक्रवात “ओखी” का नाम बांग्लादेश ने किया था जिसका अर्थ बांग्ला में “आंख” होता है. इसके अलावा पाकिस्तान से आए एक चक्रवात नाम ‘नीलोफ़र’ रखा गया था. वहीं, 2012 में यहीं के एक चक्रवात का नामकरण ‘नीलम’ किया गया था. जबकि भारत में कुछ चक्रवातों का नाम मेघ, सागर, और वायु भी रखा जा चुका है.

भारत में क्यों रखा जाता है संस्कृत नाम

भारतीय मौसम विभाग की मानें तो भारत की संधि कुल 13 देशों से है. ऐसे में जिस देश का चक्रवात या तूफान होगा वहां के देश का अधिकार होगा नामकरण करने का. इसके लिए विभीन्न देशों को सूची भेजी जाएगी, उसमें इससे संबंधित बोर्ड या पैनल इसका चयन करेंगे. मौसम विभाग ने बताया कि भारत में ज्यादातर नाम संस्कृत के होते है. वैसे ही अन्य देशों का भी अपना चयन करने का प्रक्रिया है. भारत में बे-ऑफ-बंगाल से उठने वाले चक्रवातों का ही नामकरण किया जाता है. नाम रखने समय यह ध्यान दिया जाता है कि इससे कोई समाज या वर्ग आहत न हो. यही कारण है कि यहां चक्रवातों का नाम वायु, मेघ, सागर आदि रखा जाता है. निसर्ग का अर्थ नेचर होता है अत: इसका नाम भी प्राकृतिक से संबंधित है और इसका किसी समाज या वर्ग से कोई लेना देना नहीं है.

महामारी का सॉफ्ट नाम क्यों

वहीं, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि महामारी की भयावहता को समाप्त करने अर्थात लोग इससे कम भयाक्रांत हो, इसी उद्देश्य कोरोना जैसी महामारी का सॉफ्ट नाम रखा जाता है. यहां कोरोना का अर्थ ताज या मुकूट है.

वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो किसी महामारी या वायरस का नाम क्लिनिकल ट्रायल, टीकों और दवाओं के विकास को सुविधाजनक बनाने हेतु रखा जाता है. यही कारण है कि कोरोना और एचआईवी जैसे वायरसों का नाम उसके संरचना, लक्षण और क्लिनिकल सुविधा को देखते हुए वायरोलॉजिस्ट और व्यापक वैज्ञानिक कम्यूनिटी द्वारा किया जाता है और वायरस के नामकरण की जिम्मेदारी इंटरनेशनल कमिटी ऑन टैक्सोनॉमी ऑफ वायरस (ICTV) पर होती है.

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