केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी बोले- न्याय में देरी के कारण करोड़ों रुपये का होता है नुकसान
एमएनएलयू के दीक्षांत समारोह में नितिन गडकरी ने कहा कोर्ट द्वारा समय से निर्णय नहीं मिलने पर करोड़ों रुपये का नुकसान होता है. मैंने खुद न्याय में देरी के कारण कंपनियों को बर्बाद होते देखा है.
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को कहा कि एक मुक्त एवं निष्पक्ष लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र और तटस्थ न्यायिक प्रणाली सबसे बड़ी आवश्यकता है. सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री गडकरी ने नागपुर में महाराष्ट्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के एक सुविधा खंड के उद्घाटन के मौके पर यह टिप्पणी की. उन्होंने कहा, अगर अदालतों में समय सीमा में निर्णय होगी, तो देश को हजारों करोड़ रुपये के नुकसान से बचाया जा सकता है. मैंने खुद न्याय में देरी के कारण कंपनियों को बर्बाद होते देखा है.
If there will be a time limit (in decisions), then the country could be saved from losses worth thousands of crores of rupees. I have myself seen companies getting ruined because of the delay in justice: Union Min Nitin Gadkari at Maharashtra National Law University in Nagpur pic.twitter.com/yY9h77f0GL
— ANI (@ANI) July 10, 2022
जानें गडकरी ने पीएम मोदी से कहा
गडकरी ने समय को सबसे बड़ी पूंजी बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में कई प्रशासनिक सुधार किए गए हैं. गडकरी ने कहा, कैबिनेट बैठक के दौरान जब न्यायाधिकरणों और अन्य चीजों पर चर्चा होती है तो मैं अक्सर कानून मंत्री और प्रधानमंत्री से कहता हूं कि निर्णय जो भी हो, फैसले करना न्यायपालिका का अधिकार है और यह किसी के प्रभाव में नहीं होना चाहिए.
निष्पक्ष न्यायिक व्यवस्था लोकतंत्र की जरूरत
लोकतंत्र के चार स्तंभों-विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया की तारीफ करते हुए गडकरी ने कहा, एक स्वतंत्र, तटस्थ और निष्पक्ष न्यायिक प्रणाली एक मुक्त एवं निष्पक्ष लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है. उन्होंने विकास कार्यों के लिए समयसीमा का पालन और देरी की वजहों को दूर करने की भी वकालत की, जिससे देश के हजारों करोड़ रुपये की बचत हो सके.
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देश में 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित
वहीं, कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने शनिवार को एमएनएलयू के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा था कि देश में पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं. यह चिंता का विषय है. भारतीय अदालतों में प्रत्येक न्यायाधीश औसतन प्रतिदिन 40 से 50 मामलों की सुनवाई करते हैं. अगर मामलों का निबटारा समय से नहीं किया जाता है तो लंबित मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रहेगी.