देश में कोरोना वायरस के नये वैरिएंट ओमिक्रॉन का खतरा बढ़ता जा रहा है. अबतक कुल 65 मामले ओमिक्रॉन के देश में आ चुके हैं. कई एक्सपर्ट यह मानते हैं कि ओमिक्रॉन वैरिएंट से सबसे ज्यादा खतरा बच्चों को है.
इन हालत में बच्चे स्कूल जा रहे हैं और कई राज्यों में तो कक्षा एक से ही स्कूल खोल दिये गये हैं. ऐसे में माता-पिता यह सोचकर डरे हुए हैं कि क्या बच्चों को स्कूल भेजना अभी सही है? क्या उन्हें संक्रमण का डर नहीं है? इस संबंध में इंडिया टुडे ने डॉ लांसेट पिंटों से बातचीत की और उनसे ओमिक्रॉन वैरिएंट के बारे में जानकारी ली.
डॉ पिंटों का कहना है कि कोरोना वायरस ने विश्व में कहीं भी बच्चों को गंभीर रूप से प्रभावित नहीं किया है. बच्चे प्रभावित हुए हैं लेकिन उनमें माइल्ड लक्षण ही उभरे हैं. उन्हें हल्की सर्दी-खांसी होती है और वे जल्दी ही रिकवर हो जाते हैं. हालांकि इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता है कि बच्चे इस वायरस से संक्रमित नहीं हो सकते, लेकिन माता-पिता को यह समझना होगा कि बच्चों में संक्रमण का जो स्तर है, वो बहुत हल्का है और स्कूल में पढ़ाई के कई फायदे हैं.
डॉ लांसेट पिंटो ने कहा कि स्कूल प्रबंधन को इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे स्कूल में कोरोना प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन करें. बच्चों को बार-बार साबुन या सेनिटाइजर से हाथ धोने का निर्देश देना चाहिए. साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे मास्क जरूर पहनें. क्लास रूम की खिड़कियां और दरवाजे को बंद करके रखना चाहिए.
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डॉ पिंटो ने कहा कि हालांकि अबतक देश में बच्चों को कोरोना का वैक्सीन नहीं लगा है, लेकिन सीरो सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है कि 50 से 60 प्रतिशत बच्चों में एंटीबॉडीज विकसित हो चुकी है. ऐसे में जो बच्चे स्कूल आ रहे हैं उनमें दो तिहाई में कोरोना का एंडीबॉडीज डेवलप है. अगर हम वैक्सीन का इंतजार करेंगे तो हमें अपने बच्चों को और एक साल तक स्कूल से दूर रखना होगा.
ऐसे में यह जरूरी है कि सुरक्षा का खास ध्यान रखा जाये और बच्चों के साथ रहने वाले सभी वयस्क वैक्सीन की दोनों डोज लें, ताकि वे स्वस्थ रहें. बच्चों में होने वाला संक्रमण बहुत गंभीर नहीं है इसलिए घबराएं नहीं और सुरक्षा का पालन करते हुए बच्चों को स्कूल भेजें.