कभी मुंबई की सड़कों पर बेचा करती थी फूल, अब अमेरिका में शोध करेंगी सरिता
सरिता माली जो कभी मुंबई की सड़कों पर फूल बेचा करती थी वो अब यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में पीएचडी करने जा रही है. सरिता का घाटकोपर की एक झोपड़पट्टी से अमेरिका का सफर वाया जेएनयू, संघर्ष से सपने को पूरा करने की एक अनूठी कहानी है.
मुंबई की एक झोपड़पट्टी में जन्मी सरिता की शुरुआती पढ़ाई मुंबई के नगर निगम के एक स्कूल में हुई. सरिता के पिता रामसूरत माली मुंबई में सड़क की ट्रैफिक सिग्नल पर फूल बेचते थे. सरिता भी जब थोड़ी बड़ी हुई, तो वह भी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सड़क पर फूल बेचने के लिए गाड़ियों के पीछे-पीछे भी दौड़ती रहीं, लेकिन इन सबके बीच कुछ बनने का सपना हमेशा सरिता की आंखों में समाया रहा.
उन्होंने कभी भी अपने ऊपर नकारात्मकता को हावी नहीं होने दिया और पढ़ाई भी जारी रखी, क्योंकि उसे पिता की सीख हमेशा याद रही कि शिक्षा एकमात्र ऐसा हथियार है, जो उसे इस जहालत भरी जिंदगी से छुटकारा दिला सकती है.
10वीं के बाद पढ़ाया ट्यूशन
सरिता के परिवार में पिता रामसूरत माली और मां सरोज माली के अलावा दो भाई और एक बहन हैं. सरिता के पिता उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के अपने पैतृक गांव खजूरन में घरों में घूम-घूम कर फूल की माला बेचते थे, लेकिन परिवार बड़ा होने के कारण भरण-पोषण बहुत मुश्किल से हो रहा था, इसलिए 18 वर्ष की उम्र में वे रोजगार की तलाश में मुंबई चले गये थे.
मुंबई में भी उन्होंने फूल बेचने का काम शुरू कर दिया. सरिता का परिवार मुंबई के ट्रैफिक सिग्नलों पर फूल बेचकर गुजारा करता था. जब सरिता कक्षा छह में पढ़ती थीं, तभी से उन्होंने अपने पिता के साथ मुंबई के ट्रैफिक सिग्नलों पर फूल बेचना शुरू कर दिया था. कक्षा दसवीं पास करने के बाद सरिता ने इलाके के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया, ताकि वह पढ़ने की अपने पिता की इच्छा पूरी कर सके. ट्यूशन से पैसे बचा-बचाकर सरिता ने स्नातक किया और जेएनयू तक पहुंची.
जेएनयू के बारे में मामा से सुना
सरिता के अनुसार, शिक्षा को लेकर उनके माता-पिता शुरू से सजग रहे. हालांकि, उनके पिताजी ज्यादा पढ़े नहीं हैं, लेकिन माता आठवीं तक पढ़ी हैं. एक बार सरिता जब अपने नानी के घर गयी हुई थीं, तो वहां उन्होंने अपने मामा को जेएनयू के बारे में बोलते सुना. वे अपने बेटे से कह रहे थे कि यदि जेएनयू में पढ़ लिया तो कुछ-न-कुछ बन ही जाओगे. यह बात सरिता के मन-मस्तिष्क में अटक गयी. सरिता के मुताबिक, उन्हें पढ़ने का शौक इतना रहा है कि जैसे ही लाइब्रेरी जाने का समय होता. वह सब कुछ छोड़कर वहां पहुंच जाती थीं.
उतार-चढ़ाव जीवन का हिस्सा
सरिता के मुताबिक, सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं. जब दिनभर में फूल के बिकने से उनका परिवार मुश्किल से 300 रुपये कमा पाता था. उस स्थिति में पिता की सीख याद आ जाती कि अगर हम नहीं पढ़ेंगे, तो पूरा जीवन खुद को जिंदा रखने के संघर्ष और भोजन की व्यवस्था करने में बीत जायेगा.
सरिता माली
उम्र : 28 वर्ष
फेलोशिप : चांसलर फेलोशिप, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, यूएसए
माता-पिता : सरोज माली व रामसूरत माली
जन्मस्थान : घाटकोपर झुग्गी, मुंबई
प्रारंभिक शिक्षा : नगर निगम स्कूल, मुंबई
स्नातक : केजे सोमैया कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स, मुंबई
स्नातकोत्तर, एमफिल, पीएचडी : स्कूल ऑफ लैंग्वेज (हिंदी), जेएनयू, नयी दिल्ली
मूल निवासी : जौनपुर, उत्तर प्रदेश
मिला अमेरिका का प्रतिष्ठित चांसलर फेलोशिप
सरिता ने हायर एजुकेशन के लिए अमेरिका की दो विश्वविद्यालयों में अप्लाइ किया था, जिनमें से दोनों में ही उनका चयन हो गया, लेकिन सरिता ने आगे की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया को चुना है. दरअसल, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया ने मेरिट व एकेडमिक रिकॉर्ड के आधार पर सरिता को अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप में से एक ‘चांसलर फेलोशिप’ दी है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में वह ‘भक्ति काल के दौरान निम्नवर्गीय महिलाओं का लेखन’ विषय पर शोध करेंगी.