One Rank One Pension: वन रैंक वन पेंशन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने वन रैंक, वन पेंशन (OROP) पर सरकार के फैसले को बरकरार रखा है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, कोर्ट को वन रैंक वन पेंशन सिद्धांत और 7 नवंबर, 2015 की अधिसूचना पर कोई संवैधानिक दोष नहीं लगता है. बता दें, वन रैंक वन पेंशन की मांग को लेकर इंडियन एक्स सर्विसमेन मूवमेंट (Indian Ex Servicemen Movement) की ओर से एक याचिका दाखिल की गई थी. इस मामले पर सुनवाई पिछले महीने फरवरी में ही हो गई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रख लिया था.
Supreme Court upholds the government's decision on One Rank, One Pension (OROP) and says it does not find any constitutional infirmity on the OROP principle and the notification dated November 7, 2015. pic.twitter.com/9rc25Qp1td
— ANI (@ANI) March 16, 2022
फैसले को मिली थी चुनौती: इस मामले में याचिकाकर्ता भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन (IESM) ने वन रैंक वन पेंशन पर 7 नवंबर, 2015 को दिए फैसले को चुनौती दी थी. याचिकाकर्ता भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन ने इसमें दलील देते हुए कहा था कि यह फैसला मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है. आईईएसएम का कहना है कि, यह वर्ग के अंदर एक और वर्ग बनाता है और प्रभावी रूप से एक रैंक को अलग पेंशन देता है, दूसरे को अलग.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से किए सवाल: मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सरकार से कई सवाल किए. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र से पूछा था कि क्या केंद्र पेंशन के स्वत: वृद्धि के फैसले पर वापस चला गया है. पेंशन संशोधन 5 साल पर क्यों तय किया गया? कोर्ट ने पूछा कि इसे सालाना क्यों नहीं किया जा सकता?
बीते महीने की सुनवाई में न्यायमूर्ति डी. वाई़ चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने ये सवाल केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एन वेंकटरमण से किए. एएसजी ने सात नवंबर, 2015 की अधिसूचना को सही ठहराने का प्रयास किया. पीठ ने वेंकटरमण से कहा, ‘संसद में 2014 में रक्षा मंत्री द्वारा यह घोषणा किए जाने के बाद कि सरकार सैद्धांतिक रूप से ओआरओपी देने के लिए सहमत हो गई है, क्या सरकार किसी भी समय भविष्य में स्वत: वृद्धि करने के अपने निर्णय से पीछे हट गई है.’
एएसजी ने कहा कि सर्वोच्च अदालत के कई फैसले हैं, जिनमें कहा गया है कि संसद में मंत्रियों द्वारा दिए गए बयान कानून नहीं हैं क्योंकि वे लागू करने योग्य नहीं हैं और जहां तक पेंशन में भविष्य में स्वत: वृद्धि का संबंध है, यह किसी भी प्रकार की सेवा में समझ से परे है. उन्होंने कहा कि 2015 का निर्णय, विभिन्न पक्षों, अंतर-मंत्रालयी समूहों के बीच गहन विचार-विमर्श के बाद भारत सरकार द्वारा लिया गया एक नीतिगत निर्णय था.