सिंधुताई सपकाल का निधन, बेटी को दान कर हजारों अनाथ की बनी थीं मां, 750 से ज्यादा पुरस्कार हैं इनके नाम

सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी बेटी को दगडू सेठ हलवाई , पुणे ट्रस्ट को दत्तक दे दिया. ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्यों कि वह अनाथों की मां बनना चाहती थीं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 5, 2022 12:27 AM

अनाथों की नाथ कही जाने वालीं सिंधुताई सपकाल का मंगलवार को निधन हो गया. वह पिछले डेढ़ महीने से बीमार चल रही थीं. उनके जीवन पर फिल्म भी बन चुकी है. सिंधुताई के ममतामयी जीवन की छांव में न जाने कितने अनाथों को सहारा मिला. उन्होंने अनाथों के लिए कई आश्रम खोले.

सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में हुआ था. उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी. सिंधुताई के पिता का नाम अभिमानजी साठे था. उनका सपना था कि उनकी बेटी अच्छी शिक्षा ग्रहण करें, लेकिन बाल विवाह, मां का विरोध और आर्थिक तंगी के चलते वह केवल चार तक ही पढ़ सकीं.

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महज 9 साल की उम्र में हुआ विवाह

सिंधुताई सपकाल का विवाह महज 9 साल की उम्र में कर दिया गया. आगे चलकर सिंधुताई ने ऐसी महिलाओं की लड़ाई लड़ी, जिनका उपयोग वन विभाग और जमींदार गोबर इकट्ठा करने के लिए करते थे. हालांकि उनका सफर आसान नहीं था, कई कठिनाइयां आयीं, लेकिन उनका आत्मविश्वास डगमगाया नहीं.

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जमींदार ने उड़ायी झूठी अफवाह, घर से हुईं बेघर

सिंधुताई सपकाल की उम्र जब 20 साल थी तो उन पर एक जमींदार ने झूठा आरोप लगाया. उस समय वह गर्भवती थीं. उनके पति ने जमींदार के आरोप को सच मानकर उन्हें घर से निकाल दिया. मायके में भी शरण नहीं मिली. मजबूर होकर उन्हें पशुओं के बाड़े में शरण लेनी पड़ी. यहीं उन्होंने अपनी बेटी को जम्म दिया.

सिंधुताई अपनी बेटी के साथ अमरावती पहुंचीं. यहां चिकलदरा में व्याघ्र प्रकल्प के लिए 84 गांवों को खाली कराया गया था. सिंधुताई ने यहां आदिवासियों के लिए पुनर्वसन की लड़ाई लड़नी शुरू कर दी. परिणाम यह हुआ कि सिंधुताई की मांग को वन मंत्री को माननी पड़ी.

सिंधुताई सपकाल ने अपनी बेटी को दगडू सेठ हलवाई , पुणे ट्रस्ट को दत्तक दे दिया. ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्यों कि वह अनाथों की मां बनना चाहती थीं. कई वर्षों के संघर्ष के बाद सिंधुताई ने चिकलदरा में अपना पहला आश्रम खोला. यहां डेढ़ हजार बच्चों को उन्होंने आश्रय दिया. यहीं से उनका अनाथों की मां बनने का सफर शुरू हुआ.

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इन संस्थाओं का किया संचालन

सिंधुताई सपकाल ने कई संस्थाओं का संचालन किया. इसमें बाल निकेतन हडपसर, पुणे, सावित्रीबाई फुले बालिका वसतिगृह , चिकलदरा, सप्तसिंधु महिला आधार बालसंगोपन, गोपिका गौ रक्षण केंद्र, वर्धा ( गोपालन) , ममता बाल सदन, सासवड, अभिमान बाल भवन, वर्धा शामिल हैं.

2010 में बनी फिल्म

सिंधुताई के जीवन पर 2010 में मराठी में फिल्म बन चुकी है. इस फिल्म का नाम था- मी सिंधुताई सपकाल. इसका चयन 54वें लंदन फिल्म महोत्सव में वर्ल्ड प्रीमियर के लिए भी किया गया था. फिल्म के निर्माता अनंत महादेवन थे.

सिंधुताई सपकाल को 750 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. इसमें पद्मश्री भी शामिल है. महाराष्ट्र सरकार ने 2012 में उन्हें डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर समाज भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था. इसके अलावा, उन्हें 1996 में आईटी प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन का दत्तक माता पुरस्कार, 2010 में महाराष्ट्र सरकार का ‘अहिल्याबाई होलकर पुरस्कार’, 2012 में पुणे अभियांत्रिकी कॉलेज का ‘कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग पुरस्कार’, 2013 में मूर्तिमंत आईसाठीचा राष्ट्रीय पुरस्कार और 2017 में डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है.

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सिंधुताई सपकाल को इसके अलावा, सोलापुर का डॉ. निर्मलकुमार फडकुले स्मृति पुरस्कार, राजाई पुरस्कार, शिवलीला महिला गौरव पुरस्कार, पुणे विश्वविद्यालय का ‘जीवन गौरव पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया है.

Posted By: Achyut Kumar

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