तालिबान के साथ मिलकर भारत के खिलाफ खिचड़ी पका रहा पाक का जैश-ए-मोहम्मद, सुरक्षा एजेंसियों ने जारी किया अलर्ट
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि खुफिया एजेंसियां उसी समय से हाई अलर्ट पर हैं.
नई दिल्ली : अफगानिस्तान में तालिबान का कद बढ़ने के साथ ही दुनिया के दूसरे आतंकी संगठन एक बार फिर अपना फन फैलाने लगे हैं. तालिबान के दोबारा मजबूत होने से क्षेत्रीय सुरक्षा पर खतरा बढ़ गया है. गुरुवार को आईएसआईएस-के की ओर से काबुल हवाई अड्डे पर हमले के बाद पाकिस्तान का आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने तालिबानी नेताओं से मुलाकात की है. इन दोनों आतंकी संगठनों के आतंकियों की आपसी मुलाकात के बाद भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले को लेकर अलर्ट जारी किया है.
समाचार एजेंसी एएनआई की ओर से दी गई खबर के अनुसार, सुरक्षा एजेंसियों को सीमा पार से आतंकियों की उपस्थिति के इनपुट मिले हैं. समाचार एजेंसी को एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ये इनपुट स्थानीय खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के साथ साझा किए गए हैं, ताकि अप्रिय घटना का मुकाबला करने के लिए वे पहले से ही तैयार रहें.
वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि खुफिया एजेंसियां उसी समय से हाई अलर्ट पर हैं, जब से उन्हें पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने अगस्त के तीसरे हफ्ते में तालिबानी नेताओं से मुलाकात की. उनकी यह मुलाकात कंधार में हुई है. इस बैठक में तालिबानियों का एक ग्रुप था, जहां जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने भारत से जुड़ी अपने बुरे इरादों की खातिर समर्थन मांगा है.
खबर में सूत्रों के हवाले बताया गया है कि आतंकवादियों की इस बैठक में पाकिस्तान के राजनीतिक हालात पर भी चर्चा की गई है. वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी को बताया कि हमने खुफिया एजेंसियों से सोशल मीडिया पर नजर बनाए रखने को कहा है.
उन्होंने कहा कि हमें 24 अगस्त को पाकिस्तान के दो आतंकियों की मूवमेंट से जुड़ी जानकारी मिली थी, जो श्रीनगर में ग्रेनेड हमला करने की योजना बना रहे थे. उन्होंने कहा कि सभी संबंधित एजेंसियों को सहयोग करने के लिए अलर्ट कर दिया गया है. इसके साथ ही, सभी राज्यों से सुरक्षा अभ्यास करने और आतंक-रोधी यूनिट को हाई अलर्ट पर रखने के लिए कहा है.
बता दें कि तालिबान ने 15 अगस्त वाले दिन काबुल में प्रवेश कर वहां कब्जा कर लिया था. जिसके चलते लोगों की चुनी हुई सरकार गिर गई. इसके बाद दुनियाभर के देशों ने अफगानिस्तान से अपने नागरिकों और दूतावास के कर्मचारियों को खराब सुरक्षा स्थिति के चलते निकालना शुरू कर दिया. कुछ देशों ने उन अफगान नागरिकों को भी निकाला, जो युद्ध के दौरान उनकी सेना के काम आए थे.