राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कहा था कि अगर देश के गांवों को खतरा पैदा हुआ तो भारत को खतरा पैदा हो जायेगा. उन्होंने मजबूत और सशक्त गावों का सपना देखा था. इस सपने को पूरा करने के उद्देश्य से 24 अप्रैल, 1993 को संविधान में 73वां संशोधन किया गया. इसी दिन से पंचायती राज दिवस मनाया जाने लगा. महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज का विचार दिया था.
सिर्फ राज्य और केंद्र सरकार मिलकर ही पूरा देश नहीं चला सकती इसलिए स्थानीय प्रशासन का महत्व समझा गया. इसे नाम दिया गया पंचायती राज. इस समझने की कोशिश करेंगे तो पायेंगे पंचायती राज में गांव के स्तर पर ग्राम सभा, ब्लॉक स्तर पर मंडल परिषद और जिला स्तर पर जिला परिषद होता है. यहां प्रतिनिधित्व कर रहे सदस्यों का चुनाव जनता करती है तो कुछ सरकार स्तर पर चुने जाते हैं.
पंचायती राज और गांधी
पंचायती राज का जिक्र करते हुए महात्मा गांधी का जिक्र इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उन्होंने कहा था,पंचायतों के पास सभी अधिकार होने चाहिए. गांधी के सपने को पूरा करने के उद्देश्य से ही 1992 में संविधान में 73वां संशोधन किया गया और पंचायती राज संस्थान का कॉन्सेप्ट पेश किया गया. इनस कानून ने स्थानीय निकायों को ज्यादा से ज्यादा शक्तियां दे दीं अधिकार दिया आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय का.
क्या है पंचायती राज कैसे चलता है
नयी पद्धति को समझने से पहले पुरानी शैली याद कीजिए. हर गांव में एक मुखिया होता था जो पूरे गांव का प्रतिनिधित्व करता था. गांव का सबसे सम्मानित कहीं- कहीं सबसे धनी व्यक्ति जिसकी बात पूरा गांव मानता था. यही शैली अब जनता के हाथों देकर चुनाव करने की आजादी दे दी गयी. अब ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तरों पर चुनाव होता है जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है. कानून ने इस बात का ध्यान रखा है कि सबको समान अवसर मिले इसके लिए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं के लिए पंचायत में आरक्षण दिया गया है. पंचायती राज में कई शक्तियां दी गयी है ताकि गांवों का विकास हो. जनता द्वारा चुनाव गया मुखिया उनके हित में फैसले ले सके. ब्लॉक स्तर पर मिलकर काम कर सके.