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पंडित दीनदयाल उपाध्यायः रहस्यमय महाप्रयाण

11 फरवरी, 1968 को जब दीनदयाल जी की अकस्मात् मृत्यु की खबर लोगों को मिली, तो पूरा देश स्तब्ध रह गया था. तब वे महज 52 वर्ष के थे. पंडित जी की मृत्यु के बाद उनकी शव यात्रा में उमड़ी लोगों की भीड़ अप्रत्याशित थी. सर्वसुलभ पंडित जी का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उनके जीवनकाल में बड़ी संख्या में लोग उनसे जुड़े.

डा प्रदीप वर्मा

(झारखंड प्रदेश भाजपा के महामंत्री)

गीता में भगवत्प्रिय का लक्षण लिखते हुए इस प्रकार बताया गया है-

यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः ।

हर्षामर्षभयोद्वेगैः मुक्तो यः स च मे प्रियः ।

अर्थात् जिससे लोग परेशान नहीं होते तथा जो लोगों से परेशान नहीं होता और जो हर्ष, क्रोध, भय, बेचैनी से मुक्त हो, वही मेरा प्रिय भक्त है. अनासक्त और निष्काम योगी पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को आचार्य कृपलानी इसी कोटि का महामानव मानते थे. देश के स्वतंत्र होने के बाद से भारतीय राजनीति के जिस विद्रुप चेहरे को देश और दुनिया ने देखा था, उसमें डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर दीनदयाल जी की संदेहास्पद मृत्यु की घटनाएं भी शामिल रहीं. इन लोकप्रिय नेताओं की असमय मृत्यु की घटनाओं ने उस समय देश के जनमानस को झकझोर कर रख दिया था. वर्ष 1966 में लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु से उपजे सवाल जहां लोगों की जेहन में ताजा थे, वहीं इसके महज दो वर्षों के बाद ही देशवासियों ने दीनदयाल जी की मृत्यु के बाद भी राजनीति के इसी चेहरे के दर्शन किये.

पंडित दीनदयाल की अकस्मात् मृत्यु ने देश को कर दिया था स्तब्ध

11 फरवरी, 1968 को जब दीनदयाल जी की अकस्मात् मृत्यु की खबर लोगों को मिली, तो पूरा देश स्तब्ध रह गया था. तब वे महज 52 वर्ष के थे. पंडित जी की मृत्यु के बाद उनकी शव यात्रा में उमड़ी लोगों की भीड़ अप्रत्याशित थी. सर्वसुलभ पंडित जी का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उनके जीवनकाल में बड़ी संख्या में लोग उनसे जुड़े. उनकी आत्मीयता लोगों के दिलो-दिमाग में छायी रहती थी. क्या आम और क्या खास-उनसे मिलने वाला कोई भी व्यक्ति उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था. आदरणीय गुरुजी ने उनके बारे में कहा था कि नींव के पहले पत्थर से काम प्रारंभ कर इतनी ऊंची मर्यादा तक पहुंचने का श्रेय अगर किसी को है, तो यह श्रेय उनको ही देना पड़ेगा.

दीनदयाल उपाध्याय जी सर्वाधिक सम्मान पाने वाले नेता : पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनके देहावसान के बाद अपने शोक संदेश में कहा था कि भले ही उनके बीच दलीय मतभेद हों, मगर दीनदयाल उपाध्याय जी सर्वाधिक सम्मान पाने वाले नेता थे. उन्होंने अपना जीवन देश की एकता और संस्कृति को समर्पित कर दिया था.

दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीति का शिखर पुरुष

दीनदयाल जी की पुण्यतिथि 11 फरवरी के अवसर पर उनको स्मरण कर उनके प्रेरणादायी विचारों से अपने-आप को पूर्ण रुप से ओत-प्रोत पा रहा हूं. उनके ओजपूर्ण और कालजयी विचार सर्वदा मन की तरंगों को उद्वेलित करते रहे हैं. उनको भारतीय राजनीति का शिखर पुरुष कहा जाता है. एक ऐसा व्यक्तित्व, जिन्होंने अपने स्तर से समाज और देश को नयी राह दिखायी. जब राजनीति में नैतिकता की बातें उठती हैं, तो उनके मंतव्य और भी अधिक प्रासंगिक हो उठते हैं. एकात्म मानववाद के दर्शन को उन्होंने भारतीय संस्कृति का ही दर्शन माना था.

आरएसएस प्रचारक भी पंडित दीनदयाल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में दीनदयाल जी ने प्रवेश करने के बाद संघ की विचारधारा, ध्येय और कार्य पद्धति का मनन-चिंतन किया और उसे श्रेष्ठ समझकर अपने जीवन में आत्मसात् करने का प्रयास किया था. आरएसएस प्रचारक के तौर पर वे वर्ष 1942 में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले की एक तहसील में प्रचारक के तौर पर रहे. इसके तीन साल बाद वर्ष 1945 में वे उत्तर प्रदेश में ही सह प्रांत प्रचारक बनाये गये. अपने मिलनसार स्वभाव, मधुर और ओजपूर्ण वाणी और उनके निराभिमानी वृत्ति ने उनको कम समय के भीतर ही एक कुशल संगठक के तौर पर लोकप्रिय बना दिया.

लेखनी के धनी थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय

पंडित जी लेखनी के धनी माने जाते थे. उन्होंने 1948 में संघ पर लगे प्रतिबंध के बाबजूद अपनी धारदार लेखनी को कायम रखा था. जब ’पांचजन्य’ बंद हुई, तो उन्होंने ’हिमालय’ के साथ अपनी लेखनी जारी रखी. हिमालय पर रोक के बाद उन्होंने ’देशभक्त’ के माध्यम से लोगों तक अपनी बातों को पहुंचाया. उनके लेख पांचजन्य से लेकर राष्ट्रधर्म और ऑर्गेनाइजर में छपते थे. ’राष्ट्र चिंतन’ में उनके 19 महत्वपूर्ण भाषणों को संग्रह है. इसी तरह ’राष्ट्र जीवन की दिशा’ में भी कई लेखों का संग्रह है. वर्ष 1952 में जब जनसंघ का प्रथम अखिल भारतीय विशाल सम्मेलन कानपुर में हुआ था, तो यह उनकी राजनीतिक सूझबूझ ही थी, जिसके चलते उन्हें जनसंघ का महामंत्री बनाया गया. वे इस पद पर 1967 तक रहे.

दीनदयाल की छत्रछाया में जनसंघ ने नयी ऊंचाईयों को छुआ

जब डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक देश में ’एक प्रधान, एक विधान और एक निशान’ का लक्ष्य रखकर सत्याग्रह किया, तो उन्होंने इसका संपूर्ण भार पंडित जी पर ही छोड़ रखा था. वे अक्सर कहा करते थे कि मैं जैसा साथी चाहता था, वैसा ही मुझे मिला है. दीनदयाल जी की छत्रछाया में जनसंघ ने नयी ऊंचाईयों को स्पर्श किया था, जो आज भारतीय जनता पार्टी के रुप में भारतीय राजनीति में नित नयी ऊंचाईयों को स्पर्श करने को अग्रसर है. उधार के मूल्यों की अपेक्षा अपने देश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ढांचे को संबल बनाकर उसके आधार पर अपने विचारों को गढ़ना और उसके कार्यान्वयन के साथ ही व्यवस्थापक रुप देना उनकी विचारधारा का ही एक भाग था.

दीनदयाल के दिखाये मार्ग पर ही चल रही बीजेपी

एकात्म मानववाद के रास्ते को अंगीकृत कर आज भाजपा दीनदयाल जी की विचारधारा के साथ सामाजिक और राष्ट्रीय योजनाओं को सतत् लागू कर राष्ट्रहित में उनके दिखाये हुए मार्ग पर ही चल रही है. भाजपा के करोड़ों कार्य कर्ताओं ने इस बात को अंगीकृत किया है कि दीनदयाल जी के बताये और प्रशस्त किये गये रास्ते पर चलकर ही सही मायनों में समाज के अंतिम पंक्ति तक पहुंचकर और उनके कल्याण के मार्ग को प्रशस्त कर राष्ट्र को सुदृढृ किया जा सकता है.

पंडित जी की मृत्यु एक अनसुलझी गुत्थी

पंडित जी का शव अस्वाभाविक परिस्थितियों में मुगलसराय जंक्शन के पास रेल की पटरियों में पाया गया था. उस दिन पटना में जनसंघ की बिहार प्रदेश कार्य कारिणी की बैठक प्रस्तावित थी. उन्हें बिहार में जनसंघ के तत्कालीन संगठन मंत्री अश्विनी कुमार ने उनसे उक्त बैठक में भाग लेने का आग्रह किया था. इसी के निमित्त उन्होंने पटना जाने का कार्य क्रम निर्धारित किया था. लेकिन विधि का विधान आखिर किसे मालूम था. पटना में उनके स्वागत के लिए जनसंघ के नेतागण रेलवे स्टेशन में पूरी तैयारी के साथ आये थे. उन्होंने पंडित जी को ट्रेन में नहीं देखा, तो उन्हें लगा कि किंचित उन्होंने अपना पटना आने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया हो. उसी दिन दिल्ली में जनसंघ की बैठक भी प्रस्तावित थी. दल के नेताओं को उनके दिल्ली जाने का अंदेशा हुआ था. मुगलसराय स्टेशन के एक रिपोर्टर ने दीनदयाल जी का शव मिलने के बाद कहा था कि उसे एक व्यक्ति ने यार्ड में बोगी को आधे घंटे अधिक समय तक रखने के लिए कुछ पैसे देने की पेशकश की थी. किसी ने यह भी कहा कि उसे एक व्यक्ति ने बोगी की सफाई करने के लिए कहा था, लेकिन बाद में वह व्यक्ति बोगी में चढ़ा ही नहीं. इस मृत्यु के पीछे संदेह के कई और कारण भी रहे. शव को कई घंटों तक अज्ञात रखा गया था. बाद में जनसंघ के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने शव की पहचान की. शव पर चोट के भी निशान पाये गये. एक आंख में भी सूजन थी. एक पैर और हाथ टूटे हुए थे. छाती की पसलियां भी टूटी थी. आज उनके बलिदान के इतने दशकों के पश्चात् भी लोगों के मानस पटल पर उनकी गरिमामयी उपस्थिति दिखायी देती है. हालांकि उनकी मृत्यु की पुलिसिया जांच किसी नतीजे तक पहुंच पाने में असफल रही थी. ऐसे में सीबीआई जांच का भी सहारा लिया गया, लेकिन कोर्ट में सीबीआई ने उनकी हत्या की जिस थ्योरी की ओर इशारा किया, उसे कोर्ट ने नहीं माना. दीनदयाल जी की हत्या की आशंका से उपजे सवालों के बाद संसद के माननीय सदस्यों ने भी पार्टी लाइन से ऊपर उठकर इस बारे में जांच का दायरा बढ़ाने की सरकार से मांग की थी. इसके बाद जस्टिस चंद्रचूड़ जांच आयोग का गठन किया गया. लेकिन वे भी किसी साजिश के स्वरुप अथवा प्रयोजन को लेकर स्पष्ट मंतव्य तक पहुंच पाने में विफल रहे. इसके बाद से ही पंडित जी की मृत्यु एक अनसुलझी गुत्थी के तौर पर उपस्थित रही है.

( ये लेखक के अपने विचार हैं)

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