Parliament:इंडिया गठबंधन में पड़ी दरार के कारण कांग्रेस का रुख पड़ा नरम
कांग्रेस लोगों के बीच यह संदेश नहीं देना चाहती कि संविधान की रट लगाने वाले पार्टी संविधान पर होने वाली चर्चा में भाग लेने से पीछे हट रही है. यही कारण रहा कि संविधान पर चर्चा को लेकर सभी दलों ने हामी भरी, लेकिन संसद के सुचारू संचालन में अभी कई बाधाएं है, जिसे दूर करने की जरूरत होगी.
Parliament:सोमवार को संसद की कार्यवाही शुरू होने से पहले इंडिया गठबंधन के नेताओं की एक बैठक राज्य सभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के कमरे में हुई, जिसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी पहुंचे. हालांकि उस बैठक में तृणमूल कांग्रेस के सांसद नदारद रहे. इसकी आशंका पिछले शुक्रवार को ही हो गयी थी, जब चार दिन तक अडानी प्रकरण को लेकर संसद संसद का कामकाज बाधित रहा. टीएमसी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस को पहले ही पार्टी ने अपने रुख से अवगत करा दिया था.
टीएमसी अडानी मामले को लेकर इतनी ज्यादा हाय-तौबा के पक्ष में नहीं है. अडानी के मुद्दे पर जब-जब विपक्षी गठबंधन विरोध करता है, उसका फायदा सरकार और अडानी को ही मिलता है. टीएमसी, महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, राज्यों के साथ भेदभाव, राज्यों के हिस्सा को केंद्र की ओर से नहीं दिया जाना, जैसे मुद्दे पर चर्चा करनी चाहती है. इंडिया गठबंधन यदि टीएमसी की मांग पर ध्यान नहीं देता है, तो संसद के अंदर टीएमसी अलग रूख अपना सकती है. उक्त नेता अडानी प्रकरण पर कई उदाहरण देकर समझाने की कोशिश की. जब अडानी पर हिडनबर्ग की रिपोर्ट आयी, तब भी कांग्रेस ने आम लोगों के जमा पूंजी को उड़ाने का आरोप लगाया. तब आम निवेशकों को तत्कालीन घाटा उठाना पड़ा. लेकिन कुछ दिनों बाद ही निवेशकों का घाटा मुनाफा में बदल गया और विपक्ष की ओर से जो आरोप लगाये जा रहे थे वह सब आधारहीन साबित हुए.
सदन न चलने का नुकसान विपक्ष को उठाना पड़ रहा
गठबंधन में शामिल दलों के अपने अलग-अलग मुद्दे हैं, लेकिन कांग्रेस सिर्फ अडानी प्रकरण पर प्रधानमंत्री को घेरने की कोशिश में लगी है. अन्य दलों को अब लग रहा है कि वे अपने मुद्दे को कांग्रेस के कारण सदन में नहीं उठा रहे हैं. सपा अपना फोकस यूपी पर करना चाहती है, लेकिन सदन नहीं चलने के कारण संभल सहित प्रश्न पत्र लीक प्रकरण को वह अब तक नहीं उठा पायी है. राजद भी बिहार से संबंधित कई मुद्दों को संसद में उठाना चाह रहा है. यही हाल डीएमके का भी बताया जा रहा है. सबसे ज्यादा समस्या उन सांसदों के सामने है, जो अब तक अपना मेडन स्पीच भी संसद में नहीं दे पाये है. पहली बार चुनकर आये कई सांसदों ने अपने-अपने दल के नेताओं से अपनी पीड़ा व्यक्त की है.
संसद न चलने से सरकार को कटघरे में खड़ा करना मुश्किल
कांग्रेस के कई सांसद भी यह मानने लगे हैं कि संसद न चलने का ज्यादा नुकसान उन्हें ही हो रहा है. सरकार को कटघरे में खड़ा करने का समय उनके हाथ से निकल रहा है.क्योंकि सरकार से कोई सवाल नहीं पूछा जा रहा है और सरकार आंकड़ों में हेर-फेर कर सदन के बाहर देश को गुमराह कर रही है. जबकि संसद में सरकार की ओर से कोई आंकड़ा दिया जाता है, तो सरकार को उसके लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है. सोमवार को जब लोकसभा अध्यक्ष की ओर से सर्वदलीय बैठक बुलायी गयी, तो संविधान पर चर्चा भाग न लेने का विकल्प विपक्ष के पास नहीं था. कांग्रेस लोगों के बीच यह संदेश नहीं देना चाहती कि संविधान की रट लगाने वाले पार्टी संविधान पर होने वाली चर्चा में भाग लेने से पीछे हट रही है. यही कारण रहा कि संविधान पर चर्चा को लेकर सभी दलों ने हामी भरी, लेकिन संसद के सुचारू संचालन में अभी कई बाधाएं है, जिसे दूर करने की जरूरत होगी.