सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (Armed Forces Tribunal) ने कंट्रोलर जनरल ऑफ डिफेंस अकाउंट्स (CGDA) को निर्देश दिया है कि छठा और सातवां वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद उनके वेतन में हुए संशोधन पर फिर से विचार करें. 5 अगस्त को ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा कि हम CGDA को तीनों सेनाओं (थल सेना, वायु सेना और नौसेना) के सभी अधिकारियों, जिनमें रिटायर्ड सैनिक भी शामिल हैं, जिनका वेतन 01.01.2006 को तय हुआ था, उनके वेतन फिर से तय किये जायें, ताकि उन्हें अधिकतम लाभ मिल सके.
पे रिवीजन के करीब 16 साल बाद आये इस फैसले से हजारों रिटायर्ड रक्षा अधिकारियों-कर्मचारियों को फायदा हो सकता है. बता दें कि वेतन आयोगों के क्रियान्वयन में कई विसंगतियां रहीं, जिसकी वजह से मामला कोर्ट तक पहुंचा.
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लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक के अधिकारियों की ओर से दाखिल दो याचिकाओं का निपटारा करते हुए जस्टिस राजेंद्र मेनन और लेफ्टिनेंट जनरल पीएम हारिज की ट्रिब्यूनल बेंच ने CGDA को निर्देश दिया है कि वह वेतनमान की समीक्षा और उसके क्रियान्वयन के लिए जरूरी निर्देश जारी करे और चार महीने के भीतर इस संबंध में एक डिटेल रिपोर्ट न्यायाधिकरण के समक्ष पेश करे.
अधिकारियों ने कहा कि सरकार ने वर्ष 2008 में स्पेशल आर्मी इंस्ट्रक्शन (SAI) जारी किये थे. इसमें SAI के प्रावधानों को चुनिंदा रूप से लागू करने का आरोप लगाया गया है. कहा गया है कि ऐसा करके लेफ्टिनेंट कर्नल के वेतन को 38,530 रुपये तय किया गया. इसका लाभ केवल उन लोगों को दिया गया, जो 01.01.2006 को लेफ्टिनेंट कर्नल के रैंक पर थे और 01.01.2006 और 11.10.2008 के बीच लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर पदोन्नत किये गये. याचिकाकर्ताओं ने इसे त्रुटिपूर्ण फैसला बताया.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 11.10.2008 के बाद लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर पदोन्नत किये गये या जिन्हें कोई विकल्प नहीं दिया गया, उनका वेतन 37,400 रुपये निर्धारित किया गया था, जो पे बैंड-4 में न्यूनतम था. इस प्रकार यह आदेश सरकारी अप्रैल 2009 में जारी अधिसूचना के निर्देशों की अनदेखी करता है, जिसमें इंट्री लेवल पर 38,530 रुपये वेतन तय किया गया था.
उन्होंने दावा किया कि अधिकारियों के वेतन और भत्ते तय करने वाले प्रिंसिपल कंट्रोल ऑफ डिफेंस अकाउंट्स पुणे ने सरकार की मंजूरी और स्पष्ट अधिसूचना के बावजूद, सेना के अधिकारियों को वाजिब लाभ से वंचित किया. सरकारी पत्रों में प्रावधानों की गलत व्याख्या की वजह से लेफ्टिनेंट कर्नल के चार वर्ग बनाये गये. उनका वेतन अलग-अलग निर्धारित किया गया, जिससे ऐसे अधिकारियों को वित्तीय नुकसान हुआ.