नयी दिल्ली : अयोध्या के बाद अब काशी मधुरा का विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पुजारियों का संगठन विश्व भद्र पुजारी संगठन ने याचिका दाखिल कर सुनवाई करने की मांग है. संगठन का कहना है कि भारत सरकार द्वारा लागू प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की समीक्षा होनी चाहिए.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार याचिका में कहा गया है कि 29 साल पहले बने इस एक्ट की समीक्षा की जाये. इस एक्ट में कहा गया है कि 1947 के बाद जो धार्मिक स्थल जहां है, उसी की संपत्ति होगी. हालांकि इस एक्ट में राममंदिर विवाद को नहीं रखा गया था. बता दें कि यह एक्ट राममंदिर विवाद के बाद ही बनाया गया था.
क्या है प्लेसेज वर्शिप एक्ट 1991- सितंबर 1991 में लागू प्लेसेज वर्शिप एक्ट में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 के बाद जो धार्मिक स्थल जहां पर है, उसको दूसरे धर्म में तब्दील नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा न ही किसी स्मारक को धार्मिक स्थल की तरह रखरखाव किया जा सकता है. हालांकि यह मान्यता प्राप्त प्राचीन स्मारक स्थलों पर लागू नहीं होगा. साथ ही, यह एक्ट राममंदिर अयोध्या विवाद पर भी लागू नहीं हो सकता है, इसके पीछे कारण यह था कि राममंदिर विवाद उस वक्त कोर्ट पहुंच चुका था.
एक्ट उल्लंघन करने पर 3 साल की जेल- प्लेसेज वर्शिप एक्ट 1991 में आईपीसी की धारा भी जोड़ी गई थी. एक्ट का उल्लंघन पर अपराध की श्रेणी में रखा गया है. इसके बाद ही इसका उल्लघंन करने पर तीन साल की सजा निर्धारित की गई है. यह कानून उस वक्त जम्मू कश्मीर में लागू नहीं किया गया था.
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राममंदिर के फैसले में जिक्र– एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार बीते साल राममंदिर के फैसले के दौरान पांच जजों की बैंच ने इस एक्ट का जिक्र किया था. जजों ने 1045 पेज के फैसले में प्लेसेज वर्शिप एक्ट का जिक्र करते हुए कहा था कि यह भारत के सेक्यूलर चरित्र को मजबूत करता है.
Posted By : Avinish Kumar Mishra