Places of Worship Act: प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 (Places of Worship Act) अधिनियम को लेकर आज (12 दिसंबर) को सुप्रीम कोर्ट में बड़ी सुनवाई है. इस एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ सुनवाई करेगी. याचिकाओं में 1991 के इस कानून को अन्यायपूर्ण बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है. इन याचिकाओं के जरिये हिंदू पक्ष ने प्राचीन मस्जिदों के सर्वेक्षण की मांग को लेकर याचिकाएं दायर की गई हैं. याचिकाओं में दावा किया गया है कि कई पुरानी मस्जिदें मंदिरों को तोड़कर बनाई गई हैं.
क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट
1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के मुताबिक देश में किसी भी धार्मिक स्थल की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को जैसे थी वो वैसी ही रहेगी. उसे बदला नहीं जा जाएगा. अब इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया गया है. इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं में कहा गया है कि यह कानून अधिकार मांगने से वंचित करने वाला है.
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के मुख्य प्रावधान
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के मुख्य प्रावधान में कहा गया है कि किसी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे संप्रदाय की धार्मिक स्थल नहीं बदला जा सकता है. हालांकि प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थलों को इस एक्ट से बाहर रखा गया है.
CPI(M) ने किया सुप्रीम कोर्ट का रुख
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. CPI(M) ने सुप्रीम कोर्ट में इस एक्ट बने रहने की गुहार लगाई है. CPI(M)ने कहा है कि धर्मनिरपेक्ष ढांचे को बनाए रखने के लिए यह एक्ट बहुत जरूरी है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय, बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी समेत कई लोगों की याचिकाएं सालों से लंबित हैं. वहीं इस एक्ट का जमीयत उलेमा ए हिंद समेत कई और संगठनों ने समर्थन किया है.