नई दिल्ली : भारत के स्कूलों में छठी से 12वीं कक्षा की छात्राओं को मुफ्त में सैनिटरी पैड मुहैया कराई जाने की मांग को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. सर्वोच्च अदालत में दायर की याचिका में अदालत से गुहार लगाई गई है कि वह सरकार को छठी से 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली छात्राओं को मुफ्त में सैनिटरी पैड मुहैया कराने के लिए सरकार को निर्देश जारी करे, ताकि गरीब और आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग की बच्चियों को इसके लिए कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़े.
बता दें कि देश में सबसे पहले ओडिशा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की सरकार ने वर्ष 2017 के दौरान सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली बच्चियों को मुफ्त में सैनिटरी पैड मुहैया कराने का ऐलान किया गया था. इसके बाद हरियाणा के सिरसा जिले में भी शिक्षा विभाग की ओर से इस प्रकार के कदम उठाए गए थे. स्कूली छात्राओं को मुफ्त में सैनिटरी पैड मुहैया कराने को लेकर जया ठाकुर ने अधिवक्ता वरिंदर कुमार शर्मा और वरुण ठाकुर के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दायर की है.
सर्वोच्च अदालत में दायर की गई याचिका में जया ठाकुर ने कहा है कि गरीब पृष्ठभूमि से आने वाली 11 से 18 साल की आयु वर्ग की किशोरियों को गंभीर कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. ये किशोर बालिकाएं मासिक धर्म और मासिक धर्म के दौरान की स्वच्छता के बारे में नहीं जानतीं और न ही इसका जिक्र अपने माता-पिता से ही कर पाती हैं. याचिका में यह भी कहा गया है कि मासिक धर्म को लेकर गरीब परिवार के लोगों में जागरूकता का भी अभाव है. कमजोर आर्थिक स्थिति और जानकारी के अभाव में मासिक धर्म को लेकर गरीब परिवार में कुप्रथाओं और पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है. इसका नतीजा यह निकलता है कि गरीब परिवार की किशोर बालिकाएं गंभी बीमारियों की चपेट में आ जाती हैं और ऐसी स्थिति में उन्हें स्कूल या घर से बाहर निकलने में भी परेशानी होने लगती है.
इतना ही नहीं, याचिकाकर्ता जया ठाकुर ने सुप्रीम को इस बात की गुजारिश की है कि देश के सभी सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और आवासीय स्कूलों में अलग-अलग बालिका शौचालयों की व्यवस्था की जाए. इसके साथ ही, इन स्कूलों में शौचालयों की नियमित सफाई करने के लिए अलग से सफाई कर्मचारी नियुक्त करने की भी मांग की गई है.
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इसके साथ ही, याचिका में प्रतिवादियों को त्रिस्तरीय जागरूकता कार्यक्रम चलाने संबंधी आदेश या निर्देश जारी करने की भी मांग की गई है. इसका मतलब यह कि त्रिस्तरीय जागरूकता कार्यक्रम के तहत सबसे पहले मासिक धर्म स्वास्थ्य और इसके चारों ओर की वर्जनाओं को दूर करने को लेकर जागरूक किया जाए. दूसरे, महिलाओं और युवा छात्राओं को विशेष रूप से वंचित क्षेत्रों में पर्याप्त स्वच्छता सुविधाएं और रियायती या मुफ्त स्वच्छता उत्पाद प्रदान किया जाए और तीसरा मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल की गई वस्तुओं के निपटान का एक कुशल और स्वच्छतापूर्ण तरीका सुनिश्चित करने के बारे में जानकारी दी जाए.