नई दिल्ली : कोरोना महामारी की दूसरी लहर में प्रबंधन को लेकर मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट’ के बाद अब ‘द गार्जियन’ ने मोदी सरकार की आलोचना की है. ब्रिटेन से प्रकाशित अखबार की वेबसाइट ने लिखा है कि हर कोई गुस्से में है कि मोदी ने दूसरी लहर में भारत को आग में झोंक दिया.
दिल्ली में ‘द गार्जियन’ अखबार की प्रतिनिधि हन्ना एलिस पीटरसन की सोमवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, नई दिल्ली स्थित पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने में गुमशुदगी की एक शिकायत दर्ज कराई गई है, जिसमें इस बात का जिक्र किया गया है कि महामारी की दूसरी लहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल के 10 मंत्री लापता हो गए हैं.
पीटरसन की रिपोर्ट के अनुसार, इंडियन नेशनल स्टुडेंट्स यूनियन के महासचिव नागेश कड़ियप्पा ने शुक्रवार को थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है, जिसमें उन्होंने कहा है कि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 के आंकड़ों के आगे भारत घुटने टेक रहा है, तब राजनीतिक नेतृत्व हाशिए से गायब हो गया है. कड़ियप्पा ने लिखा है कि भारत को विश्व गुरु बनाने वाले तथाकथित नेता कहां हैं, जब संकट की इस घड़ी में आदमी त्राहि-त्राहि कर रहा है?
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के हफ्तों में कोरोना वायरस की विनाशकारी दूसरी लहर ने भारत को पूरी तरह से जकड़ लिया है. भारत में संक्रमितों की संख्या 20 मिलियन से ऊपर पहुंच गई है और रोजाना 4000 से अधिक लोगों की मौत हो रही है. ऐसे में भाजपा नीत मोदी सरकार को जनता के भारी गुस्से का सामना करना पड़ रहा है.
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में आते ही वृद्धि और समृद्धि का वादा किया और इसी के बल पर 2019 में भी प्रचंड बहुमत हासिल किया. इधर, कुछ वर्षों में उन्होंने हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे के तहत भारत के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री बने रहने की फिराक में नागरिकों के गुस्से, आर्थिक गिरावट और आलोचनाओं की अनदेखी की. इसी की नतीजा है कि इस साल की शुरुआत के दौरान उनकी लोकप्रियता में करीब 80 फीसदी तक गिरावट आ गई.
इतना ही नहीं, वक्त पर पैसों की कमी और संसाधन विहीन लचर स्वास्थ्य प्रणाली के बीच देश भर के अस्पतालों में बिस्तरों, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और जरूरी दवाओं की कमी की वजह से लाखों लोगों की मौत के बाद पहली बार पीएम मोदी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए जाने लगे हैं.
अमेरिका के ब्राउन यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर कंटेंपररी साउथ एशिया के निदेशक आशुतोष वार्ष्णेय कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की छवि इस बात पर निर्भर करेगी कि इस महामारी को भुनाने की कैसी कोशिश की जाती है? क्या वे अपनी वाक्पटुता से इस व्यथा-कथा को सफलतापूर्वक बदल सकते हैं? लेकिन, मुझे लगता है कि इसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि ऐसी संकट की स्थिति में लोगों को यह विश्वास दिलाना बहुत कठिन होगा कि यह केवल ‘ईश्वरीय इच्छा’ से हो रहा है या फिर लोगों ने अपने चेहरों पर मास्क लगाने में लापरवाही बरती है, उसकी वजह से.
पीटरसन की रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि भाजपा शासित राज्य हरियाणा के पंचकुला में चेतन टीकू अपने 75 वर्षीय पिता का अंतिम संस्कार कर रहे थे, जिनकी कोरोना से मौत हो गई थी. श्मशान में अन्य कोरोना पीड़ितों की कई जलती हुई चिताओं की ओर इशारा करते हुए टीकू ने कहा कि सरकार द्वारा महामारी से निपटने के परिणाम यहां आपके सामने है.
Posted by : Vishwat Sen