रूस-यूक्रेन युद्ध: यूक्रेन की संप्रभुता पर चुप्पी साधे हुए है चीन, भारत की सीमाओं पर बनी है ड्रैगन की नजर

वर्ष 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को अपने यहां शरण दी तो चीन ने भारत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. भारत के इस कदम की परिणिति यह हुई कि 20 अक्टूबर 1962 को दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ गया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 4, 2022 1:57 PM

नई दिल्ली : रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध का आज नौवां दिन है. अमेरिका, ब्रिटेन और पश्चिमी देशों के साथ पूरा विश्व यूक्रेन की संप्रभुता के साथ खड़ा है, जबकि भारत, चीन और पाकिस्तान तटस्थ बने हुए हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत चुप है तो यह बात दुनिया के लिए मायने नहीं रखती, मगर चीन चुप्पी साधे हुए तो इसका विशेष महत्व है, क्योंकि चीन बरसों से भारत की सीमा और संप्रभुता पर नजर गड़ाकर बैठा हुआ है. आइए समझते हैं…

चीन ने एलएसी पर नहीं रहने दी 2020 से पहले की स्थिति

बीबीसी हिंदी के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी को लेकर मशहूर पत्रकार करण थापर को अभी हाल में दिए गए एक साक्षात्कार में भारत के पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने कहा है, ‘भारत की कूटनीति के लिए यह सबसे मुश्किल दौर है. भारत के लिए चुनौती है कि कैसे पश्चिम को नाराज किए बिना रूस को भी साथ रखे. भारत के लिए एक मुश्किल यह भी है कि चीन ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा की यथास्थिति अप्रैल 2020 से पहले की नहीं रहने दी है और भारत इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताता है, जबकि रूस ने यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन किया तो भारत ने निंदा से परहेज किया. चीन के बारे में कहा जा रहा है कि रूस के साथ उसका खुलकर आना उसके हित में है, लेकिन भारत के लिए सब कुछ इतना स्पष्ट नहीं है. पाकिस्तान का रूस के विरोध में वोट नहीं करने के बारे में कहा जा रहा है कि वह कोई नया ठिकाना खोज रहा है, क्योंकि शीत युद्ध के दौरान जिस अमेरिकी खेमे में था, वहां उसके हित नहीं सध रहे हैं.’

अरुणाचल में चीन ने बसाया गांव

9 नवंबर 2021 को अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के दावे के आधार पर मीडिया में आई खबरों के अनुसार, चीन ने अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपना एक गांव बसा लिया है. पेंटागन की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश के अपर सुबनगिरि जिले में इस गांव को बसाया है. यहां तक कि इस गांव में चीन ने सेना के लिए चौकियों का निर्माण भी कराया है और वहां पर उसकी सैन्य गतिविधियां जारी हैं. पेंटागन ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि चीन ने अरुणाचल के उस इलाके में गांव बसाया है, जिसे वर्ष 1959 में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने असम राइफल्स से छीनकर अपना कब्जा जमा लिया था. चीन ने यह गांव कोई साल-दो-साल में नहीं तैयार किया है, बल्कि इसे बसाने में कई साल लगे हैं.

गलवान घाटी की हिंसक झड़प

दरअसल, भारत-चीन के बीच कई दशकों से चले आ रहे सीमा विवाद ने उस समय वैश्विक स्तर पर तूल पकड़ लिया, जब पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सीमा में चीनी सेना के प्रवेश के बाद दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हो गई. 15 जून 2020 भारत-चीन के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी के पैंगोंग त्सो झील के नॉर्थ बैंक में झड़प हुई थी. इसमें दोनों तरफ के सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इस घटना के बाद सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भारत-चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच अब तक कई दौर की बातचीत हो चुकी है. दोनों देश इस विवाद को द्विपक्षीय बातचीत से निपटाने की कोशिश में जुटे हैं.

भारत-चीन के बीच क्यों बढ़ा तनाव?

एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1950 में चीन ने ऐतिहासिक अधिकारों का हवाला देते हुए तिब्बत पर कब्जा कर लिया. इसके बाद भारत ने विरोध पत्र भेजकर तिब्बत मुद्दे पर बातचीत का प्रस्ताव रखा. हालांकि, 1954 में, भारत ने चीन के साथ पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें भारत ने तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता दे दी. यही वह समय था, जब भारत के पूर्व प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ नारा दिया था. इसके बाद वर्ष 1954 में चीन ने भारत के अक्साई चिन के माध्यम से झिंजियांग को तिब्बत से जोड़ने वाली एक सड़क का निर्माण किया. इस बारे में जब वर्ष 1959 में भारत को पता चला, तो दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया.

पंचशील समझौता

अंग्रेजों के शासनकाल से ही चीन के साथ चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने चीनी समकक्ष चाऊ एन लाई सो 29 अप्रैल 1954 को पंचशील सिद्धांत के तहत 5 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. यह समझौता द्विपक्षीय था. इन समझौतों में एक-दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान, परस्पर अनाक्रमण, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना, समान और परस्पर लाभकारी संबंध और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व बनाए रखना शामिल थे.

भारत-चीन सीमाई संप्रभुता का विवाद

भारत-चीन के बीच की सीमा ब्रिटिश और चीनी साम्राज्य के समय से ही विवादित और अनिश्चित थी. भारत-चीन के बीच अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों की संप्रभुता को लेकर विवाद था. अक्साई चिन को भारत लद्दाख का हिस्सा मानता था और चीन उसे अपने शिनजियांग प्रांत का हिस्सा मानता था. दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर यहीं से टकराव शुरू हुआ, जो 1962 में युद्ध में तब्दील हो गया.

1962 का भारत-चीन युद्ध

समाचार एजेंसी भाषा की ओर से 20 अक्टूबर 2021 को जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत-चीन के बीच सीमा विवाद दशकों पुराना है. इसका कारण यह है कि वर्ष 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को अपने यहां शरण दी तो चीन ने भारत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. भारत के इस कदम की परिणिति यह हुई कि 20 अक्टूबर 1962 को दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ गया. चीन की सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू कर दिए. दुर्गम और बर्फ से ढकी पहाड़ियों का इलाका होने के कारण भारत ने वहां जरूरत के अनुसार सैनिक तैनात किए थे, जबकि चीन पूरे पूरी तैयारी के साथ जंग के मैदान में उतरा था. इस युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा और चीन ने अक्साई चिन में करीब 38,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.

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1962 के युद्ध के बाद भारत-चीन की स्थिति

अरुणाचल प्रदेश समेत पूरा पूर्वोत्तर और उत्तरी सीमा पर भारत की संप्रभुता को लेकर वर्ष 1962 के युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय समझौता हुआ था. इस समझौते में दोनों देशों के बीच यह तय किया गया कि चीन भारत पर कभी भी आक्रमण नहीं करेगा. चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को अपनी सीमा मान बैठा. भारत-चीन के बीच कोई भी भौतिक सीमांकन नहीं है. जम्मू-कश्मीर को अक्साई चिन से अलग करने वाली रेखा को ही वास्तविक नियंत्रण रेखा कहा जाता है. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद 1963 में पाकिस्तान ने चीन के साथ ‘सीमा समझौते’ के तहत पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में 5,180 वर्ग किलोमीटर भारत की जमीन को अवैध रूप से चीन को सौंप दी थी, जो अक्साई चिन का हिस्सा है और भारत की सीमा से सटी हुई बताई जाती है.

Posted by : Kumar Vishwat Sen

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