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India-Japan Samvad Conference : PM मोदी बोले- सिर्फ कुछ देशों के बीच नहीं हो सकती वैश्विक विकास पर चर्चा, यहां पढ़ें प्रधानमंत्री के संबोधन की मुख्य बातें

India-Japan Samvad Conference Latest News Update छठवें भारत-जापान संवाद सम्मेलन को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि आज मैं पारंपरिक बौद्ध साहित्य और शास्त्रों के एक पुस्तकालय का निर्माण प्रस्तावित करना चाहूंगा. हमें भारत में इस तरह की फैसिलिटी बनाने में खुशी होगी और हम इसके लिए उपयुक्त संसाधन उपलब्ध कराएंगे.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 21, 2020 11:50 AM

India-Japan Samvad Conference Latest News Update छठवें भारत-जापान संवाद सम्मेलन को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि आज मैं पारंपरिक बौद्ध साहित्य और शास्त्रों के एक पुस्तकालय का निर्माण प्रस्तावित करना चाहूंगा. हमें भारत में इस तरह की फैसिलिटी बनाने में खुशी होगी और हम इसके लिए उपयुक्त संसाधन उपलब्ध कराएंगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने अपने संबोधन में आगे कहा कि ऐतिहासिक रूप से बुद्ध के संदेशों की रोशनी भारत से दुनिया के कई हिस्सों में फैली है. हालांकि, ये रोशनी स्थिर नहीं रही. सदियों से ​हर नये स्थान जहां बुद्ध के विचार पहुंचे वो ​विकसित होते रहे है.

भारत-जापान संवाद सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र ने साथ ही कहा कि वैश्विक विकास पर चर्चा केवल चुनिंदा देशों के बीच नहीं हो सकती और इसका दायरा बड़ा और मुद्दे व्यापक होने चाहिए. पीएम मोदी ने विकास के स्वरूप में मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की भी पुरजोर वकालत की.

पीएम मोदी के संबोधन की मुख्य बातों पर एक नजर…

– इतिहास के पन्नों को अगर पलटा जाये तो साम्राज्यवाद से लेकर विश्व युद्धों तक, हथियारों की दौड़ से लेकर अंतरिक्ष की दौड़ तक मानवता ने अक्सर टकराव का रास्ता अपनाया गया. बातचीत का सिलसिला भी चला, लेकिन उसका उद्देश्य दूसरों को पीछे खींचने का रहा. लेकिन, अब साथ मिलकर आगे बढ़ने का समय है.

– पीएम मोदी ने मानवता को नीतियों के केंद्र में रखने की जरूरत पर जोर देते हुए प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व को अस्तित्व का मुख्य आधार बनाए जाने की वकालत की.

– वैश्विक विकास का दायरा बढ़ाने की बात करते हुए पीएम ने कहा कि इसका एजेंडा व्यापक होना चाहिए. विकास का स्वरूप मानव-केंद्रित होना चाहिए और आसपास के देशों की तारतम्यता के साथ होना चाहिए.

– पारंपरिक बौद्ध साहित्य और शास्त्रों के लिए एक पुस्तकालय के निर्माण का प्रस्ताव रखते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें भारत में ऐसी एक सुविधा का निर्माण करने में खुशी होगी और इसके लिए हम उपयुक्त संसाधन प्रदान करेंगे.

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