नेपाल के प्रधानमंत्री कमल दहल प्रचंड आज से दिनों के आधिकारिक भारत दौरे पर हैं. प्रचंड के साथ उनका एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी भारत आया है. प्रचंड का ये भारत दौरा कई मायनों में काफी यहां माना जा रहा है. खास तौर पर चीन के साथ कूटनीतिक संबंध और नेपाल-चीन के बीच बढ़ती नजदीकियों के बीच ये दौरा काफी अहम है.
पिछले साल दिसंबर में तीसरी बार प्रधानमंत्री का पदभार संभालने के बाद यह प्रचंड की पहली विदेश यात्रा है. आपको बताएं प्रचंड ने चीन के निमंत्रण के बावजूद भारत को चुना. इस यात्रा को लेकर दोनों ही पक्षों में काफी उत्सुकता है. खासकर बीते कुछ सालों से जिस तरह नेपाल लगातार चीन के करीब होता जा रहा है. ऐसे में यह यात्रा नए सिरे से संबंधों में गर्माहट आएगी. प्रचंड सदियों पुराने, बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी व अन्य नेताओं से वार्ता करेंगे. इस दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर मुहर लगेगी.
प्रचंड अपने पहले के कार्यकाल के दौरान तीन बार भारत का दौरा कर चुके हैं. दहल, एक 68 वर्षीय पूर्व माओवादी विद्रोही नेता, जो प्रचंड नाम से जाने जाते हैं. भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “यह दौरा हमारी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति को आगे बढ़ाने के लिए भारत और नेपाल के बीच नियमित रूप से उच्च स्तरीय आदान-प्रदान की परंपरा को जारी रखता है. सहयोग के सभी क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध काफी मजबूत हुए हैं.
बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रचंड पीएम नरेंद्र मोदी व अन्य नेताओं से वार्ता करेंगे. नेपाल के विदेश मंत्रालय ने शनिवार को एक बयान में कहा, “यात्रा नेपाल और भारत के बीच सदियों पुराने, बहुमुखी और सौहार्दपूर्ण संबंधों को और मजबूत करेगी. द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने और व्यापार, ऊर्जा, कृषि, संस्कृति तथा हवाई सेवा से जुड़ी चर्चा भारतीय नेताओं के साथ उनकी बातचीत में प्रमुखता से शामिल होगी.
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