Loading election data...

शायर मुनव्वर राणा ने राहत को कुछ इस तरह किया याद, सुनाये किस्से

सत्तर के दशक के आखिर में मुंबई में एक मुशायरे में दो युवा शायरों मुनव्वर राणा और राहत इंदौरी की मुलाकात हुई, जो बाद में जिंदगी भर की दोस्ती में बदल गई. उस समय दोनों की उम्र महज 20 साल रही होगी . इसके बाद के कई दशकों तक शायरी की दुनिया में दोनों ने शायरी के दीवानों के दिलों पर राज किया. उन्होंने रूह में उतर जाने वाले शेर लिखे और उर्दू अदब की दुनिया में खूब नाम कमाया.

By Agency | August 12, 2020 9:16 PM

नयी दिल्ली : सत्तर के दशक के आखिर में मुंबई में एक मुशायरे में दो युवा शायरों मुनव्वर राणा और राहत इंदौरी की मुलाकात हुई, जो बाद में जिंदगी भर की दोस्ती में बदल गई. उस समय दोनों की उम्र महज 20 साल रही होगी . इसके बाद के कई दशकों तक शायरी की दुनिया में दोनों ने शायरी के दीवानों के दिलों पर राज किया. उन्होंने रूह में उतर जाने वाले शेर लिखे और उर्दू अदब की दुनिया में खूब नाम कमाया.

इतना, कि मुशायरों का नाम उनके नाम पर रखा जाने लगा. लगभग आधी सदी तक चली यह दोस्ती मंगलवार को हार्ट अटैक के चलते इंदौरी की मौत पर आकर खत्म हो गई. इंदौरी 70 वर्ष के थे. राणा ने दोस्त के बिछड़ जाने पर गम का इजहार करते हुए लखनऊ से फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”मैनें जो खोया है, उसे लफ्जों में बयां नहीं कर सकता. ” राणा, इंदौरी के साथ दोस्ती के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि लगभग 40 मुशायरे हुए, जिनमें केवल हम दोनों ने ही प्रस्तुति दी. इन मुशायरों को ”मुनव्वर और राहत” नाम दिया गया, ताकि उनके प्रशंसक एक साथ एक मंच पर उनकी प्रस्तुति का लुत्फ उठा सकें.

Also Read: रूस की कोरोना वैक्सीन पर वैज्ञानिकों को भी संदेह

राणा ने कहा कि दोनों के एक साथ प्रस्तुति देने की परंपरा सी बन गई थी. राणा ने कहा, ”वह मुझे बहुत प्यार करते थे. एक बार उन्होंने एक मुशायरे के दौरान मेरा तार्रुफ कराते हुए कहा कि उर्दू शायरी में तीन बड़े नाम हैं. पहला मुनव्वर राणा, दूसरा मुनव्वर राणा और तीसरा भी मुनव्वर राणा. ” साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित राणा ने एक और किस्सा सुनाते हुए कहा, ”एक बार एक मुशायरे से लौटते हुए उनसे कहा कि वह महान शायर बन गए हैं.

उन्होंने मुझे टोकते हुए कहा कि मैं अजीम शायर बन सकता था, अगर तुम मेरे रास्ते में न आते. इस पर मैंने शरारती अंदाज में उनसे माफी मांगी. हमारे बीच ऐसी दोस्ती थी. ” राणा जहां परिवार और मां पर आधारित शायरी के लिये मशहूर हुए, वहीं इंदौरी ने अपनी मुखर शायरी से श्रोताओं के दिलों पर राज किया. राणा ने स्वीकार किया कि वह खुद भी इंदौरी के मुरीद थे. उन्होंने कहा, ”मैं कठिन शब्दों की जगह आसान अल्फाज में शायरी के उनके अंदाज का मुरीद रहा. वह समां बांध दिया करते थे. ”

दोनों शायरों को आखिरी बार पिछले साल दिसंबर में एक साहित्य महोत्सव में देखा गया था. राणा ने बताया, ”दस साल पहले जब मैं घुटने की सर्जरी कराने इंदौर गया था, तो वह रोज मेरे लिये खाना लाया करते थे. ” उन्होंने कहा कि वह लॉकडाउन के दौरान और उसके अलावा भी फोन पर मेरे संपर्क में थे. हमारे परिवार भी एक-दूसरे के करीबी रहे हैं. राणा ने कहा, ”राहत अपने बच्चों से उनके जीवन से जुड़े फैसलों में मेरी सलाह लेने के लिये कहते थे. वह अपने बेटे से, मुझसे काम मांगने के लिये भी कहते थे. उनके बच्चे मुझे चाचा बुलाते हैं. ”

इंदौरी को 45 साल से जानने वाले मशहूर शायर वसीम बरेलवी भी उन्हें उनकी विनम्रता और गजल पढ़ने के अंदाज के लिये याद करते हैं. बरेलवी (80) ने कहा, ”राहत इंदौरी साहब ने 70 के दशक में जब शायरी शुरू की तब गजल को लय में पढ़ने की परंपरा थी, लेकिन वह ऐसे पहले शायर रहे, जिन्होंने बिना लय के सादगी के साथ गजलें पढ़ीं. ” बरेलवी ने कहा कि उन्होंने और इंदौरी ने दुनियाभर की अपनी यात्रों के दौरान काफी समय साथ गुजारा. उन्होंने कहा, ”वह हमेशा मुझे बड़ा भाई मानते थे. वह मुझे बेहद प्यार और सम्मान देते थे. ”

Posted By – Pankaj Kumar Pathak

Next Article

Exit mobile version