Delhi: दिल्ली की एक अदालत ने एक कुत्ते की पिटाई करने के आरोप में एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि बिना मामला दर्ज किए आरोपी को क्लीन चिट दिए जाने के “गंभीर परिणाम” हो सकते हैं. अदालत ने यह भी कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पुलिस अक्सर पूछताछ के आधार पर ‘क्लोजर रिपोर्ट’ तैयार करके कानून को “दरकिनार” कर देती है.
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट भरत अग्रवाल दो याचिकाओं पर कर रहे थे सुनवाई
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट भरत अग्रवाल दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे, जिनमें पिछले साल 10 जनवरी को एक कुत्ते को लाठी से बेरहमी से पीटने के मामले में जाफराबाद थाने में तैनात सहायक उपनिरीक्षक (एएसआई) रवींद्र के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. घटना का एक कथित वीडियो सोशल मीडिया मंचों पर वायरल हो गया था.
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‘प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पूछताछ के आधार पर क्लोजर रिपोर्ट तैयार करने की अनुमति नहीं’
मजिस्ट्रेट ने 13 फरवरी को पारित आदेश में कहा, ‘प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पूछताछ के आधार पर क्लोजर रिपोर्ट तैयार करने की अनुमति नहीं है, फिर भी अक्सर पुलिस आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत निर्धारित प्रक्रिया को दरकिनार कर इसका सहारा लेती है.’ उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस की भूमिका कानून के क्रियान्वयन तक सीमित है और इसमें इसकी व्याख्या करना शामिल नहीं है.