चुनाव आयोग ने आज राष्ट्रपति चुनाव के तारीख की घोषणा कर दी. 18 जुलाई को मतदान होना है और 21 जुलाई को हमें देश का अगला राष्ट्रपति मिल जायेगा. वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल आगामी 25 जुलाई को समाप्त हो रहा है. इससे पहले चुनावी प्रक्रिया पूरी हो जायेगी. राष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा के सांसद, राज्यसभा सदस्य और विधायक अपना मत डालते हैं, लेकिन विधान परिषद के सदस्य और किसी सदन के नामित सदस्यों को वोट करने का अधिकार नहीं है. भारत में राष्ट्रपति चुनाव की वर्तमान व्यवस्था 1974 से चली आ रही है और यह 2026 तक लागू रहेगी. इसमें 1971 की जनसंख्या को आधार माना गया है.
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है?
भारत में राष्ट्रपति चुनाव में देश की जनता प्रत्यक्ष रूप से मतदान नहीं करते हैं, बल्कि उनके द्वारा चुने गए सांसद और विधायक मत डालते हैं. संविधान की धारा 54 के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव में जनता अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होती है. उसके बदले निर्वाचित जनप्रतिनिधि इस चुनाव में वोट करते हैं. इसे अप्रत्यक्ष निर्वाचन भी कहा जाता है.
किसे है वोट देने का अधिकार
राष्ट्रपति चुनाव में राज्यसभा सांसद, लोकसभा सांसद और विधायकों को वोट देने के अधिकार है. इस चुनावी प्रक्रिया में राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा और विधान परिषद में नामित या नॉमिनेटेड जनप्रतिनिधि और विधानपार्षद शामिल नहीं हो सकते. विधान पार्षदों और नामित व्यक्तियों के पास वोट करने का अधिकार नहीं है.
क्या है एकल हस्तांतरणीय वोट
भारत में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में एकल हस्तांतरणीय मत यानी सिंगल ट्रांसफरेबल वोट प्रणाली के जरिए मतदान किया जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि राज्यसभा, लोकसभा और विधानसभा का एक सदस्य एक ही वोट कर सकता है. एक सदस्य का एक वोट राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवारों में अपनी प्राथमिकता तय कर देता है कि उसकी पहली, दूसरी कौन और तीसरी पंसद कौन है. अब पहली पंसद के जरिए विजेता का फैसला नहीं हो पाता है, तो उम्मीदवार के खाते में दूसरी पसंद के वोट को नए एकल मत की तरह ट्रांसफर यानी हस्तांतरित कर दिया जाता है. इसीलिए इसे एकल हस्तांतरणीय या सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है.
विधायकों के वोट का वेटेज क्या है
हर राज्य के विधायकों के वोटों का वेटेज राज्य की जनसंख्या और विधानसभा क्षेत्रों की संख्या पर निर्भर करता है. विधायकों के वोटों का वेटेज निकाले के लिए उस प्रदेश की जनसंख्या को राज्य में निर्वाचित कुल विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है. इसके बाद प्राप्त होने वाले अंक को 1000 से भाग दिया जाता है. इसके बाद जो भागफल सामने आता है, वही एक विधायक के वोट का वेटेज कहलता है. अब अगर भागफल की संख्या 500 से अधिक है, तो उसमें 1 जोड़ दिया जाता है.
सांसदों के वोट का कितना है वेटेज
सांसदों के वोट के वेटेज का फॉमूला विधायकों के वोट के वेटेज से अलग है. सांसदों के वोट का वेटेज तय करने के लिए सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के वोटों के वेटेज से जोड़ा जाता है. अब इस वेटेज को राज्यसभा और लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग दिया जाता है. इसके बाद जो भागफल सामने आता है, वही किसी सांसद के वोट का वेटेज कहलाता है. भाग देने की प्रक्रिया में अगर शेष 0.5 से अधिक आता है, तो इसमें भी एक जोड़ दिया जाता है.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था क्या है
भारत के राष्ट्रपति चुनाव में शामिल होने वाले विधायकों और सांसदों के वोट का वेटेज अलग-अलग होता है. यहां तक कि भारत के किसी दो राज्यों के विधायकों का वेटेज भी अलग-अलग होता है. जिस तरीके से वोटों का वेटेज तय किया जाता है, उसे ही आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं.
राष्ट्रपति चुनाव में कैसे की जाती है वोटों की गिनती
भारत के राष्ट्रपति चुनाव में यह कोई आवश्यक नहीं है कि सबसे अधिक वोट हासिल करने वाला उम्मीदवार जीत हासिल कर ही लेता है. इस चुनाव में राष्ट्रपति के पद के लिए विजेता उसे घोषित किया जाता है, जो सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधी से अधिक संख्या बल हासिल कर लेता है. इस चुनाव में पहले से ही यह तय होता है कि जीत हासिल करने के लिए राष्ट्रपति पद के किसी उम्मीदवार को वोटों के कितने वेटेज की जरूरत होगी. इस समय राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल या इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्यों के वोटों का वेटेज 10,98,903 है. किसी प्रत्याशी को राष्ट्रपति पद के लिए जीत हासिल करने के लिए वोटों के कम से कम 5,46,320 वेटेज की जरूरत होगी. यह संख्या हासिल करने वाले प्रत्याशी देश के राष्ट्रपति चुने जाते हैं.