Pollution: पराली जलाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र, पंजाब और हरियाणा से मांगा जवाब
शीर्ष अदालत ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामले बढ़े हैं और राज्य सरकार इस पर रोक लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है. न्यायाधीश एएस ओका, न्यायाधीश अहसानुद्दीन अमानुल्ला और न्यायाधीश अगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने के मामले बढ़े हैं और राज्य सरकार ने ऐसे किसानों से जुर्माने के तौर पर मामूली रकम वसूली है.
Pollution: दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण रोकने के लिए पराली जलाने वाले किसानों पर कार्रवाई नहीं करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा सरकार को फटकार लगायी. गुरुवार को इस मामले में पर सुनवाई के दौर शीर्ष अदालत ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामले बढ़े हैं और राज्य सरकार इस पर रोक लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है. न्यायाधीश एएस ओका, न्यायाधीश अहसानुद्दीन अमानुल्ला और न्यायाधीश अगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने के मामले बढ़े हैं और राज्य सरकार ने ऐसे किसानों से जुर्माने के तौर पर मामूली रकम वसूली है. पीठ ने कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट(सीएक्यूएम) के कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि अपनी दिशा निर्देशों को लागू कराने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है. पीठ ने कहा कि पराली जलाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करना चाहता है. वे इस काम में लिप्त लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की बजाय सिर्फ बैठक करते हैं.
पंजाब सरकार की दलील
पंजाब सरकार की ओर से पीठ को बताया गया कि पंजाब में 70 फीसदी किसान छोटे और सीमांत है. ऐसे में पराली हटाने के लिए वे सीडर मशीन का प्रयोग करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि मशीन को चलाने के लिए ड्राइवर और डीजल की जरूरत होती है और किसानों के पास खर्च करने के पैसे नहीं है. इसके लिए सब्सिडी मुहैया कराने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा गया और पंजाब को 375 करोड़ रुपये दिए गए. पंजाब की ओर कहा कि राज्य पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता है क्योंकि ऐसा करने पर रोक है. पीठ ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण नियम के तहत राज्य कार्रवाई कर सकते हैं. इसके बाद पीठ ने पंजाब और हरियाणा को एक हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया. मामले की अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी. शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि यदि सीएक्यूएम समिति में विशेषज्ञ सदस्य नहीं हैं, तो अदालत अनुच्छेद 142 के मिले अधिकार का प्रयोग करेगा. पीठ ने केंद्र और सीएक्यूएम को भी एक हफ्ते के भीतर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया.
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