राष्ट्रपति चुनाव : द्रौपदी मुर्मू और यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी के पीछे क्या है राजनीतिक एजेंडा?

2012 के राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की ओर से प्रणब मुखर्जी को उम्मीदवार बनाया गया था, जबकि उस वक्त की विपक्षी पार्टी भाजपा ने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीएम संगमा को समर्थन दिया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 18, 2022 10:55 AM
an image

नई दिल्ली : भारत में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया जारी है. इसके लिए 29 जून तक नामांकन दाखिल किए जाएंगे. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार बनाए गए हैं. राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान होने से पहले ही नतीजा करीब-करीब तय माना जा रहा है, लेकिन इन दोनों प्रत्याशियों के मैदान में उतारे जाने के पीछे कई राजनीतिक संदेश भी छुपे हैं, जिससे जानना बेहद जरूरी है. यह जानना भी आवश्यक है कि एनडीए की ओर से द्रौपदी मुर्मू और विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा को प्रत्याशी बनाए जाने के पीछे मूल राजनीतिक एजेंडा क्या है?

2012 में भाजपा ने पीएम संगमा को दिया था समर्थन

2012 के राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की ओर से प्रणब मुखर्जी को उम्मीदवार बनाया गया था, जबकि उस वक्त की विपक्षी पार्टी भाजपा ने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीएम संगमा को समर्थन दिया है. भाजपा की ओर से पीए संगमा को समर्थन देने के पीछे उसका उद्देश्य आने वाले वर्षों में पूर्वोत्तर में पार्टी की स्थिति को मजबूत करने का था. इसी संदेश के साथ उसने पूर्वोत्तर के दिग्गज नेता पीएम संगमा को समर्थन दिया था. आज के करीब 10 साल पहले का उसका संदेश का परिणाम आज पूर्वोत्तर की राजनीतिक पटल पर साफ दिखाई दे रहा है.

केआर नारायणन और अब्दुल कलाम को विपक्ष का भी मिला समर्थन

इसी प्रकार, 1997 के राष्ट्रपति चुनाव में केआर नारायणन और 2002 में एपीजे अब्दुल कलाम को प्रत्याशी बनाया गया. ये दोनों ऐसे उम्मीदवार थे, जिनका विपक्ष ने भी समर्थन किया था. पूर्व राजनयिक केआर नारायणन अनुसूचित जाति से थे. नारायणन संयुक्त मोर्चा सरकार और कांग्रेस के उम्मीदवार थे तथा उन्हें विपक्षी भाजपा का भी समर्थन हासिल था. जब भाजपा ने सत्ता में रहने के दौरान कलाम जैसे प्रख्यात वैज्ञानिक को उम्मीदवार बनाया, तब कांग्रेस ने उनका समर्थन किया.

द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर राजनीतिक संदेश दे रही भाजपा

अब साधारण पृष्ठभूमि की आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को एनडीए का उम्मीदवार बनाकर भाजपा अपना व्यापक राजनीति संदेश देने में सफल होती नजर आ रही है, क्योंकि द्रौपदी मुर्मू के भारत के प्रथम एसटी महिला (अनुसूचित जनजाति) राष्ट्रपति बनने की पूरी संभावना है. भाजपा ने 2017 में मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाया था, जो दलित समुदाय से आते हैं.

यशवंत सिन्हा के समर्थन के पीछे कांग्रेस का बड़ा एजेंडा

इस बार, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस तथा वाम दल जैसे भाजपा के अन्य धुर विरोधियों ने पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाकर क्या कोई महत्वपूर्ण संदेश दिया है? राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि सिन्हा का समर्थन करने का कांग्रेस का फैसला क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल बिठाने की उसकी इच्छा का संकेत देता है, क्योंकि विपक्ष 2024 के आम चुनाव की तैयारी करना चाहता है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर मनिंद्र नाथ ठाकुर के अनुसार, मौजूदा नेतृत्व के खिलाफ बगावत करने वाले भाजपा के एक पूर्व नेता को अपना उम्मीदवार बनाने का विपक्ष का फैसला यह संदेश देने का प्रयास प्रतीत होता है कि वर्तमान सरकार के जो भी खिलाफ हैं, उन्हें एकजुट होना चाहिए.

Also Read: राष्ट्रपति चुनाव के लिए 13 जुलाई को पटना आयेगा बैलेट पेपर, राजद विधायक अनंत सिंह के वोट को लेकर संशय
यशवंत सिन्हा की साफ-सुथरी है छवि

प्रोफेसर मनिंद्र नाथ ठाकुर ने कहा कि यशवंत सिन्हा (84) की छवि साफ-सुथरी है. सिन्हा नौकरशाह रह चुके हैं. वह ऊंची जाति से आते हैं, जबकि मुर्मू ओडिशा के सबसे पिछड़े क्षेत्र से आने वाली एक आदिवासी महिला हैं. ठाकुर ने कहा कि विपक्ष किसी दलित या मुस्लिम उम्मीदवार को उतारकर इस बार प्रयोग कर सकता था, जब भाजपा समाज के सर्वाधिक वंचित तबकों के लिए अपनी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की विचारधारा में एक जगह होने का संदेश देकर प्रतिनिधिक राजनीति करने जा रही है.

Exit mobile version