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PROBA 3 Spacecraft: इसरो ने लॉन्च किया प्रोबा-3 मिशन, उठेगा कई रहस्यों से पर्दा, जानिए खास बातें

PROBA-3 Spacecraft: इसरो ने प्रोबा-3 की सफलतापूर्वक लॉन्चिंग कर दी है. श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से PSLV-XL रॉकेट की मदद से लॉन्चिंग की गई. इस मिशन के जरिए सूर्य के कोरोना का अध्ययन किया जाएगा.

PROBA 3 Spacecraft: भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने एक बार फिर इतिहास रच दिया है. इसरो ने यूरोपीय स्पेस एजेंसी के प्रोबा-3 (PROBA-3) मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्‍च कर दिया है. PSLV-C59 लॉन्‍च व्‍हीकल के जरिये इसरो ने इस मिशन को अंजाम दिया है. गुरुवार को दो स्पेसक्राफ्ट को PSLV-C59 लॉन्‍च व्‍हीकल के जरिये स्पेस में भेजा गया है. लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से की गई. इसरो कल यानी बुधवार (4 दिसंबर) को ही प्रोबा-3 की लॉन्चिंग करने वाला था, लेकिन लॉन्चिंग से थोड़ी देर पहले आई तकनीकी खराबी के कारण इसे शुक्रवार तक के लिए टाल दिया गया था.

सूर्य का होगा अध्ययन

PSLV-C59 की मदद से प्रोबा-3 मिशन के साथ दो स्‍पेशल स्पेसक्राफ्ट को भी भेजा गया है. कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट और ऑक्‍युल्‍टर स्पेसक्राफ्ट की मदद से अंतरिक्ष खासकर सूर्य से संबंधित कई रहस्यों से पर्दा उठेगा. अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा समेत दुनियाभर की कई एजेंसी सूर्य का अध्ययन कर रही हैं. भारत का इसरो भी यूरोपीय स्पेस एजेंसी के साथ मिलकर सूर्य के अध्ययन में जुटा हुआ है.

प्रोबा-3 के जरिये कोरोना की स्टडी

प्रोबा-3 दुनिया का पहला प्रेसिशन फॉर्मेशन फ्लाइंग सैटेलाइट है. इसका मतलब है कि इसमें एक नहीं दो सैटेलाइट को लॉन्च किया है. पहला Occulter है, जिसका वजन 200 किलोग्राम है. वहीं दूसरा स्पेसक्रॉफ्ट Coronagraph है. इसका वजन 340 किलोग्राम है. इस सेटेलाइट का फेस सूरज की तरफ होगा. इसका काम सोलर कोरोनाग्राफ बनाना है. यह सूर्य के कोरोना की स्टडी करेंगे. दोनों उपग्रह सूर्य के धुंधले कोरोना का अध्ययन करने के लिए करीब 150 मीटर लंबा सौर कोरोनाग्राफ बनाएंगे.

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Proba-3 spacecraft: इसरो ने लॉन्च किया प्रोबा-3 मिशन

प्रोबा-3 मिशन की खास बातें

  • पहली बार अंतरिक्ष में प्रेसिजन फॉर्मेशन फ्लाइंग सैटेलाइट की टेस्टिंग की गई है.
  • इसमें एक साथ दो सैटेलाइटों ने उड़ान भरी.
  • यह यूरोप के कई देशों का एक पार्टनरशिप प्रोजेक्ट है.
  • इसमें स्पेन, पोलैंड, बेल्जियम, इटली और स्विट्जरलैंड जैसे देश शामिल हैं.
  • इस मिशन की कुल लागत करीब 200 मिलियन यूरो है.
  • यह मिशन 2 सालों तक चलेगा.

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