पंजाब चुनाव में सियासी दलों का ‘खेला’ खराब करने के लिए पार्टी बनाएंगे किसान, इन दिग्गजों को हो सकता है नुकसान
जालंधर आलू उत्पादक संघ के महासचिव जसविंदर सिंह वांघा ने कहा कि हम पार्टी बनाने को लेकर सक्रिय हो गए हैं और विभिन्न संगठनों से संपर्क कर रहे हैं, ताकि किसानों की एक अलग पार्टी बनाई जा सके.
जालंधर : पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में दिग्गज सियासी दलों का ‘खेला’ खराब करने के लिए बीते एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसान अब राजनीतिक पार्टी बनाने पर विचार कर रहे हैं. अगर इन किसानों ने पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में ताल ठोक दिया, तो सूबे के सियासी समीकरण में अमूल परिवर्तन होने की संभावना है, जिसकी वजह से कई दिग्गज नेताओं और पार्टियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.
अंग्रेजी के अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, जालंधर आलू उत्पादक संघ के महासचिव जसविंदर सिंह वांघा ने कहा कि तीन नए कृषि कानूनों की वापसी के बाद दिल्ली से विजय जुलूस के साथ लौटे पंजाब के किसान संगठन एक अलग राजनीतिक दल के गठन पर विचार कर रहे हैं. अखबार की रिपोर्ट में इस बात की चर्चा की गई है कि अगर आंदोलन से वापस लौटे किसानों ने नई पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में ताल ठोक दिया, तो यहां के चुनावी समीकरण ही पूरी तरह बदल जाएगा.
जालंधर आलू उत्पादक संघ के महासचिव जसविंदर सिंह वांघा ने कहा कि हम पार्टी बनाने को लेकर सक्रिय हो गए हैं और विभिन्न संगठनों से संपर्क कर रहे हैं, ताकि किसानों की एक अलग पार्टी बनाई जा सके. इसके बाद हम भी विधानसभा चुनावों में अपने प्रत्याशियों को उतार सकेंगे. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर किसानों संगठनों के बीच पहले ही बात हो चुकी है, लेकिन सभी को एक साथ लाना चाहते हैं, ताकि एक पार्टी बनाई जा सके.
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, समाज के कुछ और वर्गों के अच्छे लोगों को हम जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि पंजाब में एक अच्छा राजनीतिक बदलाव लाया जा सके. उन्होंने कहा कि हम भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी की ओर से शुरू किए गए मिशन पंजाब को भी साथ लाने के प्रयास में हैं. इससे पंजाब में लोगों को राजनीतिक तौर पर एक ताकतवर विकल्प मिल सकेगा.
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जसविंदर सिंह वांघा ने कहा कि बड़ी संख्या में लोग बदलाव चाहते हैं, लेकिन वे दूसरे दलों के लिए काम कर रहे हैं. किसानों की पार्टी बनने के बाद वे भी इससे जुड़ सकेंगे. उन्होंने कहा कि किसान संगठनों में यह बात मजबूती से उठ रही है कि दूसरे दलों को समर्थन देने या फिर उनके साथ मिलने से अच्छा है कि अलग से अपने एक दल का ही गठन किया जाए.