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कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कहा- गीता कुरान जैसा धार्मिक ग्रंथ नहीं, यह नैतिकता की करती है बात

कर्नाटक शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कहा कि कुरान धार्मिक पुस्तक है, जबकि गीता धार्मिक ग्रंथ नहीं है. यह भगवान की पूजा या किसी भी धार्मिक प्रथाओं के बारे में बात नहीं करती है.

नई दिल्ली : कर्नाटक के स्कूली पाठ्यक्रम में गीता को शामिल किए जाने के मामले में राज्य के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने मंगलवार को गीता और कुरान में तुलना करते हुए गीता को धार्मिक ग्रंथ नहीं बताया है. उन्होंने अपने बयान में कहा है कि कुरान एक धार्मिक पुस्तक है, जबकि गीता धार्मिक ग्रंथ नहीं है. उन्होंने कहा कि गीता नैतिकता की बात करती है. स्वाधीनता आंदोलन के दौरान लोगों को इससे लड़ने की प्रेरणा मिली. बता दें कि कर्नाटक सरकार इस सत्र से अपने स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रम में गीता को शामिल करना चाहती है.

गीता करती है नैतिकता की बात

स्कूली पाठ्यक्रम में गीता पर समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक बयान में कर्नाटक शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कहा कि कुरान धार्मिक पुस्तक है, जबकि गीता धार्मिक ग्रंथ नहीं है. यह भगवान की पूजा या किसी भी धार्मिक प्रथाओं के बारे में बात नहीं करती है. यह नैतिकता की बात करती है और छात्रों को प्रेरित करती है. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोगों को गीता के जरिए लड़ने की प्रेरणा मिली है.


कर्नाटक में नैतिक शिक्षा के तौर पर पढ़ाई जाएगी गीता

बता दें कि कर्नाटक के स्कूलों में दिसंबर से छात्रों को नैतिक शिक्षा के तौर पर गीता पढ़ाई जाएगी. शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने सोमवार को विधान परिषद में भाजपा के एमके प्रणेश के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि हमने भगवद गीता को एक अलग विषय के रूप में पढ़ाने के प्रस्ताव को छोड़ दिया और इसकी शिक्षाओं को नैतिक शिक्षा के हिस्से के रूप में शामिल करने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि सरकार ने एक विशेषज्ञ पैनल नियुक्त किया है और हितधारकों की सिफारिशों के आधार पर, गीता की शिक्षाओं को दिसंबर से स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा.

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अल्पसंख्यकों में पैदा हो सकता है विवाद

कर्नाटक विधान परिषद में भाजपा के विधान पार्षद एमके प्रणेश ने कहा, ‘सरकार का कहना है कि कर्नाटक में छात्रों के लिए भगवद् गीता की शिक्षाओं को लागू करने का कोई प्रस्ताव नहीं है. क्या सरकार भगवद् गीता सिखाने में हिचकिचा रही है? पहले बयान जारी करते समय सरकार द्वारा दिखाई गई रुचि क्यों लुप्त हो गई है?’ इस मुद्दे पर विभिन्न अल्पसंख्यक समूहों और इसका विरोध करने वाले व्यक्तियों के साथ विवाद पैदा होने का अंदेशा है.

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