युद्ध के लिए तैयार हो रहा राफेल, रात के समय प्रैक्टिस
अत्याधुनिक और घातक राफेल लड़ाकू विमानों ने रात के समय हिमाचल के पहाड़ों पर प्रैक्टिस शरू कर दी है. हाल ही में सेना अध्यक्ष एमएम नरवणे ने सेंट्रल और वेस्टर्न आर्मी कमांडर्स को यह साफ कर दिया था कि चीन एलएसी पर कभी भी आक्रामकता दिखा सकता है और इसके लिए सर्वोच्च स्तर की तैयारी रखें. इसी के तहत राफेल विमानों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है. बता दें कि लद्दाख सेक्टर में जुलाई के पहले सप्ताह के मुकाबले चीनी एयरफोर्स की गतिविधियां कम हुई हैं, लेकिन भारतीय वायुसेना कोई चांस नहीं ले रही है और एयर मूवमेंट को बेहद सतर्कता के साथ ट्रैक किया जा रहा है.
खासकर तिब्बत में ल्हासा गोंगार एयरबेस और शिंजियांग क्षेत्र में होतन एयरबेस पर भारतीय वायुसेना की नजर है. एक अधिकारी ने बताया कि अभी राफेल विमान एलएसी से दूर रह रहे हैं ताकि अक्साई चिन में तैनात पीएल के रडार इसके फ्रीक्वेंसी सिग्नेचर को न पहचान सकें. खराब स्थिति में वे इनका इस्तेमाल फ्रिक्वेंसी जाम करने के लिए कर सकते हैं. हालांकि, मिलिट्री एविएशन के एक्सपर्ट बताते हैं कि राफेल में युद्ध जैसी स्थिति में अपना सिग्नल फ्रीक्वेंसी बदल लेने की क्षमता है. भारत और चीन के बीच राजनयिक और सैन्य स्तर पर बातचीत और सैनिकों को पीछे हटाये जाने की प्रक्रिया के बावजूद सेना के तीनों अंग पूरी तरह एलएसी से लेकर समुद्र तक अलर्ट हैं.
राफेल की खासियत
राफेल में कई सिग्नल मोड मोड होते हैं इसलिए यह पकड़ से बाहर होता है. ड्रैगन के लिए भी राफेल को पकड़ पाना नामुमकिन है.
युद्ध के हालात में राफेल के सिग्नेचर सिग्नल प्रैक्टिस मोड से अलग होते हैं.
राफेल फाइटर प्लेन दिखाई नहीं देने वाले टार्गेट को भी दूर से धवस्त कर सकता है. यह दूर तक निशाना साधने वाले एयर-टू-एयर मिटिऑर मिसाइल, एमआइसीए मल्टी मिशन एयर-टू-एयर मिसाइल और क्रूज मिसाइलों से लैस होते हैं. ये हथियार फाइटर पायलट को दूर से ही दुश्मन पर हमले की देते सुविधा हैं.
राफेल में लगा मिटिऑर मिसाइलों का नो-एस्केप जोन मौजूदा मीडियम रेंज एयर-टू-एयर मिसाइलों से तीन गुना अधिक है.
राफेल में मौजूद स्कैल्प डीप स्ट्राइक क्रूज मिसाइलों से बेहद दूर के लक्ष्य को सटीकता के साथ टारगेट जा सकता है.
Posted By: Pawan Singh