राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले प्रदेश में पार्टी को और मजबूत करने में भाजपा जुट चुकी है. जहां एक ओर कांग्रेस बिना किसी सीएम फेस के चुनावी मैदान में उतरेगी. वहीं दूसरी ओर राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर वसुंधरा राजे आज जेपी नड्डा से मुलाकात करने वालीं हैं. इस बीच कयास लगाये जा रहे हैं कि क्या भाजपा प्रदेश में वसुंधरा राजे को चेहरा बनाएगी या फिर पार्टी पीएम नरेंद्र मोदी का चेहरे ही राजस्थान में उतारेगी और उनके पिछले नौ वर्षों के कार्यों को जनता के समक्ष रखकर जनता से वोट की अपील करेगी.
इस बीच राजस्थान में भाजपा सत्तारूढ़ दल कांग्रेस पर लगातार हमला कर रही है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी ने कहा है कि राज्य की जनता प्रदेश कांग्रेस सरकार के शासन के साढ़े चार साल का हिसाब मांग रही है जिसका जवाब कांग्रेस देने में सक्षम नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार के झूठे वादों से किसान परेशान हो गये हैं और आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं.
पिछले 20 साल में राजस्थान में हुए चार विधानसभा चुनाव की बात करें तो कोई भी पार्टी लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में सफल नहीं हो पायी है. इसके आधार पर यह कहा जा रहा है कि इस बार राजस्थान में भाजपा की सरकार बन सकती है. दरअसल, सत्ताधारी पार्टी के विधायक दोबारा चुनाव मैदान में उतरते हैं तो उनमें से ज्यादातर को हार का सामना करना पड़ता है. जनता का सबसे ज्यादा गुस्सा मंत्रियों पर निकलता है, पिछली चार सरकारों में मंत्री रहे ज्यादातर नेता अगले चुनाव में हारते नजर आये थे.
2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो उस वक्त की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के 16 मंत्री को हार का सामना करना पड़ा था. यही नहीं 94 विधायकों को फिर से टिकट दिया गया था. इनमें से 54 हार गये थे. भाजपा ने 2018 के चुनाव में 163 विधायकों में से 94 को फिर से टिकट दिया था. इनमें से केवल 40 ने ही जीत दर्ज की थी.
तत्कालीन वसुंधरा सरकार के मंत्री रहे 16 नेता चुनावी समर में डूब गये थे. विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने वालों में युनूस खान, प्रभुलाल सैनी, राजपालसिंह शेखावत, धनसिंह रावत जैसे बड़े नाम शामिल हैं.