Rajiv Gandhi Assassination Case: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला किया है. हत्याकांड में दोषी और उम्र कैद की सजा काट रहे एजी पेरारिवलन को सुप्रीम कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया है. एजी पेरारिवलन बीते 31 सालों से जेल में सजा काट रहे थे. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद की सजा काट रहे पेरारिवलन की समयपूर्व रिहाई की मांग करने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
9 मार्च को मिली थी जमानत
बता दें, राजीव गांधी हत्याकांड मामले में एजी पेरारिवलन ने कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा था कि, तमिलनाडु सरकार ने उनकी रिहाई का फैसला लिया था, लेकिन राज्यपाल ने काफी समय तक उनकी फाइल को अपने पास होल्ड कर लिया था, उसके बाद फाइल को राष्ट्रपति के पास भेजा गया. उन्होंने इसे संविधान के खिलाफ बताया. बता दें, इससे पहले एजी पेरारिवलन को न्यायालय ने 9 मार्च को जमानत दे दी थी. कोर्ट ने कहा था कि, सजा काटने और पैरोल के दौरान उसके आचरण को लेकर किसी तरह की शिकायत नहीं मिली थी.
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) केएम नटराज ने जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस एएस बोपन्न की पीठ को बताया था कि केंद्रीय कानून के तहत दोषी ठहराए गए शख्स की सजा में छूट, माफी और दया याचिका के संबंध में याचिका पर सिर्फ राष्ट्रपति ही फैसला कर सकते हैं. इस पर, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सवाल किया था कि अगर इस दलील को मान लिया जाता है तो राज्यपालों की ओर से दी गई अब तक की छूट अमान्य हो जाएगी.
11 जून 1991 को पेरारिवलन को किया गया था गिरफ्तार
गौरतलब है कि, 21 मई 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में हत्या की गई थी. इसके बाद 11 जून 1991 को पेरारिवलन को गिरफ्तार किया गया था. पेरारिवलन पर बम धमाके के लिए उपयोग में आई दो 9 वोल्ट की बैटरी खरीद कर मास्टरमाइंड शिवरासन को देने का आरोप सिद्ध हुआ था. पेरारिवलन घटना के वक्त महज 19 साल युवक था. बीते 31 साल से वो जेल में है इस दौरान उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी है. उसने अच्छे नंबरों से कई डिग्रियां भी हासिल की है.
7 लोगों को मिली है आजीवन कारावास की सजा
बता दें, राजीव गांधी हत्याकांड मामले में 7 लोगों को दोषी ठहराया गया था. कोर्ट ने सभी को मौत की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया था. इसके बाद 2016 में जे जयललिता और 2018 एके पलानीसामी की सरकार ने दोषियों की रिहाई की सिफारिश की थी. लेकिन राज्यपालों ने फाइल को लंबे समय तक अपने पास रख लिया था. काफी समय तक दया याचिका पर फैसला नहीं होने के कारण दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
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