राज्यसभा की 55 सीटों पर 26 मार्च को चुनाव होगा. आज नामांकन का अंतिम दिन है. कांग्रेस और बीजेपी सहित तमाम क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने राज्यसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. मध्य प्रदेश में सियासी उथल-पुथल के पीछे का मकसद राज्यसभा के चुनाव को माना जा रहा है. राज्यसभा के लिए 17 राज्यों की जिन 55 सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें से चार सांसद पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं. अब जब राज्यसभा की 55 सीटों पर मतदान होने जा रहा है तो आइए आज आपको बताते हैं कि आखिर राज्य सभा में चुनावी प्रकिया क्या है और कैसे होती है?
राज्यसभा में किस राज्य से कितने सांसद होंगे यह उस राज्य की जनसंख्या के हिसाब से तय किया जाता है. राज्यसभा के सदस्य का चुनाव राज्य विधानसभा के चुने हुए विधायक करते हैं. प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या ज्यादातर उसकी जनसंख्या पर निर्भर करती है. इस प्रकार, उत्तर प्रदेश के राज्यसभा में 31 सदस्य हैं. जबकि अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नगालैंड, मेघालय, गोवा, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा आदि छोटे राज्यों के केवल एक एक सदस्य हैं. लेकिन इसकी चुनावी प्रक्रिया बाकी सभी चुनावों से अलग होती है.
देश की संसद में दो सदन हैं, लोकसभा और राज्यसभा. ऊपरी सदन को राज्यसभा कहा जाता है. संविधान के अनुच्छेद 80 के मुताबिक राज्यसभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है. इनमें से 12 को राष्ट्रपति मनोनीत (नामित) करते हैं जबकि 238 सदस्य संघ और राज्य के प्रतिनिधि चुनते हैं. संविधान की अनुसूची चार के मुताबिक सदस्यों का चयन राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की आबादी के आधार पर होगा. इस प्रकार राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या 233 ही हो सकी जबकि 12 सदस्य राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं. यानी वर्तमान में राज्यसभा के कुल सदस्यों की संख्या 245 है. राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधि होता है. राज्यसभा के सभापति भारत के उपराष्ट्रपति होते हैं. इसके सदस्य छह साल के लिए चुने जाते हैं. इनमें से एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल प्रत्येक दो साल में पूरा हो जाता है. इसका मतलब है कि प्रत्येक दो साल पर राज्यसभा के एक तिहाई सदस्य बदलते हैं न कि यह सदन भंग होता है. यानी राज्यसभा हमेशा बनी रहती है.
राज्यसभा में चुने जाने के लिए योग्यता क्या हैः 01- भारतीय नागरिक हो. 02- उम्र न्यूनतम 30 साल होना आनिवार्य
कैसे होता है मतदानः राज्य सभा में सदस्यों का चुनाव राज्य विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है जिसमे विधान परिषद् के सदस्य वोट नहीं डाल सकते.
-नामांकन फाइल करने के लिए न्यूनतम 10 सदस्यों की सहमति आवश्यक होती है.-सदस्यों का चुनाव एकल हस्तांतरणीय मत के द्वारा निर्धारित कानून से होता है.
– इसके अनुसार राज्य की कुल विधानसभा सीटों को राज्यसभा की सदस्य संख्या में एक जोड़ कर उसे विभाजित किया जाता है फिर उसमें 1 जोड़ दिया जाता है.
उम्मीदवार को राज्यसभा पहुंचने के लिए उस राज्य की कुल विधायकों की संख्या को जितने सदस्य चुने जाने हैं उसमें एक जोड़कर विभाजित किया जाता है. मान लीजिए इस बार 26 मार्च को जिन 55 सीटों पर राज्यसभा चुनाव होना है उनमें महाराष्ट्र की सात सीटें हैं. अब इसमें एक जोड़ने पर यह 8 हो जाएगा. इस 8 को महाराष्ट्र विधानसभा में कुल विधायकों की संख्या (288) से भाग दे दीजिए और फिर जो जवाब आए उसमें एक जोड़ दीजिए.
288%8=36 और इसमें एक जोड़ दो तो 37 उम्मीदवार को 37 प्राथमिक वोटों की जरूरत होगी. इसके अलावा वोट देने वाले प्रत्येक विधायक को यह भी बताना होता है कि उसकी पहली पसंद और दूसरी पसंद का उम्मीदवार कौन है. इससे वोट प्राथमिकता के आधार पर दिए जाते हैं. यदि उम्मीदवार को पहली प्राथमिकता का वोट मिल जाता है तो वो वह जीत जाता है नहीं तो इसके लिए चुनाव होता है.
राज्यसभा की मतदान प्रकिया ठीक उसी तरह की है जैसे राष्ट्रपति को चुनने के दौरान अपनाई जाती है. राज्यसभा में सदस्य का चयन निर्वाचित विधायक मतदान के जरिए करते हैं. राज्यसभा सदस्यों को लेकर दो जरूरी बाते हैं. इसमें पहली महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्यसभा में कोई आरक्षण नहीं होता है. वहीं दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्यसभा में 2003 से एक नियम बना दिया गया है कि राज्यसभा के लिए मतदान गुप्त मतदान नहीं होते बल्कि ओपन बैलेट होते हैं.
इसका मतलब यह है कि जब विधायक वोट करता है तो उसके लिए अपनी पार्टी के प्रतिनिधि को वोट दिखाना जरूरी है वरना उसका वोट निरस्त कर दिया जाता है. केवल निर्दलीय पर यह लागू नहीं होता है लेकिन जितने पार्टी के विधायक हैं उनपर यह नियम लागू होता है.