राम मनोहर लोहिया ने लिखा, ‘राम ने निरंतर देव और कृष्ण ने लगातार मनुष्य बनने की कोशिश की’
'कृष्ण' नामक लेख में डॉ राम मनोहर लोहिया ने लिखा है, 'कृष्ण की सभी चीजें दो हैं. दो मां, दो बाप, दो नगर, दो प्रेमिकाएं या यों कहिए अनेक. जो चीज संसारी अर्थ में बाद की या स्वीकृत या सामाजिक है, वह असली से भी श्रेष्ठ और अधिक प्रिय हो गई है.'
नई दिल्ली : आज 12 अक्टूबर है और आज ही भारत के स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर चिंतक और प्रख्यात समाजवादी राजनेता डॉ राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि है. भारत में लोहिया जी के नाम से प्रसिद्ध डॉ राम मनोहर लोहिया ने अपने सार्वजनिक जीवन में समाजवादी राजनीति में एक ऐसी लकीर खींची, जिसे आज लोहियावाद के नाम से जाना जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि अपने लेखों के जरिए डॉ राम मनोहर लोहिया ने भारतीय परंपरा, शास्त्रों और देवी-देवताओं पर विशद वर्णन किया है. खासकर, भगवान राम और श्रीकृष्ण को लेकर उन्होंने जो लेख लिखी, वह बेहद रोचक और ज्ञानवर्धक है.
‘कृष्ण’ नामक लेख में डॉ राम मनोहर लोहिया ने लिखा है, ‘कृष्ण की सभी चीजें दो हैं. दो मां, दो बाप, दो नगर, दो प्रेमिकाएं या यों कहिए अनेक. जो चीज संसारी अर्थ में बाद की या स्वीकृत या सामाजिक है, वह असली से भी श्रेष्ठ और अधिक प्रिय हो गई है.’ उन्होंने अपने चिंतन लेख में आगे लिखा है, ‘यों कृष्ण देवकीनंनद भी हैं, लेकिन यशोदानंदन अधिक. ऐसे लोग मिल सकते हैं, जो कृष्ण की असली मां, पेट-मां का नाम न जानते हों, लेकिन बाद वाली दूध वाली यशोदा का नाम न जानने वाला कोई निराला ही होगा. उसी तरह, वसुदेव कुछ हारे हुए से हैं और नंद को असली बाप से कुछ बढ़कर ही रुतबा मिल गया है. द्वारिका और मथुरा की होड़ करना कुछ ठीक नहीं, क्योंकि भूगोल और इतिहास ने मथुरा का साथ दिया है, किंतु यदि कृष्ण की चलें तो द्वारिका और द्वारिकाधीश, मथुरा और मथुरापति से अधिक प्रिय रहे. मथुरा से तो बाललीला और यौवन-क्रीड़ा की दृष्टि से, वृंदावन और वरसाना वगैरह अधिक महत्वपूर्ण है.’
प्रेमिकाओं से कैसा रहा श्री कृष्ण का संबंध
प्रेमिकाओं से श्रीकृष्ण के संबंध में डॉ लोहिया ने अपने लेख में लिखा है कि प्रेमिकाओं का प्रश्न जरा उलझा हुआ है. किसकी तुलना की जाए, रुक्मिणी और सत्यभामा की, राधा और रुक्मिणी की या राधा और द्रौपदी की. प्रेमिका शब्द का अर्थ संकुचित न कर सखा-सखी भाव को ले के चलना होगा. अब तो मीरा ने भी होड़ लगानी शुरू की है. जो हो, अभी तो राधा ही बड़भागिनी है कि तीन लोक का स्वामी उसके चरणों का दास है. समय का फेर और महाकाल शायद द्रौपदी या मीरा को राधा की जगह तक पहुंचाए, लेकिन इतना संभव नहीं लगता. हर हालत में रुक्मिणी राधा से टक्कर कभी नहीं ले सकती.
कृष्ण हैं कौन?
अपने लेख में भगवान श्रीकृष्ण के बारे में डॉ लोहिया ने आगे लिखा है कि कृष्ण है कौन? गिरधर, गिरधर गोपाल. वैसे तो मुरलीधर और चक्रधर भी है, लेकिन कृष्ण का गुह्यतम रूप तो गिरधर गोपाल में ही निखरता है. कान्हा को गोवर्धन पर्वत अपनी कानी उंगली पर क्यों उठाना पड़ा था? इसलिए न कि उसने इंद्र की पूजा बंद करवा दी और इंद्र का भोग खुद खा गया, और भी खाता रहा. इंद्र ने नाराज होकर पानी, ओला, पत्थर बरसाना शुरू किया, तभी तो कृष्ण को गोवर्धन उठाकर अपने गो और गोपालों की रक्षा करनी पड़ी. उन्होंने लिखा, ‘कृष्ण ने इंद्र का भोग खुद क्यों खाना चाहा? यशोदा और कृष्ण का इस संबंध में गुह्य विवाद है. मां इंद्र को भोग लगाना चाहती है, क्योंकि वह बड़ा देवता है. सिर्फ वास से तृप्त हो जाता है और उसकी बड़ी शक्ति है, प्रसन्न होने पर बुहत वर देता है और नाराज होने पर तकलीफ. बेटा कहता है कि वह इंद्र से भी बड़ा देवता है, क्योंकि वह तो वास से तृप्त नहीं होता और बहुत खा सकता है और उसके खाने की कोई सीमा नहीं. यही है कृष्ण लीला का गुह्य रहस्य. वास लेने वाले देवताओं से खाने वाले देवताओं तक की भारत यात्रा ही कृष्ण लीला है.’
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राम ने की देव बनने की कोशिश, कृष्ण ने मनुष्य
राम और कृष्ण के अंतर को समझाने के लिए डॉ राम मनोहर लोहिया ने अपने लेख में लिखा है, ‘कृष्ण के पहले भारतीय देव आसमान के देवता हैं. निस्संदेह अवतार कृष्ण के पहले से शुरू हो गए, किंतु त्रेता का राम ऐसा मनुष्य है, जो निरंतर देव बनने की कोशिश करता रहा. इसीलिए उसमें आसमान के देवता का अंश कुछ अधिक है. द्वापर का कृष्ण ऐसा देव है, जो निरंतर मनुष्य बनने की कोशिश करता रहा. उसमें उसे संपूर्ण सफलता मिली. कृष्ण संपूर्ण आबोध मनुष्य है, खूब खाया-खिलाया, खूब प्यार किया और प्यार सिखाया, जनगण की रक्षा की और उसे रास्ता बताया, निर्लिप्त भोग का महान त्यागी और योगी बना.’